साइमन कमीशन (Simon Commission)
महात्मा गांधी द्वारा सन 1922 ई० में असहयोग आंदोलन स्थगित करने के पश्चात 1927 ई० तक राष्ट्रीय आंदोलन की गति बहुत धीमी रही। 1924 ई० में गांधी जी के जेल से छूटने के बाद कांग्रेस ने अपना ध्यान और कार्यों की ओर आकर्षित किया। केवल स्वराज्य दल विधान मंडलों में पहुंचकर दैत शासन प्रणाली की असफलत बनाने तथा सरकार के कार्यों में रुकावट डालने में लगा रहा। यद्यपि स्वराज दल पूर्ण रूप से अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका, यद्यपि इसके द्वारा दौरे शासन की समाप्ति की निरंतर मांग तथा कुछ अन्य कारणों से बेटे सरकार इस बात के लिए विवश हो गई कि वह भारतीय शासन व्यवस्था की समस्या का निराकरण करने के लिए शीघ्र ही कोई कदम उठाएं फल स्वरुप 1927 ईस्वी में साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई थी।
साइमन कमीशन की नियुक्ति के कारण
साइमन कमीशन की नियुक्ति के कारण, 1919 ईस्वी के कानून में यह व्यवस्था की गई थी कि उत्तरदाई सरकार की प्रगति की जांच कराने के लिए कानून बनाने के 10 वर्ष बाद एक कमीशन की नियुक्ति की जाएगी। व्यवस्था के अनुसार 1929 में कमीशन की नियुक्ति की जानी थी किंतु ब्रिटिश सरकार ने 2 वर्ष पूर्व ही यानी कि 1927 ईस्वी में ही इसकी नियुक्ति की घोषणा कर दी। इसके कई कारण थे।
पहला कारण— यह सुधार कानून का भारत वासियों ने प्रारंभ से ही विरोध किया था तथा इसकी समाप्ति की मांग की थी। स्वराज वादियों ने विधानसभा में प्रवेश करके इसका प्रतिरोध किया। बताओ ब्रिटिश सरकार के लिए शासन सुधार की मांग की लंबे समय तक अवहेलना करना संभव नहीं था।
दूसरा कारण— 1926 ईस्वी में सांप्रदायिक तनाव बहुत अधिक बढ़ गया था सरकार इस अवसर का लाभ उठाना चाहती थी ऐसे समय में वह आयोग की नियुक्ति द्वारा ही हो सिद्ध करना चाहते थे कि सांप्रदायिक मतभेद के कारण भारतीय उत्तरदाई शासन चलाने की क्षमता नहीं रखते हैं।
तीसरा कारण— इंग्लैंड में सीकरी चुनाव होने वाले थे और उसमें उधार दल की विजय की संभावना थी। तत्कालीन अनुदार दल को यह भाई था कि यदि इस समय आयोग ने बुलाया गया और शासन में कुछ सुधार न किए गए तो बाद में उदार दल की सरकार भारत को स्वराज्य प्रधान कर सकती थी।
चौथा कारण— भारत में इस अवधि में युवक संगठन तथा वामपंथी संगठन जो पकड़ रहे थे। इनके ऊपर थोड़े से वैधानिक सुधारों के द्वारा युवक संगठनों की गतिविधियों को दूसरी तरफ मोड़ना चाहती थी। आधा तत्कालीन परिस्थितियों में अनेक ऐसे तत्व उपस्थित थे जिनके कारण सरकार को कमीशन की शीघ्र नियुक्ति करनी पड़ी।
साइमन कमीशन का उद्देश्य
साइमन कमीशन की नियुक्ति का उद्देश्य भारतीय प्रांतों में यह पता लगाना था कि सरकार कैसी चल रही है प्रतिनिधि संस्थाएं कहां ठीक कार्य कर रही हैं शिक्षा की कहां एक प्रगति हुई है तथा उत्तरदाई शासन के सिद्धांत को बढ़ाई जाए या सीमित किया जाए अथवा अन्य कोई उचित परिवर्तन किया जाए। साइमन कमीशन में सभी अंग्रेज सदस्य नियुक्त किए गए थे। भारत सचिव बूखन हैंड को पहले ही बताया गया था कि इसमें एक भी भारतीय ना होने के कारण इस कमीशन का विरोध किया जाएगा परंतु उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि इस कमीशन को ब्रिटिश संसद के सम्मुख संवैधानिक सुधारों के बारे में रिपोर्ट देनी है इसलिए इसमें कोई भारतीय नहीं लिया जा सकता अब यह कहा गया कि ब्रिटिश संसद के भारतीय लॉर्ड सिंहा को क्यों नहीं लिया गया, तो अंग्रेजों ने ही हो तर्क दिया कि भारत में अनेक दल है। यदि एक दल के प्रतिनिधि को इसमें लिया जाए तो इसके सदस्यों की संख्या बहुत अधिक हो जाएगी। वासित वास्तविकता कुछ और थी, बेटी सरकार संवैधानिक प्रगति की जांच का अधिकार भारत वासियों को न देकर अपने हाथ में रखना चाहती थी।
