शीत युद्ध का अर्थ,परिभाषाएं, लक्षण - letest education

 शीत युद्ध  

    शीतयुद्ध (Cold War) -12 मार्च 1947- 26 दिसंबर 1991, द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व में दो महाशक्तिशाली महा शक्तियों का उदय हुआ। इन दो शक्तियों अर्थात संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ में कुछ मतभेद बने रहे। इन मतभेदों के पीछे तनाव, वैमनस्य, कटुता, मनोमालिन्य आदि भावनाएं पनपती रही। जैसे-जैसे दोनो महा शक्तियों के मध्य राजनीतिक प्रचार का युद्ध छिड़ गया। दोनों एक दूसरे का विरोध आलोचना तथा अपनी विचारधारा का प्रचार करने में संलग्न हो गए। सोवियत संघ तथा अमेरिका की इसी कटुता पूर्ण नीति के परिणाम स्वरुप अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दो शक्ति गुटों का उदय हुआ। यह गुट एक-दूसरे के विरुद्ध अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने में संलग्न हो गए। दोनों एक दूसरे को राजनीतिक सामाजिक सांस्कृतिक तथा सैनिक मोर्चे पर पराजित करने की क्रिया करने लगे। अथवा संपूर्ण विश्व में भाई तनाव तथा अविश्वास का वातावरण व्याप्त हो गया । विद्वानों ने इसी को ‘शीतयुद्ध' का नाम दिया।

     शीत युद्ध को विचारों का युद्ध भी कहा जाता है। शीत युद्ध द्वितीय महायुद्ध के उपरांत की अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिणाम है। यह एक प्रकार का वैचारिक संघर्ष था जिसमें पूंजीवादी तथा साम्यवादी दो शक्तियां संघर्षरत थी। अतः हम शीत युद्ध को वैचारिक प्रणालियों का स्वाद आंतरिक संघर्ष भी कह सकते हैं ।  मार्गेन्थो ने लिखा था शीत युद्ध पुरानी शक्ति संतुलन राजनीति का नवीनीकरण है जिसमें बदले अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिवेश में दो महाशक्ति अमेरिका और सुबह संघ विश्व के अधिकांश राज्यों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने के लिए निरंतर संघर्ष कर रही थी।

(Cold War) शीतयुद्ध का अर्थ एवं परिभाषा

 शीत युद्ध का अर्थ sheet yuddh ka Arth; शीत युद्ध' शब्द से अमेरिका तथा सोवियत संघ की तनावपूर्ण स्थिति का आभास होता है। यह स्थिति द्वितीय महायुद्ध के पश्चात अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में परिलक्षित हुई इस तनाव तथा शत्रुता पूर्ण वातावरण में बिना किसी प्रकार के युद्ध के वैचारिक घृणा (Ideology hetred) राजनीतिक अविश्वास, कूटनीतिक प्रसार, सैनिक प्रतिस्पर्धा, एक दूसरे के विरुद्ध गुप्तचर क्रिया मनोवैज्ञानिक युद्ध तथा कटुता पूर्ण परिदृश्य देखा गया।  ‘शीत-युद्ध' शब्द का प्रयोग प्रथम बार अमेरिकी राजनेता बर्नार्ड बारूच द्वारा किया गया परंतु इसे प्रो०लिप्पमैन ने लोकप्रिय बनाया।

★   यह एक ऐसी दशा थी जिसमें युद्ध तो किसी भी क्षेत्र में नहीं था किंतु प्रत्येक समय युद्ध की-सी स्थिति बनी रहती थी। शीत युद्ध सोवियत संघ तथा अमेरिका के पारस्परिक संबंधों की एक ऐसी सोचनीय दशा थी जिसमें दोनों एक दूसरे के विरुद्ध शत्रुता का विचार रखते थे वह शत्रु युद्ध ना लड़कर मनोवैज्ञानिक युद्ध से एक दूसरे को निरंतर नीचा दिखाने का प्रयत्न करते थे। इस युद्ध के लिए रण क्षेत्र के स्थान पर मानव मस्तिष्क का प्रयोग किया गया था क्योंकि यह दो विचारों के मध्य का युद्ध था। इसमें एक पक्ष दूसरी पक्ष को राजनीतिक आर्थिक सामाजिक तथा दृष्टि से नीचा दिखाने के लिए प्रयत्न करता रहता था।

 ★    शीत यद्ध वास्तव में नरसंहार के दुष्परिणामों से बचते हुए मानसिक रूप से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक नवीन तरीका था। इसी हम वाक्य युद्ध भी कह सकते हैं क्योंकि इसमें प्रचार तंत्र रेडियो टेलीविजन समाचार पत्र में आधी साधनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी क्योंकि इन्हीं माध्यमों से ही युद्ध किया जाता था। दोनों गुट अपनी अपनी शक्ति श्रेष्ठता तथा अन्याय प्रियता का दावा करते थे। इस प्रकार शीत युद्ध प्रचारक युद्ध था जिसमें अमेरिका सोवियत संघ को शत्रु मानता था और सुबह संघ अमेरिका के विरुद्ध घृणा पूर्व तरीकों से प्रचार करता था शुद्ध शब्द का प्रयोग अब ऐसी परिस्थिति के लिए होने लगा जिसमें वास्तव में युद्ध लड़ा तो नहीं जाना परंतु युद्ध जैसा पागलपन या जैसा कि नेहरू ने कहा “दिमाग का युद्ध एक स्नायु युद्ध (Nerve War)तथा प्रचार युद्ध चलता रहता है।”

कुछ विचारकों के द्वारा दी गई शीतयुद्ध की  परिभाषा- 

शीत युद्ध की परिभाषा ; 

