आर्थिक मंदी क्या है आर्थिक मंदी के प्रमुख कारण तथा परिणाम

  विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (arthik mahamandi)

आर्थिक मंदी का अर्थ : प्रथम विश्व युद्ध के बाद यूरोप और अन्य देशों की आर्थिक दशा सोचनीय हो गई थी। 1929 ई० मैं 'वॉल स्ट्रीट' संकट के कारण अमेरिकी डॉलर की कीमत भी काफी नीचे गिर गई। फल स्वरुप समस्त विश्व में एक भीषण आर्थिक संकट उपस्थित हो गया इस आर्थिक संकट या विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के अनेक कारण थे।

विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के कारण (due to economic downturn)

आर्थिक मंदी 1929 के कारण

(1) प्रथम विश्वयुद्ध का प्रभाव (impact of world war 1)

यह सर्वविदित है कि प्रत्येक युद्ध के बाद आर्थिक संकट उपस्थित या व्याप्त हो जाता है अतः प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी इस तथ्य की पुनरावृत्ति हुई और युद्ध के बाद विश्वव्यापी आर्थिक महामंदी का होना अनिवार्य ही था।

(2) उद्योगों में भारी मशीनों का प्रयोग (use of heavy machinery in industries)

युद्ध के दौरान बहुत बड़ी संख्या में व्यक्तियों की सेना मैं भर्ती हो गई, जिससे मजदूरों को अभाव हो गया श्रम की इस कमी को पूरा करने के लिए कृषि तथा उद्योगों में मशीनों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाने लगा लेकिन युद्ध के बाद जब सैनिकों की चटनी हुई तो बेकारी की समस्या उग्र रूप से धारण करने लगी और व्याप्त होने लगी। कृषि एवं उद्योगों के मशीनीकरण के कारण श्रम के महत्व में भारी कमी आ गई थी। जिस कारण लोगों में बेरोजगारी वह विश्व में आर्थिक मंदी व्याप्त होने लगी।

(3) क्षति पूर्ति तथा युद्ध ऋण की समस्या (reparations and war debt problem)

 इन दोनों समस्याओं ने विश्व की आर्थिक तंत्रों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को छिन्न-भिन्न कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप आर्थिक संकट इतना अधिक भीषण और गंभीर हो गया कि सामान्य और परंपरागत उपायों द्वारा उसका निवारण करना संभव ही नहीं असंभव हो गया।

(4) उत्पादन में असाधारण प्रगति (extraordinary progress in production)

 प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैनिक और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उद्योगों में असाधारण प्रगति हुई और भारी मात्रा में उत्पादन हुआ। युद्ध के समाप्त होने पर कुछ समय तक पूर्ण निर्माण की आवश्यकताओं के कारण इन उद्योगों द्वारा उत्पादित माल की खबर हुई परंतु इन आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने के बाद उत्पादित वस्तुओं की उपयोगिता समाप्त हो गई जिससे वस्तुओं के मूल्य बड़ी तेजी के साथ गिरने लगे इस स्थिति में अनेक उद्योगों धंधे ठप हो गए और बेकारी की समस्या ने भयंकर रूप धारण कर लिया।

(5) क्रय शक्ति में कमी (decrease in purchasing power)

 वस्तुओं के मूल्य में भारी गिरावट और विकारी के कारण मजदूरों और किसानों की क्रय शक्ति में भारी कमी आ गई । इसके फलस्वरूप वस्तुओं की मांग कम हो गई। और सर्वत्र बेकार तथा तालाबंदी का बोलबाला होने लगा।

(6) आर्थिक  राष्ट्रीयता‌ (economic nationality)

 प्रथम विश्व युद्ध के बाद सभी देश आर्थिक राष्ट्रीय वाद और आत्मनिर्भरता की नीति का अनुसरण करने लगे तथा संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था पर अपनी नीति के कुप्रभाव की परवाह किए बिना अपनी-अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए संकीर्ण और स्वास्थ्य पूर्ण नीतियां अपनाने लगे। उन्होंने अपने निर्यात में वृद्धि और आयात में कमी करने के लिए तटकर लागू किया। इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार चौपट होने लगा । इंग्लैंड , अमेरिका और जर्मनी के माल की विदेशों में खपत बहुत कम हो गई जिससे उनके कल कारखाने बंद होने लगे और बेकारी तेजी से बढ़ने लगी।

(7) स्वर्ण का असमान विभाजन (unequal division of gold)