साइमन कमीशन का बहिष्कार (boycott of simon commission)
साइमन कमीशन की बहिष्कार इसलिए किया गया कि कमीशन के निर्माण में कमी थी, दूसरे इसका उद्देश्य भारतीय जनमत को माने नहीं था। इसका उद्देश्य भारत में पूर्ण उत्तरदाई शासन स्थापित करना नहीं था बल्कि यह जांच करना था कि भारतवासी उत्तरदाई शासन का संचालन करने की क्षमता रखते हैं अथवा नहीं इसलिए सारे देश में सभी राजनीतिक दलों ने कमीशन का विरोध तथा बहिष्कार करने का संकल्प किया। भारतीयों के लिए कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य न होना अपमानजनक बात थी। केवल मुस्लिम लीग का एक वर्ग कमीशन का समर्थक था।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट
(1) धारा सभाओं का विस्तार (Extension of Section Assemblies)-
आयोग ने इस बात की सिफारिश की कि प्रांतों की धारा सभाओं (विधानसभाओं) का विस्तार किया जाए। महत्वपूर्ण प्रांतों में 200 से 250 तक सदस्य शामिल किए जाएं। विधान मंडलों में सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति न किया जाए तथा नाम ज्यादा देर सरकारी अधिकारियों की संख्या विधान मंडल की समस्त संख्या के दसवें भाग से अधिक ना हो।
(2) संघ शासन की स्थापना (establishment of federal government)-
आयोग ने भविष्य में भारत के लिए एक संघ शासन की स्थापना करने की सिफारिश की जिसमें प्रत्येक प्रांत जहां तक संभव हो अपने क्षेत्र में स्वामी हो, इस अंक में ब्रिटिश भारत की सभी प्रांत और समस्त भारतीय देसी राज्य सम्मिलित होंगे।
(3) केंद्रीय विधान मंडल का पुनर्गठन करना (reconstitution of the central legislature)-
संघ के व्यवस्थापिका मंडल का निर्माण संघीय व्यवस्था के आधार पर किया जाना चाहिए। अतः इसमें दो सदन हो निम्न सदन अर्थात विधानसभा के भावी संघ में शामिल होने वाले प्रांतों के प्रतिनिधि शामिल हो। देसी रियासतों की प्रतिनिधि उसमें शामिल हो सकते हैं जब वे संघ में मिलने के लिए तैयार होंगे। दोनों सदनों के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को अपनाया जाएगा।
(4) नया संविधान बनाया जाएगा (new constitution will be made)-
कमीशन आयोग ने यह सिफारिश की कि भविष्य में संवैधानिक परिवर्तनों के बारे में रिपोर्ट देने के लिए हर 10 वर्ष के पश्चात आयोग द्वारा जांच करने की व्यवस्था रखी जाएगी अर्थात संविधान इतना लचीला हो कि स्वयं ही विकसित हो सकता है।
(5) ग्रह सरकार का निर्माण (building a planetary government)-
भारत सचिव को परामर्श देने के लिए गर्व सरकार कायम रहेगा। किंतु इसके अधिकार और शक्तियों में कमी की जाएगी। कमीशन ने सेना का भारतीय करण की आवश्यकता को स्वीकार किया परंतु यह कहा कि जब तक भारत अपनी रक्षा के लिए स्वयं पूर्ण रूप से तैयार नहीं हो जाता तब तक अंग्रेजी सेनाओं का भारत में रहना आवश्यक होगा।
(6) प्रांतों में उत्तरदाई सादा स्थापित करना-
रक्षा कवच हूं तथा अभिलक्षण के साथ दवेत शासन प्रणाली स्वाभाविक त्रुटियां संप्रदायिक मतभेदों तथा विरोध के कारण प्रांतों से संसद तथा आंशिक उत्तरदाई शासन व्यवस्था को सफलता प्राप्त नहीं हुई। अथवा साइमन कमीशन ने यह सिफारिश की कि प्रांतों की स्वायत्तता (स्वराज) दी जाए। आयोग की यह धारणा और विश्वास था कि विधि और व्यवस्था को कायम रखने की ओट में उत्तरदायित्व को रोकना उत्तरदाई शासन का प्रतिकार करना है। इसी आधार पर आयोग ने यह सिफारिश की की विधि और व्यवस्था सहित समस्त प्रांतीय वसई लोकप्रिय उत्तरदाई मंत्रियों के अधिकार में सौंप देना चाहिए।
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