न्याय का अर्थ, परिभाषा, प्रकार , तत्व- letest education

 न्याय का अर्थ परिभाषा प्रकार एवं सिद्धांत


न्याय का अर्थ-  न्याय शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द (Justice) का हिंदी अनुवाद है। अंग्रेजी भाषा शब्द लैटिन भाषा के ‘जस’ से बना है जिसका अर्थ उस भाषा में बांधना या संयोजन है। शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर न्याय का अर्थ संयोजित करना या बांधना है। इस दृष्टि से न्याय वह व्यवस्था है जो व्यक्तियों को एक दूसरे से जोड़ती है। समय समय पर न्याय की अवधारणा में परिवर्तन होता रहता है। कभी न्याय को ईश्वर की इच्छा या पूर्व जन्म के कर्मों का फल कहा जाता है तो कभी इसे जैसी करनी वैसी भरनी के रूप में भी स्वीकार करना पड़ता है। न्याय का अभिप्राय सामाजिक जीवन की उस स्थिति से है जो व्यक्ति के आचरण तथा सामाजिक कल्याण के अनुकूल समन्वय स्थापित किया जा सके।

आचार्य कौटिल्य के अनुसार “जिस राज्य में न्याय नहीं होता वह बहुत शीघ्र नष्ट हो जाता है।”

न्याय की परिभाषा(definition of justice)- 

प्लेटो के अनुसार “विवेक सॉरी तथा इंद्रिय तृष्णाका उचित समन्वय ही न्याय है। सॉरी तथा तृष्णा पर विवेक का आधिपत्य होना चाहिए।”

अरस्तु के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति को समाज के सदस्य के रूप में उसका उचित भाग प्रदान करना ही न्याय है।”

डी०डी० रिफिल के अनुसार “स्थिति का नाम है जिसमें व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा होती है और समाज में व्यवस्था भी बनी रहती है।”

ग्लौकन के अनुसार “न्याय भई का शिशु है। अर्थात दंड के भय के कारण ही लोग कानूनों का पालन करते हैं अतः यहां शक्तिशाली का हित नहीं अपितु निर्बल इसका सहारा है।”

आगस्टाइन के अनुसार “न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उनके कर्तव्यों का पालन करने में जिन की व्यवस्था मांग करती है।”

मेरिएम के अनुसार “न्याय व्यवस्था में निहित उन मान्यताओं और प्रक्रियाओं का योग है जिसमें सभी को वह दिया जाता है जिसे समाज सामान्य रूप से उचित समझता है।”

प्रो० सेबाइन के अनुसार “न्याय सार्वजनिक तथा एक व्यक्तिगत धर्म है इससे राज्य तथा उसके सदस्यों को उच्चतम हित सुरक्षित रहता है।”

न्याय का अर्थ, परिभाषा, प्रकार , तत्व- letest education

न्याय के प्रकार (nyaay ke prakar)

(1) प्राकृतिक न्याय-

 इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को कुछ अधिकार प्रकृति से  प्राप्त होते हैं। उन अधिकारों से उसे वंचित नहीं किया जाना चाहिए। यही प्राकृतिक न्याय है।

इंग्लैंड के महान विद्वान लॉक नितिन प्राकृतिक अधिकारों के बारे में बताया है- जीवन स्वतंत्रता तथा संपत्ति। यह अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होने चाहिए। अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा पत्र में लिखा है, “हम इन शब्दों को स्वयं सिद्ध मानते हैं कि सब मनुष्य स्वतंत्र और सामान पैदा हुए हैं उन्हें उनके रचयिता ने कुछ अधिकार प्रदान किए हैं जो अदेय हैं। इन अधिकारों में - स्वतंत्रता समानता तथा सुख प्राप्त करने का प्रयास।” 

(2) कानूनी न्याय- 

आजकल कानूनी न्याय को ही न्याय माना जाता है कानूनी भाषा में कानून की व्यवस्था को ही न्याय की व्यवस्था कहा जाता है अर्थात कानून और न्याय एक दूसरे के पर्यायवाची हो गए हैं। कानूनी न्याय के दो रूप होते हैं- 

(1) सरकार द्वारा बनाए हुए कानून न्यायोचित होने चाहिए वह अन्याय पूर्ण ना हो अर्थात उनके कारण व्यक्तियों पर अत्याचार ना हो।

(2) वे सब नागरिकों पर समान रूप से लागू किए जाएं। कोई व्यक्ति कानून के ऊपर ना हो अर्थात जो कोई कानून तोड़े उसे उचित दंड दिया जाए। किसी के साथ पक्षपात ना किया जाए।

