मुगल साम्राज्य के पतन के कारण|mugal samrajya ke Patan ke Karan

 मुगल साम्राज्य के पतन के कारण 

मुगल साम्राज्य के पतन के कारणों को अच्छी एवं सुगमता से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है— 

(1) इसमें वह कारण जिनके लिए औरंगजेब उत्तरदाई था।

(2) इसमें वह कारण जो औरंगजेब की मृत्यु के उपरांत हुई


(1) मुगल साम्राज्य के पतन के लिए औरंगजेब का उत्तरदाई होना 

(1) औरंगजेब का स्वभाव

 औरंगजेब अत्यंत सनकी सभा का व्यक्ति था। उसे संसार भर में किसी भी व्यक्ति पर विश्वास नहीं होता था। वह जीवन भर षड्यंत्र रचने में व्यस्त रहा। उसने अपने पिता से राज्य सिंहासन छीनकर उसे बंदी बनाकर यह शासन हड़पा था। अपने पुत्रों को उसने सदैव यतेंद्र संदेह की दृष्टि से देखा और कुछ को तो उसने कारागृह में ही डाल दिया था। केवल यही नहीं उसने अपनी पुत्री जेबुन्निसा को उसकी मृत्यु तक जेल मैं ही सड़ने दिया। ऐसे व्यक्ति को सारी राज्य प्रबंध का बुझाना केवल अपने कंधों पर ही लेना पड़ा बल्कि उसे अपनी शारीरिक व मानसिक शक्ति से भी हाथ धोना पड़ा।


(2) औरंगजेब की धार्मिक अंधविश्वास

 अकबर ने जी धार्मिक उदारता की नीति से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था, औरंगजेब ने उस नीति के बिल्कुल विपरीत कार्य किया। उसने हिंदुओं के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़कर उनके धार्मिक विचारों को आघात पहुंचाया। जजिया और यात्रा कर जैसे अन्याय पूर्ण करो को लगाकर उसने सदा के लिए हिंदुओं को अपना शत्रु बना दिया। उसने हिंदुओं को उच्च पदों से हटा कर उन्हें अपना तथा अपने साम्राज्य का विरोधी बना लिया। औरंगजेब ने केवल हिंदुओं को ही नहीं बल्कि उसने अपनी असहिष्णुता तथा धर्मेंद्र की नीति से सिया जनता तथा ईरान के सिया शासकों को भी जिन्होंने मुगल साम्राज्य की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भाग लिया था उनको भी अपना शत्रु बना लिया। इस धार्मिक नीति का यह परिणाम निकला कि औरंगजेब की मृत्यु के उपरांत 10-15 वर्षों में ही मुगल साम्राज्य का खंडन हो गया।


(3) औरंगजेब का राजपूतों से दुर्व्यवहार

 राजपूत हिंदू समाज का एक सैनिक वर्ग था जिसकी सहायता से अकबर ने अपने साम्राज्य के आधार को मजबूत किया था। औरंगजेब राजपूतों की मित्रता का मूल्य न जान सका और उसने ऐसे सवाल भी भक्त और शूरवीर लोगों को अपना शत्रु बना दिया। राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात उसने राजीव को हड़पने और उसकी दो पत्नी और पुत्र को पकड़ कर मुसलमान बनाने का प्रयत्न करके उसने संपूर्ण राजपूतों को अपने विरोधी बना लिया था।

(4) औरंगजेब कम मराठों से दुर्व्यवहार

औरंगजेब ने अपना बहुत समय धन तथा अन्य साधन मराठों जैसी कठोर जाति से संघर्ष करके व्यर्थ कर दिया। यदि औरंगजेब चाहता तो जब 1666 में शिवाजी उस के दरबार में आए थे उनके साथ उचित व्यवहार करके मराठों को अपना मित्र बना सकता था, परंतु औरंगजेब ने ठीक उल्टा किया और शिवाजी को बंदी बना लिया। शिवाजी दक्षिण तक भागने में सफल हुए और उन्होंने इस उद्दंडता के लिए औरंगजेब को कभी माफ नहीं किया और जीवन भर में मुगलों को तंग करते रहे।


(5) दक्षिण की विनाशकारी युद्ध

औरंगजेब की दक्षिण की लड़ाइयां में अत्यंत विनाशकारी सिद्ध हुई। निरंतर 5 वर्ष तक के दक्षिण में रहने के कारण समस्त राज्य प्रबंध अस्त-व्यस्त हो गया और देश में चारों और अशांति फैल गई। उत्तर में सिखों और राजपूतों को शक्ति पकड़ने तथा दूर के गवर्नर को स्वतंत्र होने का मौका मिल गया। इधर दक्षिण की इन लड़कियों में बहुत साधन वी आई हो गया। जिससे उसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई थी।


(6) औरंगजेब की अति केंद्रीकरण की नीति

औरंगजेब को अपने पिता से एक विशाल साम्राज्य उत्तराधिकार में मिला था। उसे यथार्थ में इतनी नहीं विशाल साम्राज्य से संतुष्ट होकर उसे व्यवस्थित करना चाहिए था, औरंगजेब ने और अधिक पर देशों पर विजय प्राप्त कर महान भूल की क्योंकि अब उसके लिए इतने विस्तृत साम्राज्य को संभालना अति कठिन हो गया।

(2) औरंगजेब की मृत्यु के बाद के कारण 

(1) भ्रात भाव का अभाव

 औरंगजेब के उत्तराधिकारी केवल अयोग्य और निर्बल ही नहीं थे बल्कि उनमें प्रभाव का भी अभाव था। वे कभी भी मिलकर अपने शत्रु का सामना नहीं करते थे इसका परिणाम यह हुआ कि वह आपस में ही लड़ मरे और दूसरों ने ऐसी स्थिति का लाभ उठाया। उनके आपसी मतभेदों का लाभ उठाकर सभी सरदार शक्तिशाली हो गए और उन्होंने अपने स्वास्थ्य पूर्ति के लिए मुगल वंश की बर्बादी को निकट कर दिया।

