फासीवाद के सिद्धांत तथा विशेषताएं - letest education

 फासीवाद के सिद्धांत तथा विशेषताएं


फासीवाद के प्रमुख सिद्धांत 

(1) फासीवाद एक दल और एक नेता में विश्वास रखता है

सर्व सत्तावादी विचारधारा होने के कारण फासीवाद एक ही राजनीतिक दल के आधिपत्य में विश्वास करता है। फासिस्ट दल को मुख्य अंग माना जाता है और इसी को राज्य की सत्ता पर एकाधिकार प्राप्त है। इटली में फासिस्ट दल ने राज्य की समस्त सत्ता पर एकाधिकार कायम किया था और सभी प्रकार के विरोध को कुचला दिया था फासिस्ट शासन में नेता का स्थान सर्वोच्च होता है पार्टी तो दिखावा मात्र है।

(2) फासीवाद का उग्र राष्ट्रवाद में विश्वास 

फासीवाद उग्र राष्ट्रवाद का समर्थक है। वह दूसरे राष्ट्रों तथा उनकी संस्कृति से घृणा करता है। राष्ट्र के प्रति अपने इस दृष्टिकोण के कारण फासीवाद शांति और अंतरराष्ट्रीयता में विश्वास नहीं करता है। मुसोलिनी का कथन है कि - “अंतरराष्ट्रीय शांति कायरों का स्वप्न है। इस प्रकार फासिस्ट वादियों के विचार उग्र राष्ट्रवाद के समर्थक और अंतरराष्ट्रीय वाद के शत्रु हैं। 

(3) फासीवाद लोकतंत्र का विरोधी है 

फासीवाद जनतंत्र आदर्श को काल्पनिक और अव्यावहारिक मानता है। हसी वादियो ने स्वतंत्रता समानता और भ्रातृत्व के लोकतंत्र के नारे के स्थान पर कर्तव्य अनुशासन और त्याग का नारा लगाया। लोकतंत्र की मुख्य धारणा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को फासिस्ट वादी उपहास की दृष्टि से देखते हैं। जैसे मुसोलिनी का कहना था कि असमानता प्रकृति का नियम है और मानव जाति के कल्याण के लिए उपयोगी है। फासीवादी लोगों के अधिकारों में भी विश्वास नहीं रखता व्यक्ति के अधिकार वहीं तक है जहां तक राज्यों ने सकता है। 

(4) फासीवाद स्वतंत्रता को कर्तव्य मानता है 

फासीवाद स्वतंत्रता को मानव जीवन के लिए स्वाभाविक नामांकन राज द्वारा दी गई एक रियासत मात्र मानता है। फांसी वादियों का मत है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता राज्य की शक्ति पर निर्भर करती है। राज्य आंतरिक तथा बाह्य दृष्टि में जितना अधिक शक्तिशाली होगा व्यक्ति उतना ही अधिक स्वतंत्रता का उपभोग कर सकेगा। स्वतंत्रता को कोई भी व्यक्ति राज्य से अधिकार के रूप में नहीं मांग सकता वह राज्य के इच्छा पर निर्भर है। व्यक्तियों को जो कुछ स्वतंत्रता प्राप्त होती है वह राज्य उनके सामाजिक हितों को ध्यान में रखकर प्रदान करता है। 

(5) फासीवाद क्रम बंद दर्शन नहीं है 

फासीवाद एक प्रबंध दर्शन नहीं है। उसके पास ना तो अपना कोई निश्चित सिद्धांत है न ही कोई निश्चित कार्यक्रम। फासीवाद किसी सिद्धांत तथा निश्चित सिद्धांत कार्यक्रम में विश्वास नहीं रखता है। जैसा कि फासिस्टवादी नेता मुसोलिनी ने स्वयं कहा है— “फासिस्ट का संबंध किसी ऐसे नीति के पोषण से नहीं है जिस पर विवरण सहित पहले से ही एक विचार कर लिया गया है इसका जन्म तो कार्य की आवश्यकता के कारण हुआ है और प्रारंभ से ही यह सिद्धांत इतना होकर व्यवहारिक रहा है।” इस प्रकार फासीवाद प्रयोगात्मक को व्यवहारिक विचारधारा है।


निष्कर्ष conclusion 

 संपूर्ण विश्लेषण के उपरांत हम इस उद्देश्य पर पहुंचते हैं कि फासीवाद के सभी सिद्धांत मैं एक सत्य की परछाई दिखाई देती है। जिससे यह ज्ञात होता है कि फासीवाद किसी व्यक्ति को फांसी पर लटकाना नहीं है, बल्कि एक सर्वाधिकार वाद द्वारा तानाशाही की स्थापना करना है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इसके प्रणिता मुसोलिनी ने संपूर्ण विश्व में से भयंकर युद्ध की मसाले चला दी थी जो मानवीयकरण का सर्वनाश कर रही थी। जिस प्रकार यह शासन तूफान की तरह पैदा हुआ उसी प्रकार आंधी बन कर शीघ्र ही पतन की ओर चला गया। जिसके कारण आधुनिक युग में लोकतंत्र की महत्ता अपनी पूरी चरम सीमा पर है।