 प्रथम विश्व युद्ध के दौरान यूरोप के लगभग सभी देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका से भारी ऋण लिया था। युद्ध के बाद अमेरिका ने अपने द्वारा दिए गए ऋण का भुगतान सभी देशों से स्वर्ण के रूप में लेना प्रारंभ कर दिया इस नीति का परिणाम यह हुआ कि संसार- भर का स्वर्ण अमेरिका में जमा होने लगा। जिससे विश्व के अन्य देशों में स्वर्ण का कृत्रिम अभाव उत्पन्न हो गया। परिणाम स्वरुप आर्थिक मंदी में निरंतर वृद्धि होने लगी और यूरोप के अनेक देशों को स्वर्ण मान त्यागने के लिए विवश होना पड़ा।

(8) तात्कालिक कारण (immediate reason)

 आर्थिक संकट का तात्कालिक कारण अमेरिका के शेयर बाजारों में शेरों के मूल्य में गिरावट का आ जाना था। अक्टूबर 1929 ई० में न्यूयॉर्क के शेयर बाजार में शेरों का मूल्य का एक बहुत नीचे गिर गए जिसके कारण अमेरिका में भीषण आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया, जिससे अमेरिकी सरकार ने यूरोपीय देशों को ऋण देना बंद कर दिया। इसका परिणाम यह निकला कि यूरोपीय देशों का आर्थिक तंत्र छिन्न-भिन्न हो गया और विश्वव्यापी आर्थिक संकट अधिक तेजी से फैलने लगा।

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आर्थिक मंदी के परिणाम economic downturn results

आर्थिक मंदी के परिणाम :  1930 -32 ई० की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी दो विश्व युद्धों के मध्य के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी इसके परिणाम बड़े भयंकर हुए दूरगामी हुए और प्रभावशाली सिद्ध हुए। 

1. आर्थिक राष्ट्रीयता (economic nationality)

आर्थिक मंदी के परिणाम स्वरूप आर्थिक राष्ट्रीयता की भावना बड़ी तेजी के साथ विकसित होने लगी। लगभग सभी देशों ने अपने निर्यात में वृद्धि और आयात में कमी करने का प्रयास किया, जिसके अंतरराष्ट्रीय व्यापार में काफी गिरावट आई।

2. आर्थिक प्रभाव (economic impact)

विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के कारण अनेक देशों की आर्थिक व्यवस्था चौपट हो गई, कल- कारखाने बंद होने लगे और बेकारी की समस्या लोगों में भयंकर रूप से बढ़ने लगी। लाखों व्यक्तियों और कंपनियों के व्यापार में विनाशकारी घाटा उत्पन्न होने लगा। इससे ना केवल पूंजीपतियों  उद्योगपतियों की ही कमर टूटी बल्कि मध्यम वर्ग के उन व्यक्तियों को भी क्षति पहुंची जिन्होंने विभिन्न कंपनियों के शेयर खरीदे हुए थे। किसान और मजदूर भी घोर आर्थिक संकट में फंस गई इस प्रकार जनता में असंतोष छा गया और समाज के सभी वर्गों में असंतोष की लहर चलने लगी।

3. सरकार द्वारा संरक्षण की नीति का अनुसरण (the policy of protection followed by the government)

 संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के अधिकांश देश आर्थिक संकट से पूर्व स्वतंत्र व्यापार की नीति में आस्था रखते थे, परंतु आर्थिक मंदी का सामना करने के लिए सभी देशों ने औद्योगिक और व्यापारिक क्षेत्र में सरकारी संरक्षण के नीति का अनुसरण किया जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार को गहरा आघात पहुंचा।

4. यूरोपीय देशों में लोकतंत्र के प्रति घृणा (Hatred of democracy in European countries) 

आर्थिक संकट के कारण विरोध की लगभग सभी देशों की जनता को अपार कष्ट सहन करना पड़ा । बेकारी, भूखमरी, स्थिरता, सुरक्षा और निराशा की भावना के कारण जनता में लोकतंत्र के प्रति अविश्वास उत्पन्न होने लगा।

5. तानाशाही का उदय (rise of dictatorship)

आर्थिक संकट ने इटली में 'मुसोलिनी' के नेतृत्व में फासीवाद की स्थापना। की जर्मनी में 'हिटलर' ने जनता के आर्थिक असंतोष का लाभ उठाकर देश में अपनी तानाशाही स्थापित कर ली।

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