भारतीय कृषि की विशेषताएं एवं उसके पिछड़ेपन के कारण

 भारतीय कृषि (Indian agriculture)

प्राचीन काल से ही कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। ज्यादातर जनसंख्या कृषि में संलग्न है और उनकी जीविका का मुख्य साधन कृषि है। राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा है। कृषि पर आधारित उद्योग धंधों को यह पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध कराती है किंतु इसके बावजूद भारतीय कृषि आज उतनी समृद्धि नहीं है जितनी उसको होनी चाहिए। और आज भी भारतीय कृषि मानसून का जुआ कहलाती है।


भारतीय कृषि की विशेषताएं (specialty of Indian agriculture)

 (1) आजीविका का साधन

भारतीय कृषि की विशेषताएंभारतीय कृषि देश की अधिकांश जनसंख्या की जीविका का साधन माना जाता है। प्राचीन काल से ही कृषि से न केवल खाद्यान्न प्राप्त होता है बल्कि कृषि पर आधारित कुटीर उद्योग धंधों को कच्चा माल प्राप्त होता है जिससे ज्यादा तर गांव के ज्यादातर लोग कृषक के रूप में संलग्न होते हैं। इस प्रकार कृषि उनके रोजगार का मुख्य व्यवसाय होता है। ग्रामीण दस्तकार कारीगर एवं अन्य लोग अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर आधारित होते हैं। और अपनी जीविका चलाते हैं।

(2) राष्ट्रीय आय में महत्वपूर्ण योगदान

 ब्रिटिश काल से ही देश की राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ब्रिटिश काल में देश की राष्ट्रीय आय का आधे से अधिक सक्रिय से प्राप्त होता था। आज भी इसका राष्ट्रीय आय में अपना महत्वपूर्ण स्थान है।

(3) अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर

देश की ज्यादातर से जनसंख्या कृषि पर आधारित होती है। भारत गांवों का देश है जहां लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है तथा वहां के अधिकांश जनसंख्या कृषि में संलग्न है। ब्रिटिश काल में भी देश की 87% जनसंख्या कृषि में संलग्न हुई थी।

(4) निम्न उत्पादकता

 भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान होते हुए भी यह पिछड़ी हुई है। इसके कारण कृषि उत्पादकता बहुत निम्न हो गई है। निम्न उत्पादकता का मुख्य कारण वर्षा पर निर्भरता, परंपरागत तकनीक, कृषकों का अशिक्षित होना, ग्रामीण ऋण , निर्धनता सरकार की दोषपूर्ण नीति आधी है। जिस कारण निम्न उत्पादकता के कारण कृषक निर्धन बना रहता है।

(5) मानसून पर आधारित

 भारतीय कृषि सदियों से मानसून का जुआ कहलाती है, क्योंकि जिस वर्ष मानसून अच्छा रहता है फसल उत्पादन अच्छा हो जाता है। अतिवृष्टि होने पर देश को अकाल का सामना करना पड़ता है। और जिस वर्ष मानसून या वर्षा नहीं होती उस वर्ष फसल उत्पादन बेकार होता है। इस विवेचना से स्पष्ट होता है कि भारतीय कृषि वर्षा पर आधारित है। वर्षा के अभाव में कृषि उत्पादन घट जाता है।

(6) उप विभाजन तथा उपखंडन

 भारतीय कृषि की एक मुख्य विशेषताओं है कि भारत में कृषि जोत के टुकड़े टुकड़े होते हैं और वे दूर-दूर तक बिखरे हुए होते हैं। भारत में ब्रिटिश काल से संयुक्त परिवार का विघटन एवं उत्तराधिकारी नियम के कारण भूमि के टुकड़े छोटे-छोटे हैं दूर-दूर बिखरे हुए होते हैं जिसके कारण कृषि उत्पादकता घटती चली जाती है और मितव्ययिता कम होती चली जाती है।

(7) भारतीय संस्कृति की रक्षा

 प्राचीन काल से ही कृषि का भारतीय संस्कृति पर बहुत अच्छा प्रभाव डालती है और साथ ही भारतीय संस्कृति की रक्षा करती है। कृषि धंधा ज्यादातर ग्रामीण लोग करते हैं जो शहरी जनता के मुकाबले में सांस्कृतिक परिवर्तनों को रोकने में अधिक प्रतिरोध करते हैं।

(8) कृषक का परंपरावादी दृष्टिकोण

 भारतीय कृषि परंपरावादी दृष्टिकोण रखता है । ज्यादातर कृषक भाग्य के सहारे जीते हैं। इसके अलावा यहां का कृषक अशिक्षित अंधविश्वास एवं रूढ़िवादी है। वह ग्रामीण जाति प्रथा सामाजिक व धार्मिक नियमों से बुरी तरह झगड़ा हुआ है जिसके कारण कृषि के प्राचीन व अवैज्ञानिक ढंगों पर खेती करता है।

