बौद्ध धर्म के उत्कर्ष (उत्थान उदय) के कारण | baudh Dharm ka Uday ke karn

 बौद्ध धर्म के उत्कर्ष के कारण 

छठी शताब्दी ईसवी पूर्व के धार्मिक आंदोलनों में बौद्ध धर्म के एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। महात्मा गौतम बुद्ध के जीवन काल में ही बौद्ध धर्म का अत्यधिक विकास हो गया था। उन्हें स्वयं अपने ही प्रयासों के द्वारा अपने जीवन काल में ही अपने सिद्धांतों के प्रसार से अपूर्व सफलता की उपलब्धि हुई थी। उनके निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात तो खुद काल बाद ही बौद्ध धर्म को विश्वव्यापी धर्म का स्थान ग्रहण करने में विस्मयजनक सफलता प्राप्त हुई थी। प्रसिद्ध अंग्रेज महान विद्वान मैक्स मूलर ने बौद्ध धर्म के एशिया महाद्वीप पर प्रसार का उल्लेख करते हुए लिखा है — “आज भी एशिया में बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या अन्य किसी भी धर्म के अनुयायियों की संख्या की अपेक्षा भले ही चाहे वह धर्म इस्लाम अथवा ईसाई धर्म ही हो उससे अधिक हैं।” बौद्ध धर्म की इस अप्रत्याशित उन्नति के अनेक कारण थे। 

बौद्ध धर्म के प्रचारक पश्चिमी एशिया में सीरिया, मेसोपोटामिया तथा सीरिया के पड़ोसी देशों में तथा अफ़्रीका और मकदूनिया में भी पहुंचकर धर्म प्रचार कार्य को प्रभावपूर्ण ढंग से संपन्न करने लगे। ईसवी सन आरंभ होने से पूर्व ही बौद्ध धर्म का कोरिया मातंग जापान और हिंद चीन में प्रसार किया जा चुका था। बौद्ध धर्म की इस अपूर्व उदय के कारण कुछ इस प्रकार है — 


 बौद्ध धर्म के उत्कर्ष (उदय, उत्थान) के कारण 

(1) महात्मा बुद्ध का प्रभावशाली व्यक्तित्व होना

गौतम बुद्ध ने सत्य ज्ञान के अन्वेषण के लिए राजश्री वैभव का परित्याग करके काशी वस्त्र धारण किए थे। भारतीय जनता सदैव से त्याग का आदर मान करती है। अथवा जनता बुद्ध जी के इस प्रकार के महान त्याग से अत्यधिक प्रभावित हुई। तथा इसके अतिरिक्त महात्मा बुद्ध का जीवन अत्यधिक पवित्र और सादगी की तथा सरलता से परिपूर्ण था। उन्होंने काम क्रोध मद लोभ घृणा द्वेष आदि आसुरी प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनका हृदय दया स्नेहा करुणा आदि मानवीय गुणों का भंडार था। उनके भव्य और प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व के सम्मुख सभी आदर्श शीश झुकाते और उनके आदेशों का पालन भी करते थे।

(2) वैदिक धर्म में त्रुटियां

 उसी समय वैदिक धर्म अनेक प्रकार की त्रुटियों और दोषों से विकृत हो चुका था यज्ञ और पुरोहितों का प्रभाव आवश्यकता से अधिक बढ़ चुका था। मोक्ष प्राप्ति के लिए यज्ञ और अनुष्ठानों का किया जाना आवश्यक माना जाने लगा था। यज्ञों में अपार मात्रा में धन खर्च होता था, तथा उनमें पशुओं और कभी-कभी मनुष्यों की बलि भी दी जाती थी। जनता इस प्रकार के निरर्थक रक्तपात के विरुद्ध खड़ी हो गई थी। अतः उनके समक्ष जब बुद्ध जी द्वारा मोक्ष प्राप्ति के सरल साधन रखे गए तो जनसाधारण में बौद्ध मत अंगीकार करने हेतु प्रतिस्पर्धा प्रारंभ शुरू हो गई। मैक्स मूलर ने बौद्ध धर्म की सफलता का वर्णन करते हुए लिखा है— बौद्ध धर्म की सफलता का एकमात्र रहस्य यही था कि उन्होंने जन जन के मानस की बात सोची थी।” आधा वैदिक धर्म की त्रुटियों ने भी बौद्ध धर्म के विकास में अत्यधिक सहयोग प्रदान किया था।

