द्वितीय विश्व युद्ध तथा कारण
द्वितीय विश्वयुद्ध (1सितंबर1939ई० से 25 सितंबर 1945ई०) , दो विश्व युद्धों के मध्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों का इतिहास विश्व के राजनीतिज्ञों के युद्ध को समाप्त करने का एक असफल प्रयास था। वास्तविकता यह थी कि यदि विश्व यद्ध प्रथम विश्व युद्ध का ही एक भाग था, जो 21 वर्षों के बाद लड़ा गया था। फौजी की यह भविष्यवाणी थी कि वर्साय संधि पत्र वास्तविक शांति ना होकर 20 वर्षों का एक विराम काल है और यह भविष्यवाणी सिद्ध हुई।
प्रथम विश्व युद्ध मैं जन व धन का भयानक और बेशुमार मात्रा में विनाश हुआ विराम युद्ध के बाद पेरिस की शांति सम्मेलन में मित्र राष्ट्रों ने पराजित देशों के साथ संध्या की थी और उन्हें दंड देने की व्यवस्था की। इसके साथ ही यूपी राजनीतिज्ञों ने भविष्य में युद्ध को रोकने के लिए राष्ट्र संघ की भी स्थापना की थी लेकिन इंग्लैंड और फ्रांस ने शांति सम्मेलन में बदला लेने की भावना से प्रेरित होकर जर्मनी को वर्साय संधि स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। वर्साय संधि बड़ी कठोर अनुचित और अपमानजनक हुई थी। फर्स्ट लुक शीघ्र ही जर्मनी ने हिटलर के नेतृत्व में फिर से एक बार और शक्ति अर्जित कर ली और मित्र राष्ट्रों से अपने घोर अपमान का बदला लेने के लिए तैयार हो गया ब्रिटेन की तुष्टीकरण की नीति ने द्वितीय विश्व युद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण (Cause of World War II)
(1) वर्साय की संधि (treaty of Versailles)-
द्वितीय विश्व युद्ध का मूल कारण वर्साय की संधि ही थी। इसमें संदेह नहीं कि वर्साय की संधि में ही द्वितीय विश्व युद्ध के बीज ब्वॉय गए थे। प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को बड़ी कठोर अनुचित तथा अन्याय पूर्ण वर्साय की संधि स्वीकार करने के लिए विवश किया गया था इस संधि ने जर्मनी की विशाल साम्राज्य को विघटित कर दिया और उनकी सैनिक शक्ति को क्षीण कर दिया। जर्मनी के कल कारखानों खनिज पदार्थों आदि पर मित्र राष्ट्रों ने अधिकार कर लिया था इतना ही नहीं विजेता राष्ट्रों ने पेरिस के शांति सम्मेलन में जर्मन प्रतिनिधियों का गौरव मांग किया था और जर्मनी पर युद्ध का भारी हर्जाना थोक दिया था। जब तक जर्मनी सकती हैं रहा है वह अपमान के कड़वे घूंट पीकर चुप रहा किंतु ज्यो ही उसने शक्ति प्राप्त की, वर्साय संधि पत्र को फाड़ कर फेंक दिया हिटलर ने वर्साय संधि के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए जर्मनी को विश्व युद्ध के लिए तैयार कर दिया।
(2) जर्मनी की उग्र राष्ट्रीयता-
द्वितीय विश्व युद्ध का एक अन्य कारण जर्मनी में राष्ट्रीयता की भावना भी थी। जर्मनी में तानाशाह हिटलर ने जर्मनी को यह विश्वास दिला दिया था कि विश्व में जर्मन आर्य जाति किस शुद्ध रक्त वाली सर्वश्रेष्ठ जाती है और विश्व पर शासन करने का उसी को अधिकार है। हिटलर के व्यक्तित्व ने जर्मनी में स्वाभिमान तथा जातीयता को उग्र भावना का संचार किया। लेकिन जर्मनी की यह उग्र राष्ट्रीयता आगे चलकर बड़ी भयानक सिद्ध हुई और तृतीय विश्व युद्ध के लिए उत्तरदाई बनी।
(3) साम्राज्यवाद (imperialism)-
प्रथम विश्व युद्ध के विनाशकारी परिणामों को देखकर भी यूरोपीय देशों की साम्राज्यवादी श्रुधा शांत न हो सकी। मित्र राष्ट्र ने जर्मनी के साम्राज्य को हड़पने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई इंग्लैंड से ध्यान से अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहे इटली भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए तत्पर हो गया मुसोलिनी ने अबीसिनिया पर अधिकार कर लिया। सुदूर पूर्व मैं जापान भी चीन में अपने प्रभाव का विस्तार करने लगा उसने मंचूरिया पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया जर्मनी की साम्राज्यवादी नीति नहीं तो पूरे यूरोप में आतंक स्थापित कर दिया। अतः साम्राज्य विस्तार की होड़ काश सुनिश्चित परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध हुआ।
