संघात्मक शासन प्रणाली का अर्थ, विशेषताएं, गुण एवं दोष

संघात्मक शासन प्रणाली

संघात्मक शासन का अर्थ ; संघात्मक शासन प्रणाली जब दो या दो से अधिक राज्य मिलकर अपने लिए एक शब्द सरकार की स्थापना करते हैं। और साथ ही अपने आंतरिक क्षेत्र में स्वतंत्र भी रहते हैं तो शासन का स्वरूप संघात्मक होता है। संघात्मक शासन प्रणाली में विभिन्न राज्य एक संग सरकार की स्थापना करते हैं और संघ की यह सभी कार्य अपनी आंतरिक क्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं। संघात्मक शासन, शासन व्यवस्था के अंतर्गत एक नवीन देन है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द लैटिन भाषा की 'फेडरेशन'(Federation) शब्द से निकला है जिसका अर्थ है संधि समझौता। अब शब्द विपत्ति के दृष्टिकोण से समझौते द्वारा निर्मित राजीव को संघ राज्य कहा जाता है संवैधानिक दृष्टिकोण से संघात्मक शासन का तात्पर्य एक ऐसे शासन से होता है जिसमें संविधान द्वारा ही केंद्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारों के बीच शक्ति वादन कर दिया जाता है तथा संविधान में ऐसी व्यवस्था कर दी जाती है कि इन दोनों पक्षों में से कोई अकेला इस शक्ति विभाजन में परिवर्तन कर सकें। भारत, अमेरिका, स्विट्जरलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि अधिक राज्यों में संघात्मक सरकारों का अस्तित्व है।

संघात्मक शासन प्रणाली की परिभाषाएं 


गार्नर के अनुसार - “संघात्मक शासन पद्धति है जिसमें समस्त शासकीय शक्ति एक केजरी सरकार तथा विभिन्न राज्यों स्वच्छ क्षेत्रीय उप विभागों की सरकारों के मध्य विभाजित एवं वितरित रहती है जिनको मिलाकर संघ का निर्माण होता है।”

डायसी के मतानुसार- “संघात्मक सरकार वह योजना है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा राज्यों के अधिकारों में सामंजस्य उत्पन्न करना है।”

फ्रीमेन के अनुसार - “सिद्धार्थ नक्शा शुरू हो है जो दूसरे राष्ट्रों के साथ संबंध में एक राज्य के समान हो परंतु आंतरिक शासन की दृष्टि से वह अनेक राज्यों का योग हो।”

जेलीनेक के अनुसार - “सब राज्यों का एक संयोग होता है जिसमें इस सहयोग के परिणाम स्वरूप विधायक राज्यों के उच्चतर एक प्रभुत्व संपन्न सत्ता की प्रतिष्ठा हो जाती है परंतु इस सप्ताह में उन राज्यों का भी भाग होता है।”

संघात्मक शासन प्रणाली के मुख्य के लक्षण अथवा विशेषता 

(1) स्वतंत्र न्यायपालिका

(2) लिखित संविधान

(3) शक्तियों का विभाजन

(4) दोहरा संविधान

(5) सांस्कृतिक अधिकार 

(6) इकाइयों में एकता तथा निकटता

संघात्मक शासन व्यवस्था की विशेषताएं

(1) स्वतंत्र न्यायपालिका

 संघात्मक शासन प्रणाली में शब्द व राज्य सरकारों के बीच होने वाले झगड़ों या संघ के कार्यों के बीच होने वाले झगड़ों का निर्णय करने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की जाती है इसके अतिरिक्त न्यायपालिका व्यवस्थापिका द्वारा पारित कानूनों को अवैध घोषित कर सकती है यदि वे संविधान की किसी धारा या धाराओं की उपेक्षा करते हो तो। 

(2) लिखित संविधान

 संघात्मक शासन प्रणाली का मुख्य लक्षणों है कि इस व्यवस्था में संविधान लिखित होता है और इस लिखित संविधान में जनता और सरकार के अधिकारों का स्पष्ट रूप से विवरण रहता है।

(3) शक्तियों का विभाजन

संघात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों का विभाजन शब्द सरकार तथा इकाई राज्यों की सरकारों के बीच में किया जाता है राष्ट्रीय महत्व के विषय संघीय सरकार को दिए जाते हैं और स्थानीय महत्व के विषयों को इकाई राज्यों को सौंपा जाता है। भारत में इसी उद्देश्य से तीन सूचियां बनाई गई हैं। एक सूची को संघ सूची कहते हैं जिसमें वर्णित विषयों पर राज्य की व्यवस्थापिका कानून बनाते हैं। तीसरी समवर्ती सूची में ऐसे विषयों को सम्मिलित किया जाता है जिन पर राज्य सरकार व संघ सरकार दोनों ही कानून बना सकती है, किंतु सभी सरकार के द्वारा निर्मित कानूनों को ही प्राथमिकता दी जाती है। अवशिष्ट अधिकार संघ सरकार के पास होते हैं।

