संप्रभुता (sovereignty)
संप्रभुता का अर्थ एवं परिभाषा
संप्रभुता राज्य का महत्वपूर्ण तत्व है। यह राज्य का अनिवार्य गुण है जो इसे अन्य समुदायों से पृथक करता है लांस्की के शब्दों में, “संप्रभुता के कारण ही राज्य अन्य सभी प्रकार के मानव समुदायों से भिन्न है।” बिना संप्रभुता के किसी भी स्वतंत्र राज्य का अस्तित्व नहीं है। यह राज्य की आत्मा को प्राण है गार्नर के शब्दों में, “संप्रभुता राज्य का व्यक्तिगत और उसकी आत्मा है।”
संप्रभुता की परिभाषाएं
संप्रभुता की परिभाषाएं बहुत सारे विद्वानों और विचारकों ने दी है।
जेलिनेक के अनुसार - संप्रभुता राज्य का वह गुण है जिसके फलस्वरूप वह अपनी इच्छा और शक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से बाध्य अथवा सीमित ना हो।
बोंदा के अनुसार- प्रभुसत्ता नागरिकों और प्रजा जनों के ऊपर राज्य की वह सर्वशक्ति है जिसके ऊपर कानून का प्रतिबंध नहीं है।
बरगेस के अनुसार -संप्रभुता राज्य के निवासियों तथा समुदायों पर मौलिक निरंकुश तथा अश्मित शक्ति है जो लोगों को आज्ञा पालन के लिए बाध्य कर सकती है।
डिग्वि के अनुसार संप्रभुता- राज्य को आदेश प्रदान करने वाली शक्ति है वह राष्ट्र की बहुत इच्छा है जिसका संगठन राज्य में किया गया है इसे राज्य की सीमा के अंतर्गत सभी व्यक्तियों को बिना किसी शर्त की आज्ञा देने का अधिकार है।
जॉन ऑस्टिन के अनुसार - यदि एक निश्चित मानव श्रेष्ठ स्वभाव था उसी प्रकार के मानव सृष्टि के आदेशों का पालन करने का अभ्यस्त ना हो और समाज के बहुसंख्यक लोग स्वभाव तो हो उसके आदेशों का पालन करते हो तो उस समाज में वह निश्चित मानव श्रेष्ठ प्रभु है और वह समाज (उस मानव श्रेष्ठ सहित) राजनीतिक तथा स्वतंत्र समाज है।
परिभाषाओं का निष्कर्ष
इन परिभाषा से स्पष्ट है कि संप्रभुता राज्य की सरूरपुर सकती है यह राज्य का गुण है ना किसी व्यक्ति का प्रत्येक राज्य में यह विद्यमान है इसके बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती यह आंतरिक और बाह्य दोनों रूपों में होती है एवं सकता ना तो किसी उच्च सत्ता को और ना ही अपने किसी प्रतिद्वंदी को स्वीकार करती हैं यह राज्य में कानून बनाने तथा उन कानूनों को लागू कराने वाली सर्वोच्च सत्ता है यह आदेश देने और उनका पालन कराने की सर्वोच्च सकता है यह अविभाज्य, पूर्ण, अदेय, स्थाई, सर्वव्यापी तथा निरपेक्ष होती है।
संप्रभुता के प्रकार
संप्रभुता दो प्रकार की होती हैं —(1) आंतरिक संप्रभुता तथा (2) बाह्य संप्रभुता।”
(1) आंतरिक संप्रभुता
आंतरिक संप्रभुता से अभिप्राय है कि राज्य- सीमा के अंतर्गत सब उसकी आज्ञा का पालन करते हैं तथा सभी व्यक्ति एवं संस्थाएं उसके अधीन रहते हैं राज्य उनमें से किसी की भी आज्ञा मानने के लिए बाध्य नहीं है।
(2) बाह्य संप्रभुता