(1) एम० एस० राजन के अनुसार “शीत युद्ध शक्ति संघर्ष की मिली-जुली राजनीति का परिणाम है । दो विरोधी विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है दो परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है विरोधी चिंतन पद्धतियों तथा संघर्षपूर्ण राष्ट्रीय हितों की अभिव्यक्ति है जो कि समय और परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के पूरक के रूप में बदलती रही हैं।”

(2) पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार “शीत युद्ध पुरातन शक्ति संतुलन की अवधारणा का नया रूप है यह दो विचारधाराओं का संघर्ष ना होकर दो भीम का शक्तियों का पारस्परिक संघर्ष है।”

(3)जॉन पोस्टर ने कहा है “शीत युद्ध नैतिक दृष्टि से धर्म युद्ध था अच्छाइयों के लिए बुराइयों के विरुद्ध शक्ति के लिए त्रुटियों के विरुद्ध और धर्म परायण लोगों के लिए नास्तिकों के विरुद्ध संघर्ष था।”

(4) के०पी०एस० मेनन के अनुसार “शीत युद्ध जैसा कि विश्व की ने अनुभव किया दो विचारधाराओं, तो पद्धतियों, दो गुटों, दो राज्यों और जब वह अपनी पराकाष्ठा पर था तो दो व्यक्तियों के मध्य उग्र संघर्ष था; दो विचारधाराएं थी— पूंजीवाद तथा साम्यवाद। दो पद्धतियों थी — संसदीय लोकतंत्र तथा जनवादी जनतंत्र, बुजुरआ जनतंत्र तथा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही । दो गुट थे—  नाटो तथा  वारसा फैक्ट। दो राज्य थे —संयुक्त राज्य अमेरिका तथा संघ व्यक्ति थे जोसेफ स्टालिन तथा जॉन पोस्टर डलेस।”

इन सारे परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं- इस प्रकाश शीत युद्ध शास्त्र युद्ध की श्रेणी में न रखकर युद्ध का वातावरण कहा जा सकता है क्योंकि शीत युद्ध के काल में युद्ध के समान वातावरण बना रहता था। नेहरू जी ने कहा है, आइए समझे शीत युद्ध का वातावरण, निलंबित मृत्युदंड के वातावरण (Some kind of suspended death sentence) के समान तनावपूर्ण है। इसी वास्तविक युद्ध की विस्मयकारी तथा विनाशकारी शक्ति से भी बड़ी शक्ति वाला युद्ध कहा जा सकता है।


शीतयुद्ध के लक्षण (characteristics of the cold war)- 

(1) शीत युद्ध प्रचार के माध्यम से तथा वाक्य युद्ध के रूप में विश्व राजनीति में व्याप्त हो गया था।

(2) शीत युद्ध ऐसा संघर्ष था जो सोवियत संघ तथा अमेरिका जैसी महा शक्तियों के मध्य था।

(3) शीत युद्ध का प्रभावशाली लक्षण यह था कि इसमें दोनों महाशक्ति या प्रचार गुप्त 3 सैनिक हंसते सैनिक संध्या तथा विभिन्न प्रकार के संगठनों का निर्माण करती रहती थी ऐसा करके भी अपनी शक्तियों को सुदृढ़ कर रही थी।

(4) दोनों शक्तियों ने विश्व में तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी थी जिसके कारण युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी , जिसे शुद्ध का नाम दिया गया।

(5) यह युद्ध भयानक था क्योंकि इसके गर्म युद्ध में परिवर्तित होने का कोई निश्चित समय नहीं था।

(6) युद्ध मस्तिक से लड़ा जाने वाले विचारों का युद्ध था अथवा इससे सभी देश भयभीत भी रहते थे।

(7) यह धर्म युद्ध( Hot war)  से भी अधिक भयानक था।


इसे जरूर से पढ़ेशीत युद्ध के प्रमुख कारण 


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शीतयुद्ध क्या है?

शीत युद्ध को विचारों का युद्ध भी कहा जाता है। शीत युद्ध द्वितीय महायुद्ध के उपरांत की अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिणाम है। यह एक प्रकार का वैचारिक संघर्ष था जिसमें पूंजीवादी तथा साम्यवादी दो शक्तियां संघर्षरत थी।

शीत युद्ध कब हुआ था?

12 मार्च 1947- 26 दिसंबर 1991, द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व में दो महाशक्तिशाली महा शक्तियों का उदय हुआ।

शीत युद्ध की परिभाषा क्या है।

शीत युद्ध पुरातन शक्ति संतुलन की अवधारणा का नया रूप है यह दो विचारधाराओं का संघर्ष ना होकर दो भीम का शक्तियों का पारस्परिक संघर्ष है।”

शीत युद्ध कैसे हुआ?

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व में दो महाशक्तिशाली महा शक्तियों का उदय हुआ। इन दो शक्तियों अर्थात संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ में कुछ मतभेद बने रहे। इन मतभेदों के पीछे तनाव, वैमनस्य, कटुता, मनोमालिन्य आदि भावनाएं पनपती रही। जैसे-जैसे दोनो महा शक्तियों के मध्य राजनीतिक प्रचार का युद्ध छिड़ गया।

शीत युद्ध के लक्षण क्या थे?

दोनों शक्तियों ने विश्व में तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी थी जिसके कारण युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी , जिसे शुद्ध का नाम दिया गया।

शीत युद्ध किस- किस के बीच हुआ था?

शीत युद्ध संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुआ था।

शीत युद्ध मैं किन किन विचारधारा के मध्य हुआ?

शीत युद्ध पूंजीवादी विचारधारा और साम्यवादी विचारधारा के मध्य हुआ।

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