कृषि का वाणिज्यीकरण तथा उसके कारण एवं अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

 कृषि का वाणिज्यीकरण से संबंधित कुछ बिंदुओं को स्पष्ट करेंगे जैसे — 

1) वाणिज्यीकरण का अर्थ 

2) कृषि का वाणिज्यीकरण के कारण

3)कृषि का वाणिज्यीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

4) कृषि के वाणिज्यिकीकरण से क्या समझते हो ?

कृषि का वाणिज्यीकरण

कृषि का वाणिज्यीकरण; भारत में ग्रामीण 19वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर थे लेकिन 1860 के उपरांत हमारे देश की गांव में विशेष रूप से कृषि में व्यवस्थित रूप से परिवर्तन हुए तथा कृषि का स्वरूप व्यापारिक हो गया। अब कृषक मात्र अपनी उपभोग हेतु ही वस्तुएं उत्पन्न नहीं करते थे बल्कि निर्यात हेतु भी वस्तुओं का उत्पादन करने लगे थे। इसके अलावा कृषक अब उपभोग की फसलों के साथ-साथ व्यापारिक फसलें भी उत्पन्न करने लगे। जिससे हमारे देश में कृषि का वाणिज्यकरण हो गया।

Krishi ka vargikaran ; 1860 के उपरांत हमारे देश में यातायात व विदेशी व्यापार का विकास होने से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में वृद्धि होने लगी। अब चाय कॉफी नारियल आलू इत्यादि का निर्यात किया जाने लगा। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी काफी चाय जोर इत्यादि की पैदावार करने में सहायता प्रदान की तथा हमारे देश के कृषक यह अनुभूत करने लगे कि व्यापारिक फसलों से उन्हें अधिक लाभ मिलता है। इसलिए कृषको ने अब उपभोग से कृषि की प्रवृत्ति में परिवर्तन हुआ तथा विशेषीकरण व स्थानीयकरण में वृद्धि हुई।

कृषि का वाणिज्यीकरण के कारण

(1) सिंचाई साधनों को जुटाना 

कृषि के वाणिज्यीकरण के कारण :कृषि के वाणिज्य करण के फल स्वरुप किसान अत्यधिक लाभ प्राप्त करने हेतु अधिक उत्पादन करने की इच्छा व्यक्त करने लगे परिणाम स्वरूप सिंचाई के साधनों के विकास होने लगे। सिंचाई के साधनों का विकास करने हेतु धन की आवश्यकता हुई। यह धन फसल को बेचने की खोज करने लगे। ऐसा बाजार उन्हें विदेश में ही मिल सकता था इसलिए कृषि उत्पादों के निर्यात में भी वृद्धि हुई।

(2) ब्रिटिश सरकार द्वारा सुविधाएं एवं प्रोत्साहन

वाणिज्यीकरण के कारण में ब्रिटिश सरकार की व्यापारिक फसलों के उत्पादन से अधिक रूचि लेने का कारण यह था। कि जिससे उन्हें भारत से कच्चा माल सहजता से प्राप्त होता रहे। इसलिए ब्रिटिश सरकार ने भारतीय कृषि को व्यापारिक फसलों के उत्पादन में हर संभव सुविधाएं प्रदान की और अत्यधिक फसल उत्पादन हेतु प्रशन भी प्रदान करने लगे।

(3) आर्थिक महामंदी 

 इसी समय ब्रिटेन की जहाज कंपनी उद्योग को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। 1869 के उपरांत पुराने जहाजों के स्थान पर नवीन जहाज आने लगे जिससे इस क्षेत्र में प्रतियोगिता प्रारंभ हो गई। इसके अतिरिक्त माल ढुलाई के किराए में कमी होने से भी व्यापारिक फसलों को अधिक प्रोत्साहन प्राप्त होने लगा।

(4) स्वेज नहर का निर्माण होना

 स्वेज नहर का निर्माण हो जाने से इंग्लैंड में भारत के मध्य दूरी कम हो गई। परिणाम स्वरूप कृषकों की यातायात लागत में भी कमी होने से कृषि के व्यवसायीकरण को अधिक प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।

(5) आवा-जाही के साधनों का विकास

 भारत में कृषि के वाणिज्य करण का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण यह था — आवागमन के साधनों का विकास। आवागमन के साधनों का विकास हो जाने से कृषक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने लगे तथा सड़कों का निर्माण तीव्र गति से होने लगा। सड़कों व रेलों को विभिन्न मंडियों व बंदरगाहों से संबंध किया गया। परिणाम स्वरूप व्यापारिक फसलों को और अधिक प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।

