कावूर कौन था? तथा कावूर की विदेश नीति

कैमिलो बेन्सो डी कावूर

 कावूर का जीवन परिचय ; इटली के एकीकरण में सबसे अधिक शक्तिशाली तत्व कावूर था। वह कट्टर देशभक्त और राजतंत्र वादी था। कावूर का जन्म 1810 ई० में पिडमाण्ट के त्यूरिन नामक नगर में हुआ था। कावूर के पिता मारक्विस डी कावूर एक कुलीन सामंत थे। कावूर शिक्षा प्राप्त करके इंजीनियर पद पर कार्य करने लगा, परंतु कार्य में रुचि ना होने के कारण वह 18 से 31 ईसवी में नौकरी छोड़कर अपनी जागीर की देखभाल करने लगा। उसने 1831ई० से 1843 ई० तक उसने इतिहास और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और इंग्लैंड फ्रांस का स्विट्जरलैंड की यात्राएं की। वह इटली की दशा पर बहुत दुखी हुआ और उसने विचार किया यदि मैं अंग्रेज होता तो अब तक कुछ बन गया होता और मैं पूर्णतया अनजान रहता।

उसने यूरोप के विभिन्न देशों की सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया। 847 में वह रेजीमेंण्टो (Risorgmento) नामक समाचार पत्र का संपादन करने लगा। धीरे-धीरे उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी और फिर वह इटली के एकीकरण के कार्य में लग गया। 1848 में कावूर को पिडमाण्ड की संसद का सदस्य चुन लिया गया। उसने विधानसभा द्वारा अनेक जनहित कारी कानून पारित करवाए। 1850 ई० मैं वह पिडमाण्ड का अर्थमंत्री बन गया। उसकी योग्यता और कार्यकुशलता से प्रभावित होकर पिडमाण्ड के शासक विक्टर इमैनुअल द्वितीय ने 1852 ई० में उसे अपना प्रधानमंत्री भी नियुक्त कर दिया। 


कावूर की विदेश नीति 

kavoor ki videsh niti; कावूर एक महान दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। वह आस्ट्रिया को इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा समझता था। वह अनुभव करता था कि जब तक आस्ट्रिया को इटली से निकाल बाहर नहीं किया जाएगा, इटली का एकीकरण होना असंभव है। इस उद्देश्य के लिए उसे विदेशी सहायता की अत्यंत आवश्यकता थी। उसकी इस नीति को स्पष्ट करते हुए लॉज का कहना है — “उसने इसे अपना उद्देश्य बनाया कि वह साड़ीनिया के लिए यूरोपीय शक्तियों की मित्रता प्राप्त करें।” कावूर का कथन यह था — “हम चाहे अथवा ना चाहे हमारा भाग्य फ्रांसे पर निर्भर है।” 


1. ऑस्ट्रिया का विरोध 

कावूर ने 1853 ई० मैं लोमबारडी से भागे हुए शरणार्थियों को साड़ीनिया में शरण दे दी और जब आस्ट्रिया ने लॉन्बार्डी पर अधिकार कर लिया तो उसने उसका विरोध किया और वियना से अपना राजदूत वापस बुला लिया। कावूर के इस कार्य का इंग्लैंड और फ्रांस दोनों ने समर्थन किया इस अवसर पर कावर ने यह कहा- “साड़ीनिया ने इटली की रक्षा की जो कि ऑस्ट्रिया के अवैधानिक आक्रमणों के नीचे कुचला जा रहा था।”

2. क्रीमिया का युद्ध 

कावूर  इटली के एकीकरण के लिए किसी यूरोपीय शक्ति का सहयोग प्राप्त करना चाहता था। वह इटली के एकीकरण की समस्या को एक अंतरराष्ट्रीय समस्या का रूप प्रदान करने का बहुत इच्छुक था। उसका यह कहना था— “इंग्लैंड से था फ्रांस से मित्रता इटली को यूरोप की वर्तमान स्थिति  से हटाने का एकमात्र साधन है।” फल स्वरुप 8854 में जब क्रीमिया का युद्ध आरंभ हुआ तो कावूर इंग्लैंड फ्रांस की ओर से युद्ध में कूद पड़ा। यद्यपि पूर्वी समस्या में पिडमाण्ट का कोई हित न था और ना ही रूस से उसकी शत्रुता थी यथापि कावूर में मित्र राष्ट्र की सहायता करके अपना उद्देश्य सिद्ध प्राप्त करने का प्रयास किया। 


