राज्य क्या है? अर्थ, परिभाषा | राज्य के आवश्यक तत्व

राज्य का अर्थ एवं परिभाषा 

राज्य का अर्थ - राज्य एक स्वतंत्र और संगठित प्रशासनिक एकता को सूचित करता है जो एक निश्चित क्षेत्र में जनसंख्या, सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना और सरकार के अधीन आता है। यह शक्तियों और प्राधिकृतियों का एक संगठित नेटवर्क होता है जो समाज की विभिन्न पहलुओं को प्रबंधित करता है और समाज के सभी अवश्यक कार्यों को सुनिश्चित करता है।

राज्य की परिभाषा 

इसी रूप में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषा में है — 

1) अरस्तु के अनुसार —राज्य परिवारों और गांव का एक ऐसे समुदाय है जिसका उद्देश्य पूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन की प्राप्ति है।
2) हॉलैंड के अनुसार —राज्य ऐसे मनुष्यों का बहुसंख्यक संगठन है जो साधारणतया एक निश्चित प्रदेश में निवास करते हो और जिनमें बहुमत अथवा एक सुनिश्चित वर्ग की इच्छा उस बहुमत वर्ग वर्ग की सख्ती के कारण उन सब पर चलती हो जो उसका विरोध करते हो।

3) गार्नर के अनुसार राजनीति विज्ञान तथा सार्वजनिक कानून की धारणा के रूप में राज्य कम या अधिक व्यक्तियों का एक ऐसा समुदाय है जो किसी निश्चित भूभाग में स्थाई रूप से निवास करता हो बाय निरंजन से पूर्णतया या लगभग मुक्त हो और एक संगठित शासन से युक्त हो आदेशों का पालन नागरिकों के विशाल समुदाय द्वारा स्वभावतया किया जाता हो।

राज्य के आवश्यक तत्व

राज्य के आवश्यक तत्व का वर्णन — 

(1) जनसंख्या 

राज्य का प्रथम अनिवार्य तत्व जनसंख्या है राज्य व्यक्तियों की योग से बनता है। ब्लंटशली के अनुसार राज्य के अस्तित्व का आधार जनता में निहित है परंतु जनसंख्या के विषय में दो प्रश्न उत्पन्न होते हैं जनता कैसी होनी चाहिए राजनीतिक जीवन की दृष्टि से यो एक महत्वपूर्ण है कि जनता कैसी हो जनता के स्वरूप पर ही राज्य का शोरूम निर्भर करता है जैसे जनता होगी वैसे ही राज्य होगा यह आवश्यक है कि राज्य की जनता उच्च स्तर की हो अर्थात शारीरिक बौद्धिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से उत्पन्न हो उत्पन्न शिक्षित और राजनीतिक चेतना से संपन्न जनता है किसी देश के लिए सुदृष्टि आधार का निर्माण करती है।
  ★     जनता की संख्या के संबंध में यह कहना कठिन है कि राज्य में कितनी जनसंख्या होनी चाहिए केवल यह कहा जा सकता है कि जनता पर्याप्त होनी चाहिए संचार में अधिकतर जनसंख्या वाले क्षेत्र भी हैं जैसे भारत और चीन तथा कम जनसंख्या वाले देश भी हैं जय श्री सुजल एंड तथा कोस्टारिका आदि प्लेटो आदर्श राज्य की जनसंख्या 5040 मानता है तथा रूसो 10000 को आदर्श जनसंख्या मानता है जनसंख्या के विषय में अरस्तु का विचार था कि राज्य की जनसंख्या में बहुत कम होनी चाहिए और वही बहुत अधिक जनसंख्या के संबंध में गारनर का मत है कि जनता राज्य के संगठन के निर्वाह के लिए संख्या में प्राप्त होनी चाहिए तथा वह उससे अधिक नहीं होनी चाहिए जितनी के लिए भूखंड तथा राज्य के साधन में पर्याप्त हो इसी प्रकार विचार सुल्तान ने प्रकट किया है जनसंख्या का संबंध प्रयोग की वस्तुओं की उपलब्धि वंचित जीवन स्तर तथा सुरक्षा एवं उत्पादन की आवश्यकता से होना चाहिए उसका गुण नागरिकों के गुण राज्य की उन्नति तथा निर्भर करती है।