कृषि का वाणिज्यीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

(1) कृषि का वाणिज्यीकरण के प्रभाव से कृषि में काम आने वाली प्राचीन वस्तुओं के स्थान पर नई मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा। इसका परिणाम यह हुआ गांवों के कारीगर बेरोजगार हो गई और कुटीर उद्योग धंधे नष्ट हो गए।

(2) कृषि के वाणिज्यीकरण के परिणाम स्वरूप भारतीय वस्तुओं की विदेशों में मांग दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी। लेकिन साथ-साथ कीमतों में भी वृद्धि होने लगी। इसके फलस्वरूप किसान अपने घरों की अपेक्षा विदेशी बाजार एवं वस्तुओं की कीमतों पर ही ध्यान देने लगे इस प्रकार विदेशी बाजार में वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने लगा।

(3) कृषि के वाणिज्यकरण के प्रभाव से पहले ग्रामीण समाज जो आत्मनिर्भर थे उनकी वह आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई। परिणामस्वरूप देश में कृषकों हेतु एक राष्ट्रीय बाजार खुल गया जिसमें किसान अपनी फसलों को बेचता था तथा आवश्यकता पड़ने पर इस बाजार से वह वस्तुओं को खरीद भी सकता था।

(4) कृषि में वाणिज्यकरण के फल स्वरुप कृषकों की प्रवृत्ति में भी परिवर्तन हुआ। पहले कृषक अपने अनाज को संग्रहित कर के खाता था जो अकाल आदि के समय काम आ जाता था लेकिन अब कृष्ण भोग की वस्तुओं के स्थान पर व्यापारिक फसल अधिक होने लगी और फसल का अत्यधिक विक्रय करने लगे।

(5) नवीन भू राजस्व भूमि किराएदार प्रणाली में कृषि के वाणिज्य करण से महाजनों एवं साहूकारों को उत्तम अवसर प्राप्त हो गया। इसका कारण यह था कि भारत का कृषक अत्यंत गरीब था और कृषि के लिए वह महाजन से रुपए उधार लेना था यह उधार लिया रुपया फसल बेचने के उपरांत उसे महाजन को देना पड़ता था रुपया चुकाने के लिए किसानों को फसल काटते ही कम दामों पर बेचनी पड़ती थी। पता हो ऐसे समय में महाजन व साहूकारों कृषक ओं का शोषण करने लगे।

महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर  


कृषि का वाणिज्यीकरण क्या हैं?

कृषक का उपभोग की फसलों के साथ-साथ व्यापारिक फसलें भी उत्पन्न करने लगे। जिससे हमारे देश में कृषि का वाणिज्यकरण हो गया। 1860 के उपरांत हमारे देश में यातायात व विदेशी व्यापार का विकास होने से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में वृद्धि होने लगी।

कृषि का वाणिज्यीकरण के कारण क्या थे?

कृषि का वाणिज्यीकरण के मुख्य कारण - (1) सिंचाई साधनों को जुटाना (2) ब्रिटिश सरकार द्वारा सुविधाएं एवं प्रोत्साहन (3) आर्थिक महामंदी (4) स्वेज नहर का निर्माण होना (5) आवा-जाही के साधनों का विकास

कृषि का वाणिज्यीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव क्या पड़े?कृषि के वाणिज्यीकरण करण के प्रभाव बताइए?

कृषि के वाणिज्य करण से कृषि में काम आने वाली प्राचीन वस्तुओं के स्थान पर नई मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा। इसका परिणाम यह हुआ गांवों के कारीगर बेरोजगार हो गई और कुटीर उद्योग धंधे नष्ट हो गए।

कृषि वाणिज्यीकरण का अर्थ?

वाणिज्यीकरण का अर्थ कृषि के क्षेत्र में आई क्रांति से है, जिसने पूरे कृषि को नया रूप दान किया। और किसी के क्षेत्र में विकास और उन्नति हुई।

भारत में कृषि का वाणिज्यीकरण कब प्रारंभ हुआ?

भारत में ग्रामीण 19वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर थे लेकिन 1860 के उपरांत हमारे देश की गांव में विशेष रूप से कृषि में व्यवस्थित रूप से परिवर्तन हुए तथा कृषि का स्वरूप व्यापारिक हो गया।

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