शिमला सम्मेलन की असफलता के कारण - Shimla Conference

 शिमला सम्मेलन की असफलता के कारण 

25 जून, सन 1945 ईस्वी को भारत के विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों को भारत सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था। भीषण रोग के कारण महात्मा गांधी 6 मई सन 1945 ईस्वी को ही जेल से मुक्त कर दिए गए थे। अन्य कांग्रेसी नेताएं उस समय भी भारत की विभिन्न जेलों में बंद किए गए थे। शिमला सम्मेलन में सभी दलों के नेता सफलतापूर्वक भाग ले सके यह सोचकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें एक-एक करके मुक्त करना प्रारंभ कर दिया। 16 जून को कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्यों को बंदी ग्रह (जेल) से मुक्त कर दिया गया। इसके उपरांत उन नेताओं को भी जिन पर अहिंसा का आरोप सिद्ध नहीं होता था छोड़ दिया गया था। सब के अंत में हिंसा के दोषी नेताओं को भी जेल के बाहर कर दिया गया था।

शिमला सम्मेलन की असफलता 

शिमला सम्मेलन क्यों असफल रहा ? क्योंकि मोहम्मद अली जिन्ना कि हट के कारण शिमला सम्मेलन सफल नहीं हो सका था। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री खिज्र हयात खान ने मोहम्मद जिन्ना के दावे को असत्य सिद्ध कर दिया, परंतु इसका कोई सुखद परिणाम प्राप्त नहीं मिला। ‘वायसराय ने 14 जुलाई सन 1945 ईस्वी’ को सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह कहा किमेरा प्रथम उद्देश्य था कि सम्मेलन नवीन बनाई जाने वाली कार्यकारिणी परिषद की संख्या और गठन की विधि का निर्माण करें तथा अलग-अलग राजनीतिक दल अपने प्रतिनिधियों के नामों की सूची हमारे यहां भेज दे। इस प्रकार की सूचियों में आवश्यक होने पर मेरे द्वारा भी कुछ नाम संयुक्त किए जा सकते हैं। इस प्रकार ऐसी कार्यकारिणी परिषद तैयार हो जाती जो सम्राट की सरकार हमें तथा सम्मेलन की मान्य होती।

    इस प्रकार के संभव उपायों से सम्मेलन को सफल बनाने का प्रयत्न किया गया परंतु श्री मोहम्मद जिन्ना द्वारा किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया गया था। अतः इसका कारण यह सिद्ध हुआ वायसराय ने सम्मेलन को असफल घोषित कर दिया गया।


शिमला सम्मेलन की असफलता के मुख्य कारण 

मुस्लिम लीग के समक्ष सरकार और कांग्रेस जितना झुकती थी लीग उतनी ही मजबूत हो जाती थी। और उसे मोहम्मद अली जिन्ना आगे बढ़ना नहीं चाहते थे।

सरकार की अनिच्छा 

अंग्रेजी सरकार भारत के गतिरोध को दूर करने के विरुद्ध थी। फल स्वरूप उसके द्वारा सांप्रदायिकता का अड़ंगा खड़ा कर दिया गया था। यह भारत की स्वतंत्रता में सबसे बड़ी बाधा थी। यदि सरकार चाहती तो लीग की हठधर्मिता जाती रहती और वह सीधी भी हो जाती परंतु इंग्लैंड के प्रधानमंत्री श्री विण्सेण्ट चर्चित चुनावी सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील थे तथा अमेरिका और रूस को संतुष्ट करना चाहते थे इसी कारण सम्मेलन को सफलता की उपलब्धि नहीं हो सकी।

लीग की हठ (अभिमान) 

लीग ने हट कर लिया था कि वह पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य किसी बात को स्वीकार नहीं करेगी। कांग्रेस ने हिंदुओं के लाभों की उपेक्षा करते हुए मुसलमानों को हिंदुओं से अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रयास किया परंतु मुहम्मद जिन्ना ने उनकी बात और शिकार कर दी। आ जाओ मोहम्मद जिन्ना की हठ धर्मी ने सम्मेलन को असफल करने में पूर्ण योगदान दिया।

लीग को अधिक महत्व दिया जाना

 सरकार द्वारा मुस्लिम लीग को निर्णायक बनाकर शिमला सम्मेलन को सफल बनाने में लीटर की सहायता की गई थी लेख वीटो के अधिकार से सुसज्जित थी तथा अंग्रेजी सरकार के लिए अनुपस्थिति में सरकार का निर्माण करने के लिए तत्पर नहीं थी। पता शिमला सम्मेलन सफलता की प्राप्ति नहीं कर सकी और असफल सिद्ध हुई।


मुख्य बिंदु - 

शिमला सम्मेलन शिमला के राजकीय भवन में 25 जून सन 1945 यूपी को आरंभ हुआ था कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना आजाद ने कार्यकारिणी के सदस्यों की सूची प्रस्तुत की थी। सूची पर सांप्रदायिक वाद विवाद होने लगा जिसके कारण 2 दिन बाद सम्मेलन की कार्यकारिणी स्थगित कर दी गई थी। मतभेद इस आधार पर था कि उस सूची में मुस्लिम लीग के 3 सदस्यों के अतिरिक्त राष्ट्रीय मुसलमानों के भी दो प्रतिनिधि रखे गए हुए थे। इस प्रकार उच्च वर्ग के हिंदुओं से अधिक मुसलमानों को प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया परंतु मुस्लिम लीग के अध्यक्ष जिन्ना वॉइस राय की कार्यकारिणी में कांग्रेसी मुसलमानों के लिए जाने के विरोध में थे। उन्होंने प्रकट किया कि मुस्लिम लीग की मुसलमानों की एकमात् संस्था है तथा वायसराय की कार्यकारिणी में पांचों सदस्य लीग के ही होने चाहिए। अतः शिमला सम्मेलन सर्व सम्मत से सूची बनाने में असफल रहा।

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