(4) हिटलर का अभ्युदय -
जर्मनी के सम्राट कैसर विलियम द्वितीय के बाद जर्मनी में वीमार (Weimer) गणतंत्र की स्थापना हो गई थी लेकिन गणतंत्र सरकार जर्मन जनता की भावनाओं को संतुष्ट करने में असफल रही अधिकारी महंगाई बुक मर्यादि ने जर्मनी की दशा को अत्यंत सोचनीय बना दिया। क्षतिपर्ति की रकम की अदायगी करने में जर्मन सरकार को भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा इन गंभीर परिस्थितियों में जर्मनी में हिटलर ने नाजी दल की स्थापना की हिटलर ने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं भाषणों द्वारा जर्मन जनता को विश्वास दिलाया कि वह वर्साय की संधि के अपमान का प्रतिशोध लेकर विशाल जर्मन साम्राज्य का निर्माण करेगा। हिटलर ने भाषणों से जर्मन जनता बहुत प्रभावित हुई और भारी संख्या में नाजी दल की सदस्य ग्रहण करने लगी। हिटलर की अध्यक्षता में नाजी दल शीघ्र ही जर्मन का एक शक्तिशाली दल बन गया। और 1933 ईस्वी में लड़ जर्मनी का चांसलर बन गया 1934 ईस्वी में हिटलर ने शासन सत्ता पर अपना अधिकार स्थापित करके वर्साय संधि की धाराओं का उल्लंघन करना प्रारंभ कर दिया उसने जर्मनी का सशक्तिकरण करके न केवल सैनिक दृष्टि से वारंट आर्थिक दृष्टि से भी उसे यूरोप का एक शक्तिशाली एवं समृद्ध देश बना दिया।
(5) निशस्त्रीकरण की विफलता-
मित्र राष्ट्र ने वर्साय की संधि के द्वारा जर्मनी का निशस्त्रीकरण करके उसकी सैनिक शक्ति को बहुत कम कर दिया था। उसके जंगी जहाजों गोला बारूद तथा पनडुब्बियों आदि पर मित्र राष्ट्रों ने अधिकार कर लिया था लेकिन मित्र राष्ट्र अपना निशस्त्रीकरण सदैव टालते रहे जर्मनी के भय से अपने शास्त्रों में कमी नहीं करना चाहता था इंग्लैंड अपनी नौ सैनिक शक्ति कम करने के पक्ष में नहीं था। 1930 ईस्वी में हिटलर ने जर्मनी का शास्त्री करण करना आरंभ कर दिया और उसकी देखा देखी अन्य यूरोपीय देश भी सस्त्री करण की दौड़ में भाग लेने लगे सस्ती करण की यह दौड़ वस्तु त भावी विनाश की तैयारी सिद्ध हुई।
(6) राष्ट्र संघ की दुर्बलता-
राष्ट्रीय संघ की स्थापना विश्व शांति बनाए रखने के उद्देश्य से की गई थी। परंतु विभिन्न राष्ट्रों की स्वार्थपरता के कारण राष्ट्र संघ अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में असफल रहा। राष्ट्र संघ की दुर्बलता का प्रमुख कारण अमेरिका का इससे से पृथक रहना था। शक्ति के अभाव में राष्ट्र संघ विभिन्न राष्ट्रों की आक्रामकता कारी वाक्यों को। जापान के मंचूरिया पर आक्रमण (1931 ई०) इटली के अभी अबीसीनिया पर आक्रमण (1936 ई०)और जर्मनी के ऑस्ट्रिया पर अधिकार (1938 ई०) जैसी बातों ने राष्ट्र संघ की दुर्बलता को प्रकट कर दिया राष्ट्र संघ की असफलता भी अंत में द्वितीय विश्व युद्ध का विस्फोट का कारण बनी।
(7) गुटबंदियां (cliques)-
द्वितीय विश्व युद्ध का मौलिक कारण अंतरराष्ट्रीय गुड बंदियां थी। जर्मनी, इटली तथा जापान ने रोम-बर्लिन- टोक्यो धुरी का निर्माण कर लिया था। और दूसरी और फ्रांस , पोलैंड, रोमानिया, युगोस्लाविया तथा चेकोस्लोवाकिया ने गुटबंदी कर ली थी। और बाद में इंग्लैंड भी इस गुड बंदी में शामिल हो गया था। इस प्रकार 1939 ईस्वी में संपूर्ण यूरोप दो शक्तिशाली गुटों में विभक्त हो गया था। पहला गुड धुरी राष्ट्रों और दूसरा गुड मित्र राष्ट्रों का था। इन गुटों के आपसी मतभेदों का ही परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में प्रकट हुआ या देखने को मिला।
(8) तुष्टीकरण की नीति-
