स्थापत्य कला या मौर्यकालीन कला
स्थापत्य कला -
मौर्य काल में स्थापत्य कला के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई। मौर्यकालीन स्थापत्य कला की स्मारक रूपों में मिलते हैं—
(1) नगर निर्माण (city building)
मौर्यकालीन सम्राटों की राजधानी पाटलिपुत्र एक बहुत ही विशाल नगरी थी। मेगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र नगर गंगा और सोन नदियों के संगम पर बसा हुआ था।
कौटिल्य ने नगरों की रचना के संबंध में लिखा है कि राजधानी की सुरक्षा के लिए तथा पत्थरों से निर्मित परकोटा (दीवार) होना चाहिए। नगर में मुख्य 12 द्वार होने चाहिए। जिसमें 3 राजमार्ग पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले और 3 रजमार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाले बनाए जाने चाहिए। नगर का कुल मिलाकर जितना क्षेत्र हो उसके नौवें भाग में राजप्रासाद या पूर्व निर्माण क्या जाना चाहिए। प्राचीर की सुरक्षा के लिए एक दूसरे के समांतर तीन खाईयां होनी चाहिए। इन खाईयों की चौड़ाई क्रमशः 14, 12 तथा 10 फुट होनी चाहिए। और इन के मध्य की चौड़ाई 6 फुट होनी चाहिए राजधानी का परकोटा अत्यंत सुदृढ़ होना चाहिए।
(2) गुफाएं (caves)
मौर्य काल में स्थापत्य कला के अंतर्गत एक नवीन शैली का उत्कर्ष हुआ जिस का जन्मदाता अशोक था। मौर्य काल में पर्वतों की चट्टानों को काटकर अनेक गुफाओं का निर्माण करवाया गया। इस प्रकार की स्थापत्य शैली का प्रारंभ मौर्य युग में ही हुआ था अशोक तथा उसके पुत्र दशरथ ने बाराबर तथा नागार्जुनी की पहाड़ियों में अनेक गुफाओं का निर्माण करवाया यह गुफाएं आजीविक भिक्षुओं के रहने के लिए बनाई गई थी। सम्राट अशोक ने गया के निकट बाराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण करवाया था इन गुफाओं में प्राचीनतम ‘सुदामा गुफा’ है। इस गुफा में 2 कमरे हैं अशोक के पुत्र दशरथ ने नागार्जुनी की पहाड़ियों में तीन गुफाओं का निर्माण करवाया था इनमें सबसे प्रसिद्ध वह प्रमुख बड़ी गुफा ‘गोपी गुफा’ है यह एक लंबे कमरे के समान है जिसकी छत मेहराबदार है इन गुफाओं की दीवारों पर की गई पुलिस आज भी शीशे की बातें चमकती व चिकनी है।
(3) स्तूप (Stupa)
स्तूप उल्टे कटोरे के आकार का पत्थर अथवा ईटों से बना हुआ एक ठोस गुंबद होता था जिसमें मृतकों के अवशेषों को रखा जाता था। महात्मा बुद्ध के अवशेषों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से ही मुख्यतया स्तूपो का निर्माण किया गया था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार सम्राट अशोक ने 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। इस कथन में अतिशयोक्ति है, परंतु इसमें संदेह नहीं कि अशोक ने बड़ी संख्या में स्तूप बनवाए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में भारत के विभिन्न भागों में अशोक द्वारा बनवाई गई इन स्तूपोर को देखा था। वह इंसान के अनुसार स्तूप तक्षशिला, श्रीनगर, थानेश्वर, कन्नौज, प्रयाग, मथुरा, श्रावस्ती, कौशांबी, कपिलवस्तु, कुशीनगर, बनारस, वैशाली, गया, पाटलिपुत्र आदि नगरों में विद्यमान थे।
अशोक द्वारा निर्मित स्तूप सांची तथा भरहुत का स्तूप अधिक प्रसिद्ध है। इनमें सांची का स्तूप सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह प्राचीन भारतीय कला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी ऊंचाई 77 फीट तथा वेदिका का व्यास 120 फुट है। स्तूप का व्यास 100 फीट रखा गया है। यह स्तूप लाल बलुआ पत्थर का है। इसके खंभे तथा फलक कलापूर्ण कृतियों से अलंकृत हैं। तोरण द्वारों पर यक्ष यक्षिणी यों की विशाल मूर्तियां उत्कीर्ण है। स्तूप के चारों ओर दो प्रदक्षिणा पद है। स्तुति तथा प्रदक्षिणा पथ वेदिका से गिरे हुए हैं। वेदिका के चारों ओर चार अत्यंत सुंदर तोरण द्वार है। वेदिका में चौकोर खंभ हैं। वेदिका की ऊंचाई 11 फीट है तथा खंभों की ऊंचाई 9 फीट है। इस स्तूप की वेदिका तथा उसके तोरण द्वारा की कला दर्शनीय है।
