संस्कार का अर्थ
संस्कार का अर्थ अथवा संस्कार नाम का अर्थ - हिंदू समाज में व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन को सुव्यवस्था प्रदान करने हेतु जिन संस्थागत आधारों को विकसित किया गया है उनमें संस्कार भी एक है। संस्कारों को परंपरागत हिंदू सामाजिक संगठन में विशेष महत्व रहा है तथा यह महत्व आज भी काफी सीमा तक देखा जा सकता है यह सत्य है कि कुछ संस्कार महत्वहीन हो गए हैं और तथा अन्य कुछ का संक्षिप्तीकरण हुआ है फिर भी अधिकांश हिंदू अपने प्रमुख संस्कारों को आज भी करते हैं। संस्कार को अंग्रेजी में ‘Secrament’ कहा जाता है। संस्कार क्या है? यह वही संस्कार और बलिया है जिन को पूरा करने से हिंदू का जीवन उच्चतर पवित्रता प्राप्त करता है यह उसके समस्त जीवन पर छाए हैं। जिससे वह मां के गर्भ में आता है। यह मृत्यु तक उसके अंतिम संस्कार (दास कर्म) को शामिल करते हुए और आगे भी उसकी आत्मा के अन्य विश्व में प्रवेश को शुभम करने के लिए है। इस प्रकार संस्कार का अर्थ जीवन को पर शुद्ध करने हेतु अपनाई गई कार्यपद्धती है।
संस्कारों के उद्देश्य अथवा महत्व
हिंदू संस्कारों के निश्चित उद्देश्य होते हैं।-
(1) संस्कार व्यक्तियों को भौतिक समृद्धि प्राप्त करने हेतु सक्षम बनाते हैं।
(2) संस्कार व्यक्तित्व का विकास करने में सहायक प्रदान करते हैं।
(3) संस्कार व्यक्तियों में आत्मविश्वास की वृद्धि करते हैं।
(4) संस्कार व्यक्तियों को आध्यात्मिक प्रगति की दिशा की ओर उन्मुख करते हैं।
(5) संस्कार नातेदारी व्यवस्था को सुदृढ़ करते हैं तथा सामूहिक एकता को बनाए रखने में सहायता प्रदान करते हैं।
भारतीय संस्कार अथवा 16 संस्कार हिंदू संस्कार
16 संस्कार की परिभाषा , हिंदुओं में परंपरागत रूप में संस्कारों का भी विशेष महत्व रहा है। हिंदू समाज में जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के लिए बहुत से संस्कारों का विधान रखा गया है। संस्कार का अर्थ शुद्धि की धार्मिक क्रियाओं से है। इन्हें व्यक्ति के मानसिक शारीरिक व आत्मिक विश्वास के लिए एक प्रकार से धार्मिक कृत्य माना गया है। गौतम धर्मसूत्र के अनुसार मनुष्य के जीवन के लगभग 40 संस्कार होते हैं जो कि उसके पूर्व जन्म, बाल्यावस्था, शिक्षा, विवाह, मृत्यु तथा मृत्यु पश्चात की अवस्था से संबंधित होते हैं। यह संस्कार शरीर तथा यज्ञ से संबंधित बनाई गये है।
जीवन के 16 संस्कार मनुष्य
(1) गर्भाधान (Conception) -
यह संस्कार संतान प्राप्ति विशेष रूप से पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाने वाला जन्म से पूर्व का संस्कार है। हिंदू धर्म के अनुसार पुत्र को जन्म देना एक पवित्र धार्मिक कृत्य माना गया है। विवाह की चौथी रात्रि में गर्भाधान करने का विधान है।
(2) पुंसवन-
यह भी गर्भधारण की पुष्टि के लिए किया जाने वाला जन्म से पूर्व का एक संस्कार है। मनुस्मृति के अनुसार इस संस्कार को गर्भधारण के चौथे मास में संपन्न करना चाहिए।
(3) सीमान्तोनयन-
यह संस्कार भी जन्म से पूर्व का संस्कार है, जो होने वाली संतान को दुष्ट आत्मा और शक्तियों से बचाने से संबंधित है। इस संस्कार द्वारा गर्भवती स्त्री के केसों को ऊपर उठाकर संवारने का विधान है।