बाह्य संप्रभुता से अभिप्राय है की बाह्य क्षेत्र में भी कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो राज्य के ऊपर हो और उसे आज्ञा दे सके। आंतरिक तथा बाह्य मामलों की यह सर्वोच्च ही संप्रभुता के नाम से पुकारी जाती है इस प्रकार संपूर्ण राज्य कि वह परम शक्ति है जो आंतरिक तथा बाह्य नियंत्रण से मुक्त होती है इसी संप्रभु सत्ता द्वारा राज्य के समस्त कार्यों का संचालन होता है।
संप्रभुता की विशेषताएं एवं लक्षण
(1) निरंकुशता
राज्य की संप्रभुता का यह गुण उसे असीम मानता है। संप्रभुता कानून द्वारा सीमित नहीं है राज्य के अंदर या बाहर उसके ऊपर उसे आज्ञा देने वाली कोई शक्ति नहीं है। ऑस्टिन की शब्दों में संप्रभु अन्य सभी के आदेश पालन कराने की स्थिति में होता है परंतु स्वयं किसी के आदेश पालन का अभ्यस्त नहीं होता है संप्रभुता सुरक्षा स्वयं पर नियंत्रण लगा सकती है उन्हें जब चाय हटा भी सकती है विदेशों से संधि जो एक राज्य करता है उसे भी संप्रभु सकता सीमित नहीं होती है क्योंकि संध्या समझौते भी राज्य की सुरक्षा से किए जाते हैं राजे चाहे तो उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं।
(2) सर्व व्यापकता
इसका अर्थ यह है कि संप्रभुता राज्य की समस्त भूमि और जनसंख्या पर व्याप्त है ।राज्य की सीमा के अंतर्गत रहने वाले सभी मनुष्य तथा संगठनों पर इसका अधिकार होता है तथा सभी को राज्य की सत्ता स्वीकार करनी पड़ती है कोई भी व्यक्ति या संगठन राज्य के ऊपर रहने का यह राज्य से बाहर रहने का दावा नहीं कर सकता है सबको राज्य के आदेशों का पालन करना पड़ता है चाहे इच्छा से करें चाहे व्यवस्था से अन्य देशों के राजदूत या प्रतिनिधि इस शक्ति के अधीन रहकर अपने ही राज्य की शक्ति के अधीन रहते हैं इसको राज्य उत्तर संप्रभुता कहा जाता है क्योंकि दूसरे देशों के दूतावासों पर उस राज्य के कानून प्रभावी नहीं होते हैं परंतु यह केवल अंतरराष्ट्रीय शिष्टाचार है यदि कोई राज्य चाहे तो इस सुविधा को अस्वीकार कर सकता है।
(3) स्थायित्व
संप्रभुता और राज्य का अटूट संबंध होता है ।संप्रभुता राज्य का स्थाई कौन है जब तक राज्य है तब तक संप्रभुता है संप्रभुता के बिना कोई स्वतंत्र राज्य नहीं हो सकता अपने इस गुण को खोने के बाद राज्य का अस्तित्व समाप्त हो जाता है स्पष्ट शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यदि संप्रभुता नष्ट हो जाए तो राज्य नष्ट हो जाता है राज्य को संप्रभुता से पृथक करना संभव नहीं है परंतु संप्रभुता राज्य का गुण है ।सरकार का नहीं सरकार परिवर्तित होती रहती है लेकिन राज्य स्थाई है क्योंकि संप्रभुता स्थाई है इस संबंध में गिलक्रिस्ट का यह कथन सत्य ही प्रतीत होता है कि राज्य या राज्य राष्ट्रपति की मृत्यु से केवल सरकार में एक व्यक्तिगत परिवर्तन होता है इससे राज्य के अविरल प्रभाव में एवं उसकी अटूट गति में कोई बाधा नहीं आती।
(4) विभाज्यता
संप्रभुता अविभाज्य है और इसे विभाजित नहीं किया जा सकता इसका विभाजन असंभव है एक राज्य में एक ही सर्वोपरि सकती हो सकती है नागरिक केवल एक ही शक्ति की आज्ञा का पालन करते हैं। गैटिल का कथन है कि संप्रभुता पूर्ण नहीं है तो किसी राज्य का अस्तित्व नहीं रह सकता यदि संप्रभुता विभाजित है तो इसका अर्थ है एक से अधिक राज्यों का अस्तित्व है।
