उदारवाद क्या है -अर्थ, सिद्धांत, प्रकार, विशेषताएं

 उदारवाद 

उदारवाद का अर्थ एवं परिभाषा

उदारवाद का अर्थ ;उदारवाद हिंदी में अंग्रेजी के लिबरलिज्म (Liberalism)  शब्द का अनुवाद है। लिबरलिज्म शब्द लैटिन के स्वतंत्रतावादी ‘Liber' शब्द से बना है और ‘Liber' शब्द का अर्थ है— स्वतंत्र, प्रतिबंध और उन्मुक्त। उदारवाद राजनीति का वह सिद्धांत है जो सामंतवाद के पतन के पश्चात राजनीति को बाजार (पूंजीवादी) अर्थव्यवस्था के अनुरूप डालने के लिए अस्तित्व में आया। प्रारंभ में उदारवादियों ने राजनीति के केंद्र बिंदु के रूप में व्यक्ति को देखा परंतु बाद में बहुलवादी प्रभाव के कारण इसने राजनीति में समूहों की भूमिका को महत्व देना प्रारंभ कर दिया। उदारवाद का प्रारंभ और अहस्तक्षेप नीति से होते हुए आगे बड़ा तथा परिवर्तित परिस्थितियों में लोक कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत में समाहित हो गया।

उदारवाद की सामान्य परिभाषा 

उदारवाद की परिभाषा

उदारवादी विचारधारा ना तो एक निश्चित क्रमबद्ध विचारधारा है न तू एक व्यक्ति के विचारों का परिणाम है और ना ही यह किसी गुण के साथ जुड़ी हुई है यह अनेक विचारों का समीशिक्षण है। एक जीवन दृष्टि है जिसके अंतर्गत अनेक सा मान्यताएं आदर्श और संस्थाएं हैं ।प्रारंभ में उदारवाद को ऑन उदारवाद का विलोम और परिवर्तन का पर्यायवाची माना गया लेकिन हमने हमेशा परिवर्तनों का स्वागत नहीं किया है ।और कुछ अवसरों पर इसने विद्यमान व्यवस्था को बनाए रखने का पक्ष लिया है यह क्रांति विरोधी विचारधारा है व्यक्तिवाद उदारवाद का अभिन्न अंग है। लेकिन उससे अलग है यह लोकतंत्र से भी कुछ अधिक है। 

(1) सारटोरी के अनुसार - “सामान्यतया उदारवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संवैधानिक राज्य का सिद्धांत है। वर्तमान समय में उदारवाद व्यक्तिवाद, प्रजातंत्र तथा समाजवाद के मिश्रण के रूप में विकसित एक पूंजीवादी वर्ग की विचारधारा के रूप में स्वीकार किया जाता है।” 

(2) राजनीतिक शब्दकोश के अनुसार - “उदारवाद वैयक्तिक अधिकार में विश्वास तथा धार्मिक एवं राजनीतिक धारणाओं में अंत:कारण के अनुसार विश्वास का बुनियादी सिद्धांत है।” 

उदारवाद की प्रमुख विशेषताएं

(1) मानव विवेक में अटूट विश्वास 

उदारवाद ऐसी विचारधारा है जो सामाजिक और आर्थिक और धार्मिक मामलों में बुद्धि वाद क आधार पर कर्म सुधारों का समर्थन करती है एवं मानव विवेक को प्राथमिकता देता है  परंपरा और रूढ़ि को नहीं। यह ऐतिहासिक परंपराओं सामाजिक संस्थाओं एवं रूढ़ियों धार्मिक अनुष्ठानों व मान्यताओं को उसी मात्रा तक स्वीकार करता है जिस सीमा तक हुए मानव विवेक पर खरी उतरी हैं।

(2) मानव स्वतंत्रता में अटूट विश्वास

उदारवाद का सार तत्व है- व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता। एक उदारवादी के लिए व्यक्ति जो महत्व रखता है वह हम हैं तो समाज या उसका कोई अंत नहीं रखता है ऐसे लोस्की के शब्दों में उदारवाद का स्वतंत्रता से सीधा संबंध है इसका जन्म एक वर्ग या धर्म के आधार पर प्राप्त विशेष अधिकारों के विरोध में हुआ।

(3) बलात हस्तक्षेप का विरोधी

उदारवाद स्वतंत्रता का दर्शन है और ब्लॉक हस्तक्षेप का विरोधी है यो हर उस चीज का विरोध करता है जो उसकी स्वतंत्रता को कम करती है अतः शक्तियां सत्ता का निरंकुश विस्तार या केंद्रीकरण करती है इसलिए उदारवाद सर सप्ताह बाद निरंकुशता बाद अधिनायकवाद तथा एकाधिकार वाद का विरोधी है।