इंग्लैंड अपने हितों की रक्षा के लिए जर्मनी के प्रति सहानुभूति रखता था, अतः इंग्लैंड के राजनीतिज्ञों विशेषकर चैंबर्लेन ने तुष्टीकरण की नीति अपनाई। इस नीति के कारण ही इंग्लैंड ने मंचूरिया पर जापान का अधिकार स्वीकार कर लिया। अबीसीनिया पर मुसोलिनी का आधिपत्य मान लिया गया। चेमबरलेन नहीं लड़के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपना कर उसे आस्ट्रेलिया और 6 को स्लाविया पर अधिकार करने का अवसर प्रदान किया। लेकिन इंग्लैंड की तुष्टीकरण की नीति आगे चलकर बड़ी घातक सिद्ध हुई और हिटलर की साम्राज्यवादी लिप्सा को शांत करने में पूर्णतया विफल रही।
(9) अधिनायकवाद का विकास-
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप में अधिनायकवाद का विकास हुआ। सोवियत रूस में लेनिन के नेतृत्व में सामने वादियों की तानाशाही स्थापित हो गई। मुसोलिनी इटली का अधिनायक बन गया । स्पेन में जनरल फ्रांको को तानाशाह बन बैठा और जर्मनी में हिटलर की तानाशाही स्थापित हुई। इन तानाशाह ने यूरोप में साम्राज्य विस्तार की नीति का अनुसरण किया इंग्लैंड और फ्रांस इन दिनों की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में विफल रहे और अंत में द्वितीय विश्व युद्ध का विस्फोट हो गया।
(10) दो विचारधाराओं का संघर्ष-
फ्रांस की राज्य- क्रांति (1789ई०)ने स्वतंत्रता समानता और भ्रातृत्व की भावना की एक नई विचारधारा यूरोप में प्रसारित की थी और यूरोप के बहुत से देशों ने इस विचारधारा को ग्रहण किया था बीसवीं शताब्दी में सर्वाधिकारवाद नाम की दूसरी विचारधारा यूरोप में पनपने लगी इन दोनों विचारधाराओं में संघर्ष होना एक स्वाभाविक बात था प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सामने वादियों ने खूनी क्रांति करके रूस की शासन सत्ता पर अपना अधिकार कर लिया इटली में मुसोलिनी ने और जर्मनी में हिटलर ने अपनी तानाशाही स्थापित कर ली इनका अनुकरण करके स्पेन ऑस्ट्रिया और टर्की भी तानाशाही के शिकार हो गए। इसके बाद ही रूम में तानाशाही के विरुद्ध प्रतिक्रिया प्रारंभ हुई जिसके परिणाम स्वरूप दूसरा विश्व युद्ध हुआ।
द्वितीय विश्व युद्ध कब हुआ था?
द्वितीय विश्व युद्ध (1सितंबर1939ई० से 25 सितंबर 1945ई०) हुआ था।
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण क्या थे?
वर्साय की संधि (treaty of Versailles)- द्वितीय विश्व युद्ध का मूल कारण वर्साय की संधि ही थी। इसमें संदेह नहीं कि वर्साय की संधि में ही द्वितीय विश्व युद्ध के बीज ब्वॉय गए थे। प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी को बड़ी कठोर अनुचित तथा अन्याय पूर्ण वर्साय की संधि स्वीकार करने के लिए विवश किया गया था इस संधि ने जर्मनी की विशाल साम्राज्य को विघटित कर दिया और उनकी सैनिक शक्ति को क्षीण कर दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध में कितने देश शामिल थे?
द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग 70 देश शामिल थे। (1सितंबर1939ई० से 25 सितंबर 1945ई०)।
द्वितीय विश्व युद्ध कौन जीता था?
द्वितीय विश्वयुद्ध मैं मित्र राष्ट्रों की विजय हुई।
द्वितीय विश्व युद्ध?
द्वितीय विश्वयुद्ध (1सितंबर1939ई० से 25 सितंबर 1945ई०) , दो विश्व युद्धों के मध्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों का इतिहास विश्व के राजनीतिज्ञों के युद्ध को समाप्त करने का एक असफल प्रयास था। वास्तविकता यह थी कि यदि विश्व यद्ध प्रथम विश्व युद्ध का ही एक भाग था, जो 21 वर्षों के बाद लड़ा गया था। फौजी की यह भविष्यवाणी थी कि वर्साय संधि पत्र वास्तविक शांति ना होकर 20 वर्षों का एक विराम काल है और यह भविष्यवाणी सिद्ध हुई।
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