भारतीय कृषि की विशेषताएं एवं उसके पिछड़ेपन के कारण

भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का कारण (Reasons for the backwardness of Indian agriculture)

(1) रूढ़िवादिता एवं अंधविश्वास

 किसानों का रूढ़िवादी दृष्टिकोण भाग्य पर अधिक विश्वास और शिक्षा अज्ञानता एवं तकनीकी के अभाव आदि के कारण भी भारतीय कृषि की उत्पादकता प्रति श्रमिक और प्रति हेक्टेयर कम रही है।

(2) कृषि कार्य में प्राचीन उपकरण

 पश्चिमी देशों की तरह भारतीय कृषक विच्छेद उपकरणों एवं विविध का प्रयोग नहीं कर पाया क्योंकि निर्धनता के कारण वह उनको कराई नहीं कर सकता था। इसके साथ देश में भी इस प्रकार की तकनीक विकास नहीं हो पाया था।

(3) कृषि पर जनसंख्या का बढ़ता प्रभाव

 जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ने के प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि घटती गया। सन 1931 में प्रति व्यक्ति भूमि 1.34 हेक्टेयर थी जो एक आर्थिक जोत नहीं की जा सकती है। 

(4) गरीबी का दुष्चक्र

 गरीबी के कारण भूमि पर कम पूंजी का विनियोग होता है जिस कारण उत्पादन में उतनी सफलता नहीं मिलती है जिससे कम उत्पादन होता है। परिणाम स्वरूप कमाई वह कम बचत होती है। कम विनियोग होता है। अकाल आयोग, 1901 के अनुसार भारत में 80% कृषक कम या अधिक ऋण से ग्रस्त थे।

(5) दोषपूर्ण विपणन व्यवस्था

 दोषपूर्ण विपणन व्यवस्था, एक अनुमान के अनुसार भारत में किसान को उसकी उपज के मूल्य का करीब 50 से 70% तक की भाग ही मिल पाता है। शेष बचा हुआ मध्यस्थों, दलालों और व्यापारियों द्वारा हड़प लिया जाता है। इससे उनकी आयु बहुत कम होती थी जिससे वह कृषि में सुधार नहीं कर पाए।

(6) मूल्यों में स्थायित्व का प्रभाव

 साधारणतया यह देखा जाता है कि फसल के समय उनके मूल्य अधिक गिर जाते हैं, जिससे किसान को उसको उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। बाद में कीमतें बढ़ जाती हैं जिससे व्यापारियों को लाभ होता है। इस कारण से भी किसान लोग घाटा खाते हैं।

(7) प्राकृतिक कारण

 बाढ़, बीमारी, टिड्डीयां, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि से उत्पादकता कम हो जाती है। भारतीय कृषि मानसून पर आधारित होती है वर्षा अनिश्चित और कम होती है इसलिए भी उत्पादकता में कमी रहती है।

भारतीय कृषि की विशेषताएं एवं उसके पिछड़ेपन के कारण

(8) भूमि का अत्यधिक कटाव

इससे कृषि योग्य भूमि घटती जा रही है। आज के समय में सड़कों का निर्माण फैक्ट्रियों का निर्माण आदि के कारणों से भूमि का कटाव अधिक हो रहा है जिस कारण कटाव से मिट्टी की ऊपरी सतह की उपजाऊ मिट्टी हट जाती है जिससे भूमि की उत्पादकता क्षमता कम हो रही है।

(9) सिंचाई सुविधाओं की कमी 

भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर करती है मानसून अनियमित अपर्याप्त और असामयिक होता है जिससे उत्पादकता अनिश्चित और कम रहती है। सिंचाई सुविधा की कमी के कारण यहां के अधिकांश कृषि मानसून पर निर्भर रहती है। भारतीय कृषि अधिकांश तो पहाड़ी राज्यों में अधिक होती है जिस कारण वहां सिंचाई के साधनों की कमी हो जाती है और मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है।

(10) फसलों की असुरक्षा 

किसान गरीबी और अज्ञानता के कारण फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों वह कीटाणुओं से बचा नहीं पाता था परिणाम स्वरूप उत्पादन घट जाता था करीब 15% फसल सुरक्षा के कारण नष्ट हो जाती है।

(11) दोष पूर्ण सामाजिक संगठन 

दोष पूर्ण सामाजिक संगठन में संयुक्त परिवार प्रथा प्रमुख है। इसके कारण परिवार का कोई भी व्यक्ति पूर्ण जिम्मेदारी से कृषि अधिकारी नहीं करता है।

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