(3) राजनीतिक न्याय-

 राजनीतिक न्याय से तात्पर्य है कि सभी नागरिकों को उन्नति के लिए समान अवसर प्राप्त होने चाहिए। समान काम के लिए समान वेतन मिले नागरिकों को वाणी भाषण तथा लेख की स्वतंत्रता प्राप्त हो वह अपने संज्ञा समुदाय बना सके तथा प्रत्येक नागरिक को सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार हो। समाज में कोई विशिष्ट या अभिजात्य वर्ग नहीं होना चाहिए।

(4) सामाजिक न्याय-

 सामाजिक न्याय से तात्पर्य है कि जाति वंश नष्ट धर्म आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव ना किया जाय। स्त्री पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हो और समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव ना हो । वर्तमान युग में सामाजिक न्याय का विचार बहुत ही लोकप्रिय हैं।

(5) आर्थिक न्याय- 

आर्थिक न्याय से तात्पर्य है कि समाज में यह नहीं होना चाहिए कि कुछ लोग बहुत अधिक अमीर हो और कुछ लोग बहुत अधिक गरीब जीवन के चरण आवश्यकताएं सभी नागरिकों का समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए।


न्याय के तत्व या न्याय के सिद्धांत

निष्पक्षता (objectivity)- 

न्यायधीश को राग दिवस से दूर होकर सभी नागरिकों को समान दृष्टि से देखना चाहिए किसी के साथ पक्षपात नहीं करना चाहिए किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए सभी किसान समान न्याय करना चाहिए।

नागरिक स्वतंत्रता (civil liberty)- 

किसी व्यक्ति को तब तक दंडित ना किया जाए जब तक सरकार द्वारा स्थापित न्यायालय में यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित ना हो जाए कि उसने कोई अपराध किया है। अभियुक्त को अपने बचाव का पूरा पूरा अवसर दिया जाना चाहिए न्यायाधीश को यह मानकर चलना चाहिए कि व्यक्ति ने निरपराध है जब तक की सत्यता प्रमाणित ना हो जाए।

त्वरित न्याय (speedy justice)-

 न्याय की वितरण में देर नहीं होनी चाहिए यदि न्याय प्राप्त करने में देर होती है तो न्याय का महत्व समाप्त हो जाता है।

सस्ता न्याय (cheap justice)- 

यदि न्याय प्राप्त करना अधिक विवाह शादी हो जाएगा तो सामान्य नागरिक न्याय से वंचित रहने लगेंगे। अत्याधिक व्यय की आशंका से हुए न्यायालय की शरण में नहीं जाएंगे तथा चुपचाप अन्याय को सहते रहेंगे।

वस्तुनिष्ठ न्याय (objective justice)-

 न्यायधीश को नीर-क्षीर विवेक कारी होना चाहिए। उसमें वह क्षमता होनी चाहिए कि वह पूर्ण सत्य का पता लगा सके और वस्तुनिष्ठ पक्षियों के आधार पर ही अपना निर्णय दे। वह पूर्वाग्रहों से ग्रसित ना हो। 


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न्याय की परिभाषा क्या है?

अरस्तु के अनुसार “प्रत्येक व्यक्ति को समाज के सदस्य के रूप में उसका उचित भाग प्रदान करना ही न्याय है।”

न्याय का अर्थ?

न्याय शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द (Justice) का हिंदी अनुवाद है। अंग्रेजी भाषा शब्द लैटिन भाषा के ‘जस’ से बना है जिसका अर्थ उस भाषा में बांधना या संयोजन है। शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर न्याय का अर्थ संयोजित करना या बांधना है।

न्याय के सिद्धांत क्या है?

न्याय के सिद्धांत (1) नागरिक स्वतंत्रता (2) वस्तुनिष्ठ न्याय (3) निष्पक्षता

न्याय के प्रकार?

न्याय के प्रकार (1) प्राकृतिक न्याय (2) कानूनी न्याय(3) राजनीतिक न्याय(4) सामाजिक न्याय (5) आर्थिक न्याय।

न्याय की विशेषताएं क्या है?

न्याय की विशेषताएं यह है कि न्याय का अभिप्राय सामाजिक जीवन की उस स्थिति से है जो व्यक्ति के आचरण तथा सामाजिक कल्याण के अनुकूल समन्वय स्थापित किया जा सके।

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