फासीवाद के सिद्धांत तथा विशेषताएं - letest education

फासीवाद की विशेषताएं 

(1) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विरोधी 

फासीवादी शासन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रश्न ही नहीं उठता वहां तो स्वतंत्रता संबंधी सभी बातों का निर्णायक राज्य है व्यक्ति नहीं। मुसोलिनी का कहना है — “स्वतंत्रता एक मृत शरीर है, मैं उसे ठोकर मारता हूं, इटली व्यवस्था और अनुशासन चाहता है। स्वतंत्रता नहीं, कानून और राज्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं।

(2) फासीवाद समाजवाद का विरोधी है

फासीवाद आधुनिक समय की मांग समाजवाद का विरोध करता है। फ़ासिज़्म वर्तमान पूंजीवाद समाज व्यवस्था में किसी प्रकार का क्रांतिकारी परिवर्तन करने का इच्छुक नहीं है। फासीवाद आर्थिक विषमताओं के निवारण का कोई ध्येय नहीं है।

(3) राज्य सर्वोपरि है 

राज्य की प्रकृति के संबंध में फासीवाद ईगल के विचारों का समर्थन करता है फासीवाद भी राज्य की एक आध्यात्मिक इकाई स्वीकार करता है जिसका स्वयं का अलग-अलग व्यक्तित्व और इच्छा है। जो कि राज्य में रहने वाले लोगों के व्यक्तित्व इच्छाओं के ऊपर है। फासीवाद लोगों के राज्य के प्रति निष्ठा पर बल देता है फासीवाद शासन में व्यक्ति का अस्तित्व राज्य के लिए है राज्य का व्यक्ति के लिए नहीं । 

(4) निगम राज्य 

मुसोलिनी के राज्य को निगम राज्य कहते हैं। उसमें संघों का बड़ा महत्व था। परंतु फासीवाद संघवाद के विपरीत जिनमें श्रमिकों की महत्व पर जोर दिया गया था। मुसोलिनी के संग में श्रमिकों की स्थिति शोचनीय थी। फासीवादी राज्य को व्यक्तियों का नहीं व्यवहारिक संघों का समूह मानते थे। इटली में श्रमिकों व मालिकों के 22 संघ थे जिन्हें कॉरपोरेशन कहा जाता था जिनमें फर्स्ट पार्टी के सदस्यों का बोलबाला रहता था।

(5) फासीवाद लोकतंत्र का विरोधी है

फासीवाद अधिनायक वादी अथवा सर्वाधिकार वादी दर्शन है। यह जनतंत्र यह धारणा वह आदर्शों उदारवाद और समाजवाद के विपरीत है। उदारवाद और जनतंत्र लोगों के हितों की रक्षा करते हैं। समाजवाद आर्थिक वर्ग के हितों की रक्षा करता है परंतु फासीवाद दर्शन में सजा लक्ष्य है। व्यक्ति साधन है तथा समाज का समस्त जीवन अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों की उपयोगिता द्वारा रा निर्मित है। आता फासीवाद जनतंत्र आदर्श को काल्पनिक और अव्यावहारिक मान्यता है।

(6) फासीवाद शांति वाद का विरोधी 

फासीवाद उग्र राष्ट्रवाद का समर्थक है। वह दूसरे राष्ट्रों को उनकी संस्कृति से घृणा करता है। इसका स्वाभाविक परिणाम युद्ध प्रचार होता है। मुसोलिनी के अनुसार — “साम्राज्यवाद जीवन का नित्य और अडिग नियम है।” 

(7) एक दलीय शासन 

फासिस्ट शासन में फसिस्ट पार्टी ही एकमात्र शासन दल है। इटली में फासिस्ट पार्टी ने और जर्मनी में नाजी पार्टी ने राज्य की समस्त सत्ता पर एकाधिकार कायम किया था। इसी प्रकार के विरोध को कुचल दिया। मुसोलिनी और हिटलर ने पार्टी के द्वारा ही सेना और नागरिक प्रशासन पर प्रभाव और आधिपत्य कायम रखा। इन देशों मैं भी निर्वाचन के ढंग होते हैं, परंतु लोग उन्हीं उम्मीदवारों को मत दे सकते थे जो पार्टी द्वारा खड़े किए गए होते हैं।

(8) जाति और राष्ट्रीय श्रेष्ठता 

फासिस्ट वादी अपनी जाति व राष्ट्र को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। मुसोलिनी इटली के निवासियों को सीजर का उत्तराधिकारी कहलाता  था। उसका कहना था कि इटली को समस्त यूरोप को पुनः एक बार जीतना है।

 

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