(4) जात कर्म-
बच्चे के जन्म के समय सहित हटाकर उसके लंबे जीवन की कामना से संबंधित संस्कार है। जात कर्म संस्कार की अनेक विधियां हिंदू समाज में पाई जाती है जैसे बच्चा, विशेष रुप से लड़का पैदा होने पर अग्नि प्रज्वलित कर दी जाती है जो कि कई दिनों तक जलती रहती है यह क्रिया बच्चे को भूत बाधाओं से बचाने के लिए की जाती है।
(5) नामकरण-
यह बच्चे का नाम देने का संस्कार है। नाम प्रायो नक्षत्रों देवताओं कुलदेवता तथा ग्राम देवता आदि के नाम के आधार पर रखे जा सकते हैं। आज भी हो संस्कार अधिकांश हिंदुओं पाया जाता है।
(6) निष्क्रमण-
यह बच्चे को सर्वप्रथम घर से बाहर निकालने संबंधित संस्कार है। मनुस्मृति के अनुसार यह संस्कार जन्म के चतुर्थ मास में होना चाहिए।
(7) अन्नप्राशन -
यह बच्चे को प्रथम बार भोजन कराने से संबंधित संस्कार है। 6 मास की आयु होने पर बच्चे को अन्य के साथ गृह एवं मधु खीरा दिखला जाता है।
(8) चूड़ाकर्म-
यह बच्चे के बाल मोड़ने से संबंधित मुंडन संस्कार है। इसे मुंडन या केशव छेदन संस्कार भी कहा जाता है। मनुस्मृति के अनुसार चूड़ाकर्म संस्कार जन्म के प्रथम वर्ष अथवा तीसरी वर्ष में किया जाना चाहिए।
(9) कर्ण छेदन -
यह कौन से जिले से संबंधित संस्कार है। यह संस्कार तीसरे या पांचवी वर्ष में होता है। इस अवसर पर हवन पूजा आदि के साथ बच्चे को आशीर्वाद दिया जाता है और उसे मिठाई खिलाई जाती है।
(10) उपनयन-
यह द्विज वर्गों में यज्ञोपवीत धारण करने से संबंधित संस्कार है। उपनयन प्रतीकात्मक रूप से द्विज वर्ण के व्यक्ति का दूसरा जन्म माना जाता रहा है।
(11) वेदारम्भ-
यह शिक्षा आरंभ का संस्कार है। इस संस्कार के द्वारा विधिवत रूप से बच्चे का हाथ पकड़कर सर्वप्रथम उसे पट्टी पर ओम लिखवाया जाता है।
(12) समापरवर्तन-
यह वैदिक शिक्षा के पूर्ण करने संबंधी संस्कार है। इसे संस्कार के बाद व्यक्ति का ब्रह्मचर्य जीवन समाप्त होता है तथा वह अगले आश्रम में प्रवेश कर सकता है।
(13) विवाह-
यह ग्रस्त जीवन में प्रवेश करने से संबंधित महत्वपूर्ण संस्कार है। हिंदू विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है इसलिए इसके अंतर्गत कुछ ऐसी धार्मिक कृत्य हैं जो विवाह की पूर्णता के लिए आवश्यक है।
(14) वानप्रस्थ-
यह वनों में जाकर ईश्वर उपासना करने से संबंधित संस्कार है।
(15) सन्यास-
यह पारिवारिक जीवन से मुक्त होकर सन्यास आश्रम में प्रवेश करने संबंधी संस्कार है।
(16) अन्त्येष्टि -
यह हम जितने व्यक्ति को विधि विधान के साथ अग्नि में दाह कर देने संबंधित अंतिम संस्कार है। इसका उद्देश्य मृत व्यक्ति की आत्मा को परलोक में शांति प्रदान करना है।
निष्कर्ष- इन सभी संस्कारों का विधान बनाकर हिंदू शास्त्र कारों में व्यक्ति को निरंतर उसके कर्तव्यों से लाद दिया गया है। इन संस्कारों को करता हुआ व्यक्ति समाज अनुकूल जीवन व्यतीत करने का परीक्षण प्राप्त करता है इन विभिन्न संस्कारों से व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त चलती रहती है।
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