(4) दोहरा संविधान

 संघात्मक राज्य में दोहरे संविधान की व्यवस्था होती है। एक संविधान केंद्र का होता है तथा दूसरा संविधान राज्यों का होता है।

(5) सांस्कृतिक अधिकार

राज्यों को अपनी संस्कृति लिपि भाषा बनाए रखने का अधिकार प्राप्त होता है। 

(6) इकाइयों में एकता तथा निकटता

संघ में सम्मिलित होने वाले सभी राज्यों में सांस्कृतिक एकता पाई जाती है। इन सभी इकाइयों में एक की इच्छा भी पाई जाती है क्योंकि सभी इकाइयां अपने-अपने का क्षेत्र में स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करती हैं। संघात्मक शासन प्रणाली की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि इन सभी इकाइयों में निकटता की भावना पाई जाए अर्थात इकाइयां एक दूसरे के निकट स्थित हों। दूर-दूर रहने वाले राज्य एक सफल संघ का निर्माण नहीं कर सकते हैं।


संघात्मक शासन प्रणाली के गुण

1. शक्ति विभाजन का सिद्धांत 

संघात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों का विभाजन संघ सरकार तथा इकाई राज्य सरकारों में होता है इस प्रकार का विभाजन करने के लिए संघ सूची राज्य सूची तथा समवर्ती सूची आदि का निर्माण किया जाता है इस प्रकार का विभाजन हो जाने से राज्यों की सरकार तथा संघ सरकार के बीच संघर्ष की संभावना कम होती है अतः इस शक्ति विभाजन से दोनों में सामान्य से रहता है। डायसी के अनुसार संघ शासन राष्ट्रीय एकता और राज्यों के अधिकारों में सामंजस्य स्थापित करने की अद्भुत राजनीति पद्धति है।

2. अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उन्नति

 संघात्मक शासन प्रणाली में कई राज्यों को आंतरिक क्षेत्रों में पूर्ण स्वतंत्रता रहती है। किंतु अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में संघ सरकार का ही उत्तर दायित्व होता है। इस प्रकार संग सरकार के पास केवल अंतरराष्ट्रीय मामलों को भी हल करने का कार्य होता है। जिससे अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में संघात्मक शासन को ही सफलता मिलती है।

3. राष्ट्रीय एकता की दृढ़ता

संघात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रीय भावनाओं की दृढ़ता  पाई जाती है । क्योंकि कई राज्य परस्पर मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं इसलिए राष्ट्रीय एकता की दृश्यता देखने को मिलती है।

4. स्थानीय स्वराज को प्रोस्थान मिलता है

संघात्मक शासन प्रणाली में स्थानीय संस्थाओं के विकास पर बल दिया जाता है। स्थानीय समस्याओं को हल करने का उत्तरदायित्व स्थानीय संस्थाओं व समितियों पर ही छोड़ दिया जाता है। इस दशा में नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है और स्थानीय स्वराज्य की संस्थाओं तथा नगर पालिकाओं, जिला परिषदों, क्षेत्रीय समितियों का विकास होता है।

5. निरंकुशता का अभाव 

संघात्मक शासन प्रणाली का संविधान लिखित एवं कठोर होता है। इसमें जनता तथा सरकार दोनों के अधिकारों का वर्णन होता है। अतः संघात्मक शासन प्रणाली में राज्य की संप्रभुता अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का दुशासन नहीं करती है। इस शासन प्रणाली में समस्त प्रभुता संविधान में ही निहित होती है।

(6) प्रशासन में कुशलता 

संघात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों का विभाजन पूर्ण रूप से होता है। सरकार का प्रत्येक अंग अपने-अपने कार्य को ठीक प्रकार से संपन्न करता है। सभी को अपने अधिकारों का ज्ञान होता है अतएव यह शासन प्रणाली प्रशासकीय कुशलता के लिए सर्वोत्तम शासन प्रणाली है। सभी कार्यों का आंतरिक क्षेत्र में स्वतंत्र कर दिया जाता है अतः आंतरिक प्रशासन कुशलता से चलता है।

संघात्मक शासन प्रणाली के दोष

1. राज्यों में गुड-बंदिया देखने को मिलती है 

 संघात्मक शासन प्रणाली में  में सम्मिलित होने वाले राज्य कभी भी संघ से असंतुष्ट होकर अपने गुड बद्दी करके संघ से अलग हो सकते हैं। इसलिए संग सरकार के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो सकता है तथा इनमें राष्ट्रीय एकता को भी गहरा खतरा रहता है। 

2. दोहरा राज्य भक्ति

 संघात्मक शासन प्रणाली में नागरिक को दोहरी राज्य भक्ति का परिचय देना पड़ता है। प्रथम तो वह उस राज्य का नागरिक है जिसमें वह निवास करता है। दूसरे, वह संघ सरकार का भी नागरिक है। कभी-कभी नागरिकों के लिए कुछ ऐसी जटिल प्रश्न उत्पन्न हो जाते हैं जिनमें वह यह  निर्णय नहीं ले पाते हैं की उनको किस सरकार के प्रति भक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए।