(5) मौलिकता
संप्रभुता मौलिक होती है यह राज्य का मौलिक गुण है जिसे किसी दूसरी शक्ति द्वारा प्रदान नहीं किया जा सकता है ।यह राज्य की अपनी स्वयं की मौलिक शक्ति होती है यह राज्य का स्वाभाविक गुण है तो राज्य को स्वयं अपने आप में प्राप्त है।
(6) एकत्व अथवा अनन्यता
एकत्व अर्थ यह है कि राज्य में एक ही संप्रभु होता है यदि संप्रभु एक से अधिक हैं जब राज्य भी एक से अधिक हैं जैसे एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती वैसे ही एक राज्य में दो संप्रभु नहीं रह सकते संप्रभुता राज्य में सर्वोच्च है और सब उसके अधीन है तथा एक राज्य में एक ही संप्रभु होता है।
(7) अदेयता या अपृथक्करणीयता
संप्रभुता अजेय है, यह किसी को दी नहीं जा सकती है। कोई राज्य स्वयं को नष्ट किए बिना अपनी संप्रभुता का पर त्याग नहीं कर सकता है। संप्रभुता की समाप्ति पर राज्य का अंत हो जाता है। इसी दिशा में गार्नर का कथन है, “किसी राज्य द्वारा संप्रभुता का त्याग आत्महत्या तुल्य है।”
महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
संप्रभुता?
संप्रभुता राज्य का महत्वपूर्ण तत्व है।। यह राज्य का अनिवार्य गुण है जो इसे अन्य समुदायों से पृथक करता है लांस्की के शब्दों में, “संप्रभुता के कारण ही राज्य अन्य सभी प्रकार के मानव समुदायों से भिन्न है।” बिना संप्रभुता के किसी भी स्वतंत्र राज्य का अस्तित्व नहीं है। यह राज्य की आत्मा को प्राण है गार्नर के शब्दों में, “संप्रभुता राज्य का व्यक्तिगत और उसकी आत्मा है संप्रभुता दो प्रकार की होती हैं —(1) आंतरिक संप्रभुता तथा (2) बाह्य संप्रभुता।”
संप्रभुता का अर्थ?
शाब्दिक दृष्टि से ‘संप्रभुता’ शब्द अंग्रेजी शब्द (Sovereignty)का हिंदी रूपांतरण है यह शब्द लैटिन भाषा के शब्द (Supranus) से लिया गया है जिसका अर्थ उस भाषा में सर्वोच्च शक्ति(Super= Supreme;anus=power) है इस प्रकार संप्रभुता राज्य की सर्वोच्च शक्ति है। यह सर्वोच्च शक्ति राज्य के पास सदैव ही रहती है। इसी शक्ति के बल पर राज्य अपने क्षेत्र के सभी निवासियों को संस्थाओं को आज्ञा पालन करने को विवश करता है ।तथा स्वयं किसी की आज्ञा पालन करने के लिए बाध्य नहीं है।
संप्रभुता की परिभाषा क्या है?
संप्रभुता राज्य का वह गुण है जिसके फलस्वरूप वह अपनी इच्छा और शक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से बाध्य अथवा सीमित ना हो।
संप्रभुता की विशेषताएं?
संप्रभुता की विशेषताएं निम्न प्रकार हैं जैसे सर्वव्यापकता, अविभाजित, मौलिकता आदि।
संप्रभुता के सिद्धांत का जनक कौन है?
सर्वप्रथम जीन बोंदा ने 1756 में अपनी पुस्तक में संप्रभुता के बारे में कहा। लेकिन संप्रभुता का सबसे बड़ा सिद्धांत आस्टिन ने दिया।
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