3. फ्रांस समझौता 

पेरिस सम्मेलन के उपरांत कावूर ने इंग्लैंड के साथ फ्रांस से मित्रता करने का निश्चय किया। इंग्लैंड की जनता इटली के एकीकरण के पक्ष में थी परंतु इंग्लैंड की सरकार 1815 की ‘वियना व्यवस्था  को बनाए रखना चाहती थी। फ्रांस का सम्राट नेपोलियन तृतीय इटली के एकीकरण के तू पक्ष में था परंतु वह रोम  के पोप के नेतृत्व में इटली का संगठन चाहता था। ऐसी स्थिति में इंग्लैंड और फ्रांस से मित्रता करना कावूर के लिए एक कठिन कार्य था।

और इसी समय एक ऐसी घटना हुई, जिसने कावूर और फ्रांस को एक दूसरे के निकट ला दिया। ओरसीनी (Orsini) नामक एक क्रांतिकारी ने, जिसे मैजिनी ने गुप्त समिति का सदस्य होने के कारण देश से निष्कासित कर दिया था वह 14 जनवरी, 1858 को फ्रांस में नेपोलियन तृतीय पर बम फेंक दिया। जिसके कारण लगभग 150 व्यक्ति घायल हो गई और कुछ व्यक्तियों की मौत हो गई किंतु नेपोलियन तृतीय सुरक्षित बच गए थे। ओरसीनी ने बंदी बना लिया गया और जांच करने पर पता चला कि इस षड्यंत्र का निर्माण इंग्लैंड में हुआ था। इससे इंग्लैंड और फ्रांस में मनमुटाव हो गया। इसी समय और सीने न जेल खाने से नहीं भूले तृतीय को एक पत्र लिखा जिसमें उसने यह लिखा- जब तक इटली स्वतंत्र ना होगा तब तक यूरोप और आपको शांति ना मिलेगी मेरे देश को स्वतंत्रता कर दो। भविष्य में 25000000 नागरिक आपको इसके लिए आपको दुआ और आशीर्वाद  देते रहेंगे। 

ओरसीनी के पत्र से नेपोलियन बहुत प्रभावित हुआ और उसने कावूर से समझौता करने का निश्चय कर लिया। 20 जुलाई, 1858 को कावूर ने नेपोलियन तृतीय से मिलकर प्मलोमबीयर्स (Plombiers) का समझौता कर लिया। समझौता के अनुसार नेपोलियन तृतीय ने कावूर कोहली के एकीकरण में सहयोग देने का वचन दिया।


4. आस्ट्रिया से युद्ध

नेपोलियन तृतीय श्री समझौता करके कावूर ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 1859 ई० में ऑस्ट्रिया और इंडिया के मध्य युद्ध आरंभ हो गया इस युद्ध में कावूर और फ्रांस की सेनाओं की विजय हुई। लेकिन युद्ध के मध्य में ही नेपोलियन तृतीय ने अपनी सेना वापस बुला ली क्योंकि वह नहीं चाहता था कि इटली संगठित होकर यूरोप का एक शक्तिशाली राष्ट्र बन जाए। उसने ऑस्ट्रिया के साथ विलाफ्रेका की संधि कर ली। नेपोलियन के इस विश्वासघात से कावर को गहरी चोट लगी और उसने कहा - “विलाफ्रेका से पूर्व इटली का एकीकरण एक संभावना थी किंतु विलाफ्रेका के बाद ही हो एक अनिवार्यता बन गई है।”

साड़ीनिया की सेना अकेले ऑस्ट्रिया का सामना करने में असमर्थ थी विस्टर मैनुअल ने आस्ट्रिया के साथ ज्यूरिख की संधि कर ली। 

फिर इसके कुछ समय बाद कावूर ने नीस और सेवाय फ्रांस को देकर उसे अपने पक्ष में कर लिया और माध्यमिक लेकर राज्यों को साडीनिया में मिला लिया। इस प्रकार कावूर ने अपने प्रयासों से इटली के एकीकरण को संभव बना दिया। 6 जून 1861 ई० को इस महान देशभक्त और कुशल राजनीतिक की मृत्यु हो गई।


Important Short questions answers 

काउंट कावूर का जन्म कब हुआ?

कावूर का जन्म 1810 ई० में पिडमाण्ट के त्यूरिन नामक नगर में हुआ था।

कावूर कौन था?

इटली के एकीकरण में सबसे अधिक शक्तिशाली तत्व कावूर था। वह कट्टर देशभक्त और राजतंत्र वादी था।

कावूर इटली का प्रधानमंत्री कब बना था?

पिडमाण्ड के शासक विक्टर इमैनुअल द्वितीय ने 1852 ई० में उसे अपना प्रधानमंत्री भी नियुक्त कर दिया।

कावूर की विदेश नीति?

कावूर की विदेश नीति - 1. ऑस्ट्रिया का विरोध 2. क्रीमिया का युद्ध 3. फ्रांस समझौता 4. आस्ट्रिया से युद्ध

काउंट कावूर की मृत्यु कब हुई?

काउंट कावूर की मृत्यु 6 जून, 1861 में हुई।

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