गान्धार कला या गांधार शैली
गान्धार कला या गांधार शैली ; सम्राट कनिष्क का शासन काल प्रथम शताब्दी के अंतिम वर्षों से आरंभ होकर द्वितीय शताब्दी के प्रथम 19 वर्षों तक स्वीकार किया जाता है। उस काल में गांधार प्रदेश विभिन्न संस्कृतियों के संगम का क्षेत्र बन गया था। वह उत्तर पश्चिम से यूरोपीय संस्कृतियों का आगमन हुआ तथा पूर्व में भारतीय संस्कृति का शुभ आगमन हुआ। इनकी समीक्षा से उस नवीन मूर्तिकला का उद्भव हुआ जो कुषाण सम्राटों के शासन के अंतर्गत विकसित हुए हैं। यूनानी यों का सांस्कृतिक संबंध भारतीयों के साथ स्थिर रहा। गांधार देश में इस शैली का विकसित होने के कारण इस कला का नाम उस प्रदेश के अनुकूल ‘गांधार शैली’ पड़ा। कभी-कभी इसे ‘ग्रीको- बुद्धिस्ट’ तथा ‘इण्डोलेनिक’ कला भी कहते हैं।
गांधार कला के क्षेत्र
गांधार शैली में बनाई मूर्तियों की अत्यधिक संख्या गांधार प्रदेश में काबुल और तक उत्खनन में अनेक स्थलों पर उपलब्ध हुई हैं। गांधार शैली में निर्माण कला यूनानी शिल्पकार द्वारा भारतीय विशेष सामग्री के आधार पर की गई थी। बताओ गांधार कला में निर्माण शैली यूनानी और भाव प्रकाशन भारतीय परिलक्षित होता है जिससे आकार यूनानी तथा आत्मा भारतीय है। कला का प्रधान विषय बौद्ध धर्म रहा है। सर्वप्रथम बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण इसी शैली में किया गया था। इस शैली के अंतर्गत बुद्ध जी और उनके शिष्यों की सुंदर प्रतिमा ध्यान मुद्रा एवं अभय मुद्रा में प्रदर्शित की गई। इस कला का उद्भव रूप से विकास हुआ परंतु इस कलाकार प्रधान क्षेत्र भारत के उत्तर पश्चिम के भागों तक ही सीमित रहा भारत के अतिरिक्त कोरिया जापान और चीन आदि बौद्ध देशों में भी गांधार शैली अधिक प्रसिद्ध रही।
गांधार कला शैली की विशेषताएं
गांधार शैली के अनेक प्रतिरूप तक्षशिला पाकिस्तान के सीमांत प्रदेश और अफगानिस्तान में प्राप्त हुए हैं। उन्हें पाषाण महीन पिसे हुए चुने तथा पकाई हुई मिट्टी से निर्मित किया गया है। उन्हें सुनहरे रंग से रंग कर अत्यधिक सुंदर और आकर्षक बनाया गया है।
(1) गांधार शैली के शिल्पियों द्वारा वास्तविकता पर अधिक ध्यान देते हुए बाह्य सौंदर्य को मूर्त रूप देने का प्रयास किया गया है। इन मूर्तियों में आध्यात्मिकता एवं भावुकता के स्थान पर शारीरिक सौंदर्य की ही प्रधानता परिलक्षित होती है।
(2) गांधार शैली में उच्च कोटि की नक्काशी का प्रयोग करते हुए भावना एवं अलंकारिता का सुंदर सम्मिश्रण दिखाया गया है।
(3) गांधार शैली में महात्मा बुद्ध की मूर्ति का निर्माण करने में कलाकारों द्वारा इतनी अधिक स्वतंत्रता का प्रयोग किया गया है कि उनमें बुद्ध जी यूनानी देवताओं के समान दिखाई देते हैं।
(4) गांधार शैली में आभूषणों का इतनी अधिकता के साथ प्रयोग किया गया है कि वह मूर्तियां महात्मा बुद्ध के साधु स्वरूप को प्रदर्शित करते हुए उन्हें यूनानी नरेशों की भांति दिखती है।
(5) गांधार शैली की मूर्तियों में मांसपेशियां स्पष्ट झलकती है और वस्तुओं के बलों तथा लपेटों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है।
(6) बुद्ध की मूछें पर गांधार कला के विशेषता है। मथुरा तथा अन्य भारतीय क्षेत्रों में अन्य देवों के समान बुद्ध के भी मुझे नहीं बनाई गई थी।
(7) बुद्ध के शीश पर घुंघराले बालों का चलन भी गांधार कला से ही प्रारंभ हुआ।
(8) यूनानी प्रभाव के कारण गांधार कला में शारीरिक सौष्ठव पर अधिक ध्यान दिया गया है मुख मुद्राओं पर नहीं।
(10) गांधार शैली में नारी प्रतिमाओं को अपेक्षाकृत कम महत्व प्रदान किया गया है।
(11) गांधार कला में अधिकांश मूर्तियां पत्थरों से निर्मित की गई है लेकिन कुछ मूर्तियां संगमरमर के चुने सीमेंट पकी हुई मिट्टी द्वारा बनाई गई थी।
(12) गांधार कला में मुख्यतः बौद्ध धर्म संबंधित कथानको के दृश्य और बुद्ध तथा बोधिसत्व की मूर्तियां रखी गई है। जैन जैसा ब्राह्मण धर्म संबंधी मूर्तियों का इस काल में अभाव दिखाई पड़ता है।
(13) गांधार कला के अंतर्गत निर्मित बुद्ध प्रतिमाओं में कहीं भी महात्मा बुद्ध के मुख पर आध्यात्मिकता हुआ विश्व कल्याण की भावना प्रकट नहीं हुई है। बुद्ध की मूर्तियों में जिस प्रभा मंडल कृष्णा की गई है वह पूर्णतः अलंकरण हीन है।
वास्तविकता में गांधार कला का प्रमुख विषय युद्ध तथा उनके जीवन से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं हैं। गांधार शैली की विशेषता विद्वानों द्वारा भारत के उत्कृष्ट शैली के रूप में प्रशंसा की गई।
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