(3) समानता की भावना

महात्मा बुद्ध की सर्वाधिक क्रांतिकारी घोषणा यह थी कि उनका संदेश समान रूप से सबके लिए है। नर- नारी, युवा - वृद्धि धनवान- निर्धन तथा उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के व्यक्ति समान रूप से उन पर आचरण कर सकते हैं। उनकी दृष्टि में ना कोई ऊंचा था ना कोई नीचा था। तथागत ने स्वयं प्रकट किया था कि “हे भिक्षुओं! जिस प्रकार बड़ी बड़ी नदियां समुद्र में गिर कर अपने नाम का त्याग कर देती हैं उसी भांति व्यक्ति बन जाने पर मनुष्य में वर्ण भेद नहीं रहता। धार्मिक जीवन में सब ऊंच-नीच समान हो जाते हैं।” अस्तु जनता द्वारा समानता की भावना से परिपूर्ण बौद्ध धर्म का अत्यधिक उत्साह के साथ स्वागत किया गया। 

(4) धार्मिक सिद्धांतों में सरलता

उस काल के हिंदू धर्म में विविध प्रकार की सामाजिक और धार्मिक कुर्तियां फैल चुकी थी। कर्मकांड ओ का जाल से पूछा था। उनकी जटिलता और कठोरता ने जनता में उनके प्रति अरुचि उत्पन्न कर दी थी। ब्राह्मण स्वयं आदर्श न होते हुए भी जनता को अपने प्रभुत्व में रखने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। शारीरिक यातनाएं तपस्या आडंबर यज्ञ और कर्मकांड जनसाधारण के लिए कष्टदायक सिद्ध होने लगे थे। महात्मा बुद्ध ने इसके विपरीत इस प्रकार के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जिनका पालन प्रत्येक व्यक्ति सफलतापूर्वक कर सकता था। संस्कृत के अवैध दुर्ग में छिपे दुर्गम सिद्धांतों को बुद्ध जी ने जनता के समक्ष अति सरलता पूर्वक और सबकी समझ में आने योग्य भाषा में प्रस्तुत किया। उन्होंने जिस धर्म का प्रतिपादन किया वह होना तो कर्मकांड के जटिलता के भोज में दबा था और ना ही दर्शनशास्त्र की दुर्बुद्धिता के। जनता की भाषा का प्रयोग करते हुए बुद्ध जी तथा उनके अनुयायियों द्वारा उस ज्ञान को जिसे ब्रह्माणों ने गुप्त रखा हुआ था। उसे जनसाधारण के हृदय डकैती सरलता रूप में पहुंचाने में अद्भुत सफलता प्राप्त की। महात्मा बुद्ध के द्वारा मध्यम मार्ग के प्रतिपादन ने भी इसकी लोकप्रिया में योग दिया। फल स्वरूप जनता जनार्दन का विशाल समूह उनके अनुयायियों में सम्मिलित होने लगा तथा बौद्ध धर्म की गूज चारों दिशाओं में फैलने लगी। 

(5) वातावरण अनुकूलता

 बौद्ध धर्म व्यावहारिकता से ओतप्रोत था। परिस्थितियां परिवर्तित होने पर यह धर्म भी आंशिक सुधार से अपने को वातावरण के अनुकूल बना लेता था। विभिन्न देशों में उसने स्वयं को वहां के वातावरण और परिस्थिति के अनुकूल बना लिया था। इसी कारण से बौद्ध धर्म का चीन जापान वर हिंद चीन आदि देशों में अद्भुत प्रसार हुआ, तथा आज भी करोड़ों व्यक्ति बौद्ध धर्म अपनाए हुए हैं। 


