समानता का अर्थ परिभाषा तथा प्रकार (रुप)
समानता - समानता प्रजातंत्र का एक प्रमुख तत्व है। समानता का अर्थ यह नहीं है कि सब मनुष्य सब बातों में समान हैं या होने चाहिए। शारीरिक बौद्धिक तथा वंशानुगत सामान काहे तो असंभव है। प्रकृति के द्वारा सभी एक रूप नहीं होते। अतः इस आधार पर मनुष्य मनुष्य में भेद नहीं किया जाना चाहिए सबको समाज राज्य तथा वृहत अर्थ में मानव समाज द्वारा विकास हेतु समान अवसर दिए जाने चाहिए राजनीतिक विज्ञान के अंतर्गत इसी धारणा को समानता की धारणा कहते हैं या समानता कहते हैं।
समानता की परिभाषाएं -
लोस्की ने कहा है कि- समानता मूल रूप में समानीकरण की प्रक्रिया है इसलिए प्रथम तो हो समानता का आशय विशेष अधिकारों के अभाव से है वित्तीय रूप में इसका आशय यह है कि सभी व्यक्तियों को विकास हेतु पर्याप्त अवसर प्राप्त होने चाहिए।”
बारकर के अनुसार- समानता का आशय उस स्थिति से है जिसमे मुझे जो अधिकार प्राप्त है वह दूसरो को भी उसी रूप में मिले, तथा जो अधिकार अन्य नागरिकों को प्राप्त है वह मुझे भी प्राप्त हो।
फ्रांस की राज्य क्ति काल में मनुष्यों के अधिकारों की घोषणा में कहा गया है- “सब मनुष्य अपने अधिकारों में स्वतंत्र और सामान पैदा हुए हैं और भविष्य में भी वैसे ही जारी रहेंगे। इसी प्रकार अमेरिका की स्वतंत्र घोषणा में भी लिखा हुआ है “हम इन शक्तियों को स्वमेव स्पष्ट मानते हैं कि सब व्यक्ति समान उत्पन्न हुए हैं।”
प्रो०पोसर्ट ने कहा था- स्वतंत्रता की समस्या का केवल एक ही हाल है और वह हल समानता में निहित है।
समानता के प्रकार (रुप)
(1) आर्थिक समानता (economic equality)-
आर्थिक समानता का तात्पर्य यह है कि समाज से आर्थिक विषमता आएं को समाप्त करके प्रत्येक व्यक्ति को बहुत ही के विकास के समान अवसर दिए जाने चाहिए। इस प्रकार आर्थिक समानता की धारणा संपत्ति के समान वितरण पर बल देती है। आर्थिक समानता का विचार आधुनिक युग की देन है। यह समाजवाद का प्रेरक सिद्धांत भी है।
(2) प्राकृतिक समानता (natural equality)-
प्राकृतिक समानता का तात्पर्य यह है कि जन्म से सभी व्यक्ति समान हैं और स्वतंत्र पैदा हुए हैं। समझौता वादी विचारक इस बात पर विशेष तैयार बोल देते हैं कि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है और सभी मनुष्य मौलिक रूप से बराबर और समान हैं। वर्तमान समय में प्राकृतिक समानता की अवधारणा स्वीकार नहीं की जा सकती है।
(3) सामाजिक समानता (social equality)-
सामाजिक समानता का तात्पर्य यह है कि समाज में सभी व्यक्ति समान हैं और स्वतंत्र हैं। अतः समाज में जाति धर्म लिंग संपत्ति आदि के आधार पर विभिन्न व्यक्तियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए यही सामाजिक समानता की मूल अवधारणा है। समाज से विशेष अधिकारियों का अंत करके सभी व्यक्तियों को सामाजिक उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिए।
(4) नागरिक समानता (civil equality) -
नागरिक समानता का तात्पर्य है कि सभी व्यक्तियों को नागरिकता के अवसर अर्थात नागरिक अधिकार व स्वतंत्रता में समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए जिससे वह अपने को उस स्थान का मूल नागरिक बता सके। सभी व्यक्तियों को कानून की दृष्टि में समान समझा जाना चाहिए और सभी को कानून का एक जैसा संरक्षण मिलना चाहिए।
(5) राजनीतिक समानता (political equality)-
राजनीतिक समानता का तात्पर्य है कि सभी व्यक्तियों को राजनीतिक अधिकार और अवसर समान रूप से मिलने चाहिए। दूसरे शब्दों में मत देने योगिता अनुसार निर्वाचित होने और सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के मिलना चाहिए। राजनीतिक समानता के अंतर्गत धर्म, जाति, लिंग, रंग, संपत्ति आदि के आधार पर कोई भेदभाव राजनीतिक क्षेत्र में स्वीकार नहीं किया जाता है।
(6) कानूनी समानता (legal equality)-
कानूनी समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों का कानून के सामने समान होना चाहिए। राज्य का चाहे निम्न वत कर्मी चपरासी हो चाहे उच्चतम अधिकारी राष्ट्रपति हो कानून के सामने सब बराबर हैं राज्य का कोई भी व्यक्ति कानून से परे नहीं है। और छोटे से बड़े सबको कानून की मर्यादा करनी चाहिए।
(7) नैतिक समानता (moral equality)-
नैतिक समानता का तात्पर्य है की व्याख्या सामान्य तो क्यों की जाती है कि नैतिक आध्यात्मिक दृष्टि से व्यक्ति समान है। सब में एक ही आत्मा तत्व पर्याप्त है सब मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं।
(8) शैक्षणिक समानता (educational equality)-
शैक्षिक समानता का तात्पर्य है कि समाज में सभी को शैक्षणिक समानता का अधिकार होना चाहिए जिससे व्यक्ति अपना मानसिक विस्तार कर सके और सही और गलत का जान होना चाहिए। धर्म, जाति लिंग, रंग, संपत्ति के आधार पर कोई शैक्षणिक समानता नहीं होनी चाहिए।
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