(4) व्यक्ति साध्य, राज्य व समाज साधन

उदारवाद व्यक्ति को शादी तथा राज्य व समाज को साधन समानता है। उदारवादी का मानना है कि संस्थाएं व्यक्ति के लिए हैं राज्य अच्छे जीवन के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर कर उसके मार्ग को प्रस्तुत करने के लिए है।

(5) धर्म निरपेक्ष अवधारणा का समर्थक

उदारवाद धार्मिक कट्टरता का विरोधी है और धार्मिक सहिष्णुता का समर्थक है उसका उदय धार्मिक कट्टरता से विरोध में हुआ था अथवा इसके विचार मानवतावाद तथा धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करते हैं।

(6) क्रमिक सुधार में विश्वास

उदारवादी विचारधारा राजनीति के क्षेत्र में संसदीय तथा वैध तरीकों से कर्मिक सुधार करने में विश्वास रखती है अर्थात राजनीति सिद्धांत के रूप में उदारवाद दो  पृथक तत्वों का सम्मिश्रण है — (1) लोकतंत्र  (2) व्यक्तिवाद। इस विचारधारा के अनुसार सभी सामाजिक आरती और राजनीतिक संस्थाएं मनुष्य द्वारा बनाई गई हैं और उनका निरंतर संशोधन होते रहना चाहिए जबकि अनुराग अनुराग वादी इन संस्थाओं को स्वाभाविक विकास का परिणाम समझते हैं और इनमें परिवर्तन करने का विरोध करते हैं।

(7) समाज एक कृतिम संस्था है

उदारवादी राज्य को एक प्राकृतिक तथा स्वाभाविक संस्था नहीं मानते हैं और नौवें उसे सांवयव जीवधारी सस्ता ही मानते हैं। वे उसे एक कृत्रिम संस्था मानते हैं। उनका मानना है कि व्यक्ति ने राज्य का निर्माण अपने विशिष्ट वित्तीय आवश्यकताओं का पूर्ति के लिए किया है और यह तो वह आवश्यकताओं में परिवर्तन होने पर वह उसमें भी परिवर्तन कर सकता है।

उदारवाद के मूल सिद्धांत 

(1) लोकतंत्र में विश्वास

udarvad ke siddhant - उदारवाद का मूल तत्व प्रजातंत्र की पद्धति का प्रबंध शोषण तथा समर्थन है। इसका प्रादुर्भाव और विकास 1688, 1776 तथा 1789 की क्रांतियों में स्वेच्छाचारी शासन के विरुद्ध प्रक्रिया के रूप में हुआ था उदारवाद के अनुसार सभी मनुष्य स्वतंत्र रूप से जन्म लेते हैं अतः किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह दूसरों पर उनकी सहमति के बिना शासन करें फ्रेंच राज्यक्रांती के समय की गई मानवीय अधिकारों की घोषणा में इस सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि राष्ट्रीय की जनता ही वस्तु तो समूची प्रभुसत्ता का मूल स्रोत है कोई व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह किसी ऐसी सत्ता अधिकारी नहीं हो सकता है जो उसे जनता से प्राप्त न हुई हो।

(2) इतिहास का परंपराओं का विरोध

उदारवाद माननीय विवेक में विश्वास करता है और किसी भी ऐसे विचार संस्था या सिद्धांत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है जो बुद्धि संगत ना हो चाहे वह कितना भी पुराना क्यों ना हो और चाहे उसे कितना भी पवित्र क्यों ना समझा कर जाता रहा उदारवाद का विश्वास रहा है कि यदि प्रगति के लिए इतिहास तथा परंपराओं के प्रति विरोध किया जाना आवश्यक हो तो इस प्रकार का विद्रोह अवश्य ही किया जाना चाहिए लेकिन उदारवादी सदैव ही विद्यमान व्यवस्था के विरोधी नहीं रहे हैं तथा वर्तमान में तो हुए बहुत सीमा तक यथास्थिति वाद के समर्थक हैं। 

(3) व्यक्ति साध्य तथा राज्य तथा समाज साधन

उदारवादी विचारक व्यक्ति के व्यक्तित्व को बड़ा महत्व देते हैं उनके मतानुसार व्यक्ति की बौद्धिक मानसिक आध्यात्मिक रचनात्मक शक्तियों का विकास सबसे अधिक महत्वपूर्ण है राज्य तथा समाज इस विकास का साधन है और इस लक्ष्य की पूर्ति में उनकी सहायता करते हैं।