(4) स्तंभ (pillar)
अशोक ने अनेक स्थलों का निर्माण करवाया जो मौर्यकालीन स्थापत्य कला के श्रेष्ठ नमूने हैं। अशोक द्वारा बनवाई गई स्तंभ संख्या में लगभग 30 हैं जो देश के विभिन्न भागों में प्राप्त हुए हैं। अशोक के स्तंभ सारनाथ प्रयाग कौशांबी सांची मेरठ लौरिया नंदगढ़ रामपुरवा लुंबिनी आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं । यशवंत पत्थर के सुंण्डाकार है किंतु ऊपर की ओर पतले तथा नीचे की ओर मोटे हैं। यह स्तंभ चुनार के बलवा पत्थर से बने हुए हैं जो 40 फुट से लेकर 50 फुट तक ऊंचे हैं। यह स्तंभन नीचे से चौड़े तथा ऊपर से पतले होते हैं तथा एक ही पत्थर के बने होते हैं । अशोक के स्तंभ मौर्यकालीन शिल्प कला के उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रत्येक स्तंभ प्रमुख तीन भागों में विभाजित है- (1) मुख्य स्तंभ (2) घंटा कृति (3) शीर्ष भाग। स्तंभों का कोई भाग भूमि के अंदर गड़ा हुआ है तथा उस भाग पर मोरों की आकृति बनी हुई है। स्तंभ के बीच का भाग सीधा है। तथा सुंधा कार है जो एक ही विशाल बल हुए तथा लाल पत्थर का बना हुआ है। भूमि के ऊपर का भाग गोल तथा ऊपर की ओर गोराई कम होती है स्तंभों की औसत लंबाई 40 फुट है। स्तंभों के ऊपरी भाग में घंटा कृति है। घंटा कृति के ऊपर एक गोल चौरस पत्थर है। इस पत्थर पर शेर हाथी बैल घोड़ा आदि की बड़ी सुंदर मूर्तियां बनी हुई है। कुछ स्तंभों पर पशुओं की यह आकृतियां चारों ओर बनी हुई है तथा उनके पीठ के हिस्से बीच में मिले हुए हैं। इन पशु आकृतियों के नीचे महात्मा बुद्ध के धर्म चक्र परिवर्तन का आकृति चक्र उत्कीर्ण है जिसके आसपास सांड घोड़े आदि उत्कीर्ण हैं। इसके नीचे आमतौर पर कमल को तराशा गया है।
(5) राजप्रासाद (Rajprasad)
मौर्य सम्राटों ने अनेक राजप्रासादों का भी निर्माण करवाया, जो तत्कालीन भवन निर्माण कला के श्रेष्ठ उदाहरण है। चंद्रगुप्त मौर्य पाटलिपुत्र में एक भव्य राजप्रासाद बनवाया था। मेगस्थनीज लिखा है कि चंद्रगुप्त का राजप्रासाद ईरान के सूसा तथा एकबताना कि राज महलों से सजावट और कला में अधिक सुंदर है। इस महल के मूलम्मेदार स्तंभों पर सोने की बैलेंस चढ़ी हुई थी और पक्षियों की चांदी की मूर्तियां बनी हुई थी। जो बड़ी सुंदर थी। यह राजप्रासाद चारों और सुंदर उद्यानों से सुशोभित था उद्यान में मछलियों से युक्त सरोवर थे। कौटिल्य ने प्रसाद की निर्माण योजना के विषय में लिखा था कि अंततः पूर्व के चारों ओर भी खाई होनी चाहिए राजा के शयनागार की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए अथवा पाटलिपुत्र में राजा का सयनागार इस प्रकार से बनाया गया था कि ना तो वहां अग्नि का भय था और ना ही सर्प आदि प्रवेश कर सकते थे।
चंद्रगुप्त के समय तक भारत में भवनों और मकानों का निर्माण लकड़ी तथा गीतों से होता था परंतु अशोक के समय से इस क्षेत्र में पत्थर का प्रयोग किया जाने लगा अशोक ने भी पाटलिपुत्र में एक भव्य राजप्रासाद बनवाया। अशोक के द्वारा बनवाए गए पाटलिपुत्र की राजप्रासाद की कला और सुंदरता को देखकर चीनी यात्री फाहियान आश्चर्य चकित हो गया था। फाहियान ने लिखा है कि अशोक के महल व भवनों को देखकर लगता है कि इस लोक के मनुष्य इन्हें नहीं बना सकते। यह देवताओं के द्वारा बनाई गई होंगे। राज प्रसाद के रिश्ते में पत्थरों से बने हुए हैं और उन पर सुंदर खुदाई तथा पच्चीकारी है।
(6) सारनाथ का स्तंभ (pillar of sarnath)
अशोक के समस्त पाषाणी स्तंभों में सारनाथ का पाषाणी स्तंभ सबसे अधिक सुंदर है। इस स्तंभ के सिर से भाग पर बनी चार शेरों की मूर्तियां बड़ी सजीव तथा आकर्षक लगती है। शेरों के नीचे के पत्थर पर 4 धर्म चक्र तथा चार पशु, घोड़ा, शेर, हाथी एवं बैल के चित्र अंकित है तथा नीचे उल्टी घंटी से बनी हुई है। संसार के किसी भी देश में कला की सुंदर प्रीति से बढ़कर अथवा इसके समान शिल्प कला का उदाहरण पाना कठिन होगा।
एक टिप्पणी भेजें