(2) उत्तराधिकारी के निश्चित समय का अभाव

 मुगलों में उत्तराधिकारी नियुक्त करने का कोई विशेष नियम नहीं था, इसी कारण प्रत्येक शास्त्री की मृत्यु पर ना केवल उसके पुत्र बल्कि उसके अन्य संबंधी भी राज्य प्राप्त करते थे। इस प्रयास में अनेक बार उनमें आपसी युद्ध बिछड़ जाते थे जो साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध होते थे उत्तराधिकारी संबंध होने वाले युद्ध के कारण देश में जो अराजकता फैल जाती थी वह सारी ढांचे को नष्ट करने का एक मुख्य कारण बनी।

(3) औरंगजेब के अयोग्य उत्तराधिकारी

इसमें कोई संदेह नहीं था मुगल साम्राज्य के पतन के लिए औरंगजेब काफी सीमा तक उत्तरदाई था, परंतु यदि उसके  उत्तराधिकारी योग्य तथा शक्तिशाली होते तो संभव था कि वह मुगल साम्राज्य के पतन को काफी समय तक रोक सकते थे। परंतु दुर्भाग्यवश वे सब के सब कमजोर आलसी विलास प्रिय अयोग्य तथा निकम्मे थे।


(4) मुगल सेना की निर्मलता

आरंभ में मुगल सैनिक अत्यंत बलवान और स्वामी भक्ति थे। उनमें बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को सहने की क्षमता थी। बाबर के साथ आने वाले मुगल सैनिक अपने स्वामी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर करने को तैयार रहते थे परंतु भारतीय जलवायु और विलासिता ने उन्हें कमजोर निर्मल और विलासपुरी बना दिया। अब वे युद्ध क्षेत्र में अपनी स्त्रियों को भी साथ ले जाने लगे। इसके अतिरिक्त जितने सैनिक लड़ाई में लड़ने के लिए जाते थे उससे कई गुना अधिक लोग उनकी देखभाल करने तथा उनके आराम को देखने के लिए उनके साथ जाया करते थे।

(5) समुद्री शक्ति की उपेक्षा

मुगल शासकों ने समुद्री सेना को कोई महत्व नहीं दिया इसलिए उन्होंने अपनी सामुद्रिक शक्ति को बढ़ाने का कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया था। वे यूरोपीय शक्तियों का जिनकी शक्ति सबसे बड़ा कारण समुद्री की लड़ाई यों में निपुणता थी सफलता पूरा मुकाबला न कर सके और इस प्रकार मुगल साम्राज्य को काफी हानि उठानी पड़ी।

(6) विदेशी आक्रमण

इसमें कोई संदेह न था मुगल साम्राज्य अंदर से खोखला हो चुकी थी, परंतु वह फिर भी किसी ना किसी प्रकार खड़ा हुआ था ।परंतु 17वीं शताब्दी में नादिरशा और अहमद अब्दाली के आक्रमण उन्हें इस लड़का आते हुए मुगल साम्राज्य को नष्ट करके ही छोड़ा। इन आक्रमणकारियों ने न केवल भारतीयों का कत्लेआम किया बल्कि उन्होंने देश को खूब लूटा और मुगलों को दिवालिया बना दिया।

(7) यूरोपीय शक्तियों का आगमन

अंत में यूरोपीय शक्तियां, कोशिश कर अंग्रेजों ने जो मुगल साम्राज्य के पतन में अपना योग दिया उसे भी भुलाया नहीं जा सकता है। वे धीरे-धीरे व्यापारिक वर्ग से एक राजनीतिक शक्ति में परिणित होते जा रहे थे और ऐसे अवसर की प्रतीक्षा में थे जब वह यहां अपने पांव अच्छी तरह जमा सकते। यह अवसर उन्हें 1757ई० में प्लासी की लड़ाई के पश्चात मिला जब उन्होंने बंगाल पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया। सन 1764 ई० में बक्सर की लड़ाई में शाह आलम को पराजित करके उन्होंने बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली। 1830 ई० में अंग्रेजों ने दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया और मुगल सम्राट शाह आलम को अपने संरक्षण में ले लिया। 1857 ई० की क्रांति के पश्चात अंग्रेजों ने अंतिम सम्राट बहादुर शाह द्वितीय को बंदी बना लिया और इस प्रकार मुगल वंश का अंतिम संस्कार को भी पूरा कर दिया।

(8) भारतीय शक्तियों का उत्थान

 मुगल साम्राज्य का पतन की ओर ले जाने में सिक्खों, मराठों, राजपूतों, जाटों राधिका इतना ही हाथ है जितना निजाम- उल- मुल्क खां, अलवरदी खां तथा गवर्नरों का। इन्हीं शक्तियों के शक्तिशाली हो जाने के कारण मुगल साम्राज्य अपने आपको स्थिर न रख सका। पंजाब में सिखों ने एक बड़े प्रदेश पर अपना अधिकार विस्थापित कर लिया और इसी प्रकार महाराष्ट्र में मराठी इतने अधिक शक्तिशाली हो गए कि उन्होंने दिल्ली तक के प्रदेश में लूटमार करना आरंभ कर दिया और बाद में दिल्ली को भी अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लिया। इसी प्रकार राजपूताना में राजपूतों ने आगरा के निकटवर्ती प्रदशों मैं जाटों और गंगा के उत्तर में स्थित कटिहार के प्रदेशों में जो बाद में रोहिलखंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ और वह लोगों ने शक्ति पकड़ ली और अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए।

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