(2) प्रदेश 

भूमि प्रदेश अथवा स्थाई भूभाग राज्य का आवश्यक तत्व है प्रत्येक राज्य के पास निश्चित प्रदेश होना चाहिए जिसकी सीमाएं पूर्व निश्चित हो और जिसमें उस राज्य की जनता स्थाई रूप से निवास करती हो किसी इधर उधर भटकने वाली खानाबदोश जाति को राज्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती एक निश्चित भूखंड का अधिकार स्थापित करने के उपरांत ही वे एक राज्य होने का दावा कर सकते हैं यह प्रत्यक्ष उदाहरण है कि बीसवीं शताब्दी के यहूदियों ने जब तक अपना स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए भाग नहीं प्राप्त कर लिया तब तक उन्होंने अपने को एक राज्य स्वीकार नहीं किया भूमि के आधार पर इजराइल राज्य की स्थापना हुई परंतु राज्य कहलाने के लिए कितना बड़ा होना चाहिए जो निश्चित रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता संसार में छोटे छोटे बड़े से बड़े सभी प्रकार के राज्य हैं एक और रूप से जैसे विशाल क्षेत्र के राज्य हैं तो दूसरी ओर ऐसा राज्य है जिसका क्षेत्रफल  केवल60.8 वर्ग किलोमीटर है। ग्रीक विचारक आत्मनिर्भरता को राजनीति की कसौटी मानते थे अरस्तु अपने आदर्श राज्य के संबंध में कहता है कि राज्य की भू सीमा के अंतर्गत प्राकृतिक साधनों की स्थाई निवास ही राज्य को अन्य समुदायों से उच्चतर स्थिति प्रदान करता है।

(3) सरकार 

 सरकार राज्य का तीसरा उसे तत्व है सरकार के माध्यम से ही राज्य की इच्छाओं की अभिव्यक्ति होती है राज्य तो एक अमूर्त संख्या है जिसका मूर्त रूप सरकार है सरकार कुछ व्यक्तियों का वह संगठन होता है जो राज्य की इच्छा को कार्यान्वित करता है सामूहिक जीवन की समुचित व्यवस्था करने के लिए कानून निर्माण करने के लिए तथा उन्हें लागू करने के लिए वह भी तो और प्रशासन की व्यवस्था के लिए शांति व्यवस्था के लिए शासन के संगठन की आवश्यकता होती है इसलिए प्रत्येक राज्य के लिए सरकार अनिवार्य है गार्डनर के अनुसार सरकार राज्य का वह सावधानियां मंत्र है जिसके द्वारा राज्य उद्देश्य अर्थात सामान्य नीतियों और समान उद्देश्यों की पूर्ति होती है सरकार के अभाव में जनता एक असंगठित या अनियंत्रित जनसमूह मात्र होती है जिसके पास सामूहिक रूप से कोई कार्य करने के साधन नहीं होते हैं।

(4) संप्रभुता 

 संप्रभुता राज्य का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है जिसे हम राज्य का प्राण कह सकते हैं यह तो राज्य का अन्य मानव संस्थाओं से भेद करता है। ब्लू बी के अनुसार संप्रभुता राज्य की सरोवर इच्छा होती है संप्रभुता का अर्थ राज्य की सर्वोच्च सत्ता से होता है यह आदेश देने और उसका पालन कराने की क्षमता रखती है प्रत्येक राज्य के लिए यह आवश्यक है कि वह बाहरी नियंत्रण से मुक्त हो और आर्थिक क्षेत्र में भी सर्वोपरि हो शर्म प्रवक्ता आंतरिक और बाहरी दो प्रकार की होती हैं आंसर संप्रभुता का विवाह है कि अपनी सीमा के अंतर्गत राज्य के ऊपर अन्य कोई सत्ता नहीं है कानून व्यक्ति या समुदाय कोई भी राज्य से ऊपर नहीं है । 


★ संप्रभुता का अर्थ है कि राज्य की सीमा के बाहर सत्ता राज्य के ऊपर नहीं है कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन या कोई बाहरी राज्य अंतरराष्ट्रीय कानून राज्य की संप्रभुता को मर्यादित नहीं कर सकती इसी संपदा को लक्ष्य करके खुदा ने कहा था कि राज्य नागरिकों तथा परिजनों के ऊपर सर्वोच्च है जो कानून द्वारा भी नियंत्रण नहीं है आस्तीन संप्रभुता को अमर्यादित अविभाज्य शुभम स्थाई तथा सर्वोच्च मानता है उदाहरण के लिए 15 अगस्त 1947ई० के पूर्व भारत एक राज्य नहीं था क्योंकि जनसंख्या निश्चित भूभाग और सरकार के रहते हुए भी संप्रभुता संपन्न नहीं था।

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