(4) बुद्धि वाद या विवेक वाद

उदारवाद बुद्धि को सर्वोच्च महत्व देता है वह किसी विचार और सिद्धांत को तब तक सत्य नहीं मानता है जब तक वह तर्क और बुद्धि की कसौटी पर खरा न उतरे इस प्रकार उदारवाद ने बुद्धि बात को छोटी पर सभी प्रकार के विचारों परंपराओं रीति-रिवाजों और संस्थाओं को कसा इसके परिणाम स्वरूप अनेक मध्यकालीन अंधविश्वासों को तिलांजलि दी जाने लगी इस प्रकार उदारवाद इस बात में विश्वास करता है कि भावना पर विवेक को प्रधानता दी जानी चाहिए उदारवाद ने विवेक बात पर बल देकर स्वतंत्र चिंतन को प्रसारित किया है।

(5) राज्य और समाज को कृतिम संगठन मानना

उदारवादी विचारों का मत है कि समाज और राज्य स्वाभाविक व प्राकृतिक संगठन नहीं है अपितु अपनी विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाए गए हैं। आ सकता हूं के बदल जाने पर व्यक्तियों को इन संगठनों के स्वरूप में परिवर्तन और संशोधन करने का पूरा अधिकार है। 

(6) कानून को प्रधानता देना

 उदारवादियों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि शासन में व्यक्ति की नहीं अपितु कानून की प्रधानता और सर्वोच्च होनी चाहिए। शासक वर्ग को भी इन कानून को मानना चाहिए । जिस प्रकार शासित वर्ग को। शासन की व्यवस्था संविधान के अनुसार की जानी चाहिए। इस प्रकार उदारवादी कानून के शासन और वैधानिक शासन मैं दृढ़ विश्वास रखते हैं तथा शासकीय स्वच्छता रिता का विरोध करते हैं।

(7) आर्थिक मामलों में अहस्तक्षेप की नीति 

प्रारंभिक उदारवाद आर्थिक मामलों में अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन किया। इनका आशा है कि व्यक्तियों के आर्थिक जीवन में और उनके द्वारा संचालित उद्योग धंधों और व्यवहार में राज्य द्वारा विभिन्न कानून बनाकर और पाबंदियों लगाकर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। आर्थिक क्षेत्र में मजदूरी, मांग और पूर्ति आदि के कुछ नियम प्राकृतिक रूप से कार्य करते हैं और इनमें राज्य को कोई दखल नहीं देना चाहिए। 

इसे भी जरूर से जानेउदारवाद के गुण और दोष   

(8) अंतरराष्ट्रीय सद्भाव एवं विश्व शांति विश्वास 

उदारवाद अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में राज्य की निरंकुशता को स्वीकार नहीं करता है और विश्व शांति, अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव, विश्व बंधुत्व के आदेशों का प्रतिपादन करता है। यह धीरे-धीरे शांतिपूर्वक राष्ट्रीय प्रगति का पक्षधर है, लेकिन यह राष्ट्रीय वैमनस्य की भावना का विरोध करता है। यह इस बात पर बल देता है कि राज्यों के द्वारा अंतरराष्ट्रीय नैतिकता तथा सामान्य अंतरराष्ट्रीय नियमों को स्वीकार कर लिया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 

उदारवाद के प्रकार- 

उदारवाद के मुख्यतः दो रूप होते हैं  (1)आरंभिक या नकारात्मक उदारवाद   (2) नवीन या सकारात्मक उदारवाद

उदारवाद का अर्थ क्या है?

उदारवाद हिंदी में अंग्रेजी के लिबरलिज्म (Liberalism) शब्द का अनुवाद है। लिबरलिज्म शब्द लैटिन के स्वतंत्रतावादी ‘Liber' शब्द से बना है और ‘Liber' शब्द का अर्थ है— स्वतंत्र, प्रतिबंध और उन्मुक्त।

उदारवाद का मूल सिद्धांत क्या है?

उदारवाद के मूल सिद्धांत - 1लोकतंत्र में विश्वास,2इतिहास का परंपराओं का विरोध 3बुद्धि वाद या विवेक वाद-4राज्य और समाज को कृतिम संगठन मानना 5कानून को प्रधानता देना

आधुनिक उदारवाद का जनक कौन है?

आधुनिक उदारवाद का जनक जांन लाके को माना जाता है।

उदारवाद के दो प्रकार कौन से हैं?

उदारवाद के मुख्यतः दो रूप होते हैं (1)आरंभिक या नकारात्मक उदारवाद (2) नवीन या सकारात्मक उदारवाद।

उदारवाद की विशेषताएं क्या है?

उदारवाद की विशेषताएं — मानव विवेक में अटूट विश्वास मानव स्वतंत्रता में अटूट विश्वास व्यक्ति साध्य, राज्य व समाज साधन धर्म निरपेक्ष अवधारणा का समर्थक

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