(6) लोक भाषा का उपयोग

 महात्मा बुद्ध ने अपने सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए लोग भाषा का ज्यादा ज्यादा उपयोग किया तथा उसे अपना आधार बनाया। उन्हें यह भली-भांति ज्ञान था क संस्कृत भाषा का प्रयोग केवल शिक्षितों में प्रचलित होता था। बताओ यदि वह संस्कृत भाषा का प्रयोग करते तो उनकी शिक्षाओं का प्रचार और प्रसार केवल गिने-चुने शिक्षित व्यक्तियों तक ही सीमित रह जाता। इसलिए उन्होंने स्वयं इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए प्रकट किया था कि- “निर्धनों की भाषा निर्धनों तक पहुंचाना चाहता हूं।” इस प्रकार बुद्ध जी की शिक्षाओं और उपदेशों के प्रति जनता ने अत्यधिक रुचि का प्रदर्शन किया उन्हें समझा तथा उनका अनुसरण किया। 

(7) बौद्ध संघ की व्यवस्था

महात्मा बुद्ध ने जिन धार्मिक संघों की व्यवस्था की थी, उन संघो ने इस धर्म के प्रचार में बहुत अच्छा कार्य किया। 18 वर्ष से अधिक आयु के स्त्री-पुरुषों को, बिना ऊंच-नीच का भेद किए, यदि वे शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ होते थे तो उन्हें संघ का सदस्य बना लिया जाता था। बौद्ध भिक्षु ने स्वार्थी त्यागी और चरित्रवान होते थे। उनमें सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी होती थी। उनके द्वारा अपना संपूर्ण जीवन धर्म की सेवा के लिए अर्पित कर दिया जाता था। उनका त्याग पूर्ण जीवन जनता को अत्यधिक प्रभावित करता रहता था। महात्मा बुद्ध का वृक्षों के लिए आदेश था कि सदैव भ्रमण करते रहे। उनका यह भी कथन था कि, “हे भिक्षुओं ! अनेक के लाभ के लिए अनेक के सुख के लिए, विश्व के प्रति दयालुता के लिए शुभ कार्य के लिए तथा मनुष्य और देवताओं के कल्याण के लिए जाओ और भ्रमण करो।” इसी प्रकार बौद्ध धर्म के उपासक और प्रचारक बौद्ध भिक्षु वर्ष के 8 मार्च तक जनता को बौद्ध धर्म के सिद्धांत और सरल शिक्षाएं सुनाते और भ्रमण करते रहते थे। वर्षा ऋतु के 4 मास वह बौद्ध विहार में निवास करते थे। बिहारी में रहते हुए भी वे प्रातः काल और संध्या के समय एकत्रित जनसमूह को धार्मिक प्रवचन सुनाते रहते थे।

(8) प्रचार शैली 

महात्मा बुद्ध अपने धार्मिक सिद्धांतों का प्रचार सरल और रोचक शैली से करते थे। वह ना तो दार्शनिक वाद-विवाद में पढ़ते थे और नाही लंबे चौड़े व्याख्यानों के चक्कर में पढ़ते थे। अपनी बात समझाने के लिए उनके द्वारा जो उदाहरण प्रस्तुत किए जाते थे उन सभी का संबंध सीधे मनुष्य की दैनिक जीवन के साथ होता था। उपदेश देते समय बुद्ध जी कभी उत्तेजना के वशीभूत नहीं होते थे। अन्य धर्मा बुलंदियों की अनावश्यक आलोचना भी नहीं करते थे और उनकी निंदा ही करते रहते थे। बुद्ध जी के इस प्रकार के त्योहार और सरल सुबोध रोचक शैली का श्रोताओं पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ता था। 

(9) उग्र प्रतिस्पर्धा संप्रदाय का अभाव 

हिंदू धर्म की कुर्तियों के विरोध में जितने भी धार्मिक संप्रदायों का निर्माण किया गया था उन सभी में सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रभाव में बौद्ध धर्म ही था। अन्य सभी धार्मिक संप्रदाय उसके समक्ष महत्वहीन लगते थे। अतः बौद्ध धर्म का निरंतर अबाध गति से प्रचार और प्रसार होता रहा। अन्य देशों में बौद्ध धर्म के द्रुतगति से प्रसार होने का एक प्रमुख कारण यह भी था कि उस काल तक शक्तिशाली ईसाई धर्म तथा इस्लाम धर्म का जन्म भी नहीं हुआ था। तथा बौद्ध धर्म के प्रचारकों को विदेशों में किसी उग्र प्रतिस्पर्धा धर्म का सामना नहीं करना पड़ा। 

इन सभी कारणों से बौद्ध धर्म का उत्कर्ष या उदय हुआ।

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