3. प्रशासकीय निर्बलता (कमजोरी) ‌‌ 

संघात्मक शासन प्रणाली में प्रकाश की शक्तियों का विभाजन रहता है। इस विभाजन के परिणाम स्वरूप प्रकाश किए कार्यो में शिथिलता आ जाती है। तथा कोई भी कार्य सरलता से नहीं किया जा सकता क्योंकि उत्तरदायित्व केंद्र तथा राज्यों की सरकारों विभाजिता रहता है। वस्तुतः संघात्मक शासन एकात्मक की अपेक्षा निर्बल रहता है । प्रो०डायसी  कहते हैं “एकात्मक शासन की तुलना में संघीय शासन निर्बल है।”

4. यह एक कठोर शासन प्रणाली

 संघात्मक शासन प्रणाली में संविधान को सरलता से परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। उसमें संशोधन या परिवर्तन करने की प्रक्रिया अत्यंत ही जटिल होती है। राज्य की सरकारी अपनी इच्छा या सुविधा के अनुसार कोई भी परिवर्तन संघात्मक संविधान में नहीं कर सकती है। इसलिए कहा गया है कि संघात्मक शासन प्रणाली एक कठोर शासन प्रणाली है जिसमें जनता के हितों की उपेक्षा की जाती है।

5. अपव्यय

संघात्मक शासन प्रणाली में दो प्रकार के सरकारी काम करती हैं— प्रथम सरकार और दूसरी इकाई राज्यों की सरकारें। इन दोनों सरकारों में कार्यों व संगठन का समानता पाई जाती है, अंतर केवल इतना है कि संग सरकार विदेशी की नीति से संबंधित है और राज्य की सरकारें आंतरिक नीति से संबंधित है। इस प्रकार संघात्मक शासन प्रणाली व्यय अधिक होता है इसलिए इस शासन प्रणाली को अपव्यय शासन प्रणाली कहते हैं।

6. सर्व व्यापकता का अभाव

संघात्मक शासन प्रणाली केवल विशाल देशों के लिए ही उपयुक्त है। यह और शासन प्रणाली छोटे-छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती इसलिए युवा शासन प्रणाली सर्वव्यापक नहीं है।

(7) वैधानिक संघर्षों का भय 

संघात्मक शासन प्रणाली में संघ सरकार तथा राज्यों की सरकारों के बी संविधान की धाराओं के संबंध में कुछ विचार विभिन्नता हो सकती है। उसे दिशा में संघात्मक शासन प्रणाली संवैधानिक संघर्षों का अखाड़ा बन जाती है। जब संघ सरकार वह राज्य सरकार दोनों एक ही विषय पर कानून बना देती है तब संघर्ष की सीमा और भी बढ़ जाती है और संवैधानिक संकट उपस्थित हो जाता है, जिसको यथासंभव दूर करने के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है।


महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

संघात्मक शासन प्रणाली क्या है?

संघात्मक शासन प्रणाली जब दो या दो से अधिक राज्य मिलकर अपने लिए एक शब्द सरकार की स्थापना करते हैं। और साथ ही अपने आंतरिक क्षेत्र में स्वतंत्र भी रहते हैं तो शासन का स्वरूप संघात्मक होता है। संघात्मक शासन प्रणाली में विभिन्न राज्य एक संग सरकार की स्थापना करते हैं ।

संघात्मक शासन की परिभाषा?

संघात्मक शासन पद्धति है जिसमें समस्त शासकीय शक्ति एक केजरी सरकार तथा विभिन्न राज्यों स्वच्छ क्षेत्रीय उप विभागों की सरकारों के मध्य विभाजित एवं वितरित रहती है जिनको मिलाकर संघ का निर्माण होता है।

संघात्मक शासन की विशेषताएं ?

(1) स्वतंत्र न्यायपालिका (2) लिखित संविधान (3) शक्तियों का विभाजन (4) दोहरा संविधान (5) सांस्कृतिक अधिकार

संघात्मक शासन प्रणाली के गुण क्या है?

(1) शक्ति विभाजन का सिद्धांत। (2) अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उन्नति। (3) राष्ट्रीय एकता में दृढ़ता। (4) निरंकुशता का अभाव।

संघात्मक शासन के दोष क्या है?

(1) राज्यों की गुट- बंदियां। (2) दोहरा राज्य भक्ति। (3) प्रशासकीय कमजोरी। (4) एक कठोर शासन प्रणाली।

1 टिप्पणियाँ

  1. हमारा उद्देश्य,
    प्रत्येक विद्यार्थी को ऐसी सामग्री उपलब्ध कराना जिससे उसकी शिक्षा में कोई बाधा उत्पन्न ना हो। जो हमने अपने विद्यार्थी जीवन में मुश्किलें झेली हैं और हमारी कोशिश यह रहेंगी कि वे मुश्किलें हम आपको नहीं झेलने देंगे, इसलिए इसमें जो article हम पब्लिश करेंगे वह Notes हमने अपने विद्यार्थी जीवन में अपने notebook में note किए थे। बस उन्हीं सामग्रियों को हम अब तक पहुंचा रहे हैं।
    धन्यवाद 🙏✅

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