जाति प्रथा (Jati Pratha)
परिचय: हिंदुओं की जाति प्रथा का वर्तमान रूप उत्तर वैदिक काल और महाकाव्य के युग में विकसित हुआ। अतएव यह 2000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। कालांतर मैं यह प्रथा जटिल हो गई और इसमें हिंदू समाज को 3000 से अधिक जातियों और उप जातियों के टुकड़ों में विभक्त कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार स्मिथ के अनुसार"जाति उन परिवारों का एक समूह है जो धार्मिक क्रिया विधि की शुद्धता को विशेषकर खानपान और वैवाहिक संबंध की पवित्रता के विशिष्ट नियमों को पालने में परस्पर संगठित है"। परंतु आज यह परिभाषा अनुपयुक्त है क्योंकि अब खानपान संबंधी कठोर और परिवर्तनशील नियम नहीं रहे हैं। आज तो जाति प्रथा बहुत ढीली और नाम मात्र की है।
जाति प्रथा की उत्पत्ति:
जाति प्रथा की उत्पत्ति के सिद्धांत:
जाति प्रथा की उत्पत्ति के सिद्धांत सामान्य तथा अनुमानिक हैं। इनमें से महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित हैं—
(1) परंपरागत सिद्धांत:
इस सिद्धांत की सबसे प्राचीन व्याख्या ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के एक मंत्र से मिलती है। इसके अतिरिक्त उपनिषदों महाकाव्यों धर्म शास्त्रों तथा स्मृतियों मैं भी इसकी व्याख्या की गई है। इस सिद्धांत के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से क्षत्रिय भुजा वैश्य जंघा अथवा उदर से शूद्र पैरों से उत्पन्न हुए हैं। आज के विद्वान सिद्धार्थ में विश्वास नहीं करते है।
(2) धार्मिक सिद्धांत:
इस सिद्धांत के मूल समर्थकों में से होकार्ट और सेनाट नामक विद्वान मुख्य हैं।
होकार्ट के अनुसार: धार्मिक प्रथाओं एवं सिद्धांतों के कारण ही जाति व्यवस्था की उत्पत्ति हुई।
सेनाट के अनुसार जाति व्यवस्था उद्भव भोजन विवाह और सामाजिक सहवास से संबंधित निषेधो के आधार पर हुआ है। एक ही देवता में विश्वास करने वाले व्यक्ति अपने आप को एक ही पूर्वज की संतान मानते हैं तथा अपने देवता को एक विशेष प्रकार का भोजन भोग के रूप में चढ़ाते थे। इस तरह की भिन्न-भिन्न देवताओं की धारणाओं जाति व्यवस्थाओं को उत्पन्न कर दिया।
(3) राजनैतिक सिद्धांत:
इस सिद्धांत के प्रतिपादक फ्रांसीसी पादरी अबे डुबोय हैं जिस ने 19वीं शताब्दी में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। इस सिद्धांत के अनुसार जाति प्रणाली ब्राह्मणों द्वारा आयोजित एक चतुर राजनैतिक योजना थी। ब्राह्मणों ने अपने आपको सम्मानीय एवं सर्वोच्च बनाने हेतु इस तरह की योजना बनाई। अपने आप को सर्वोच्च बताया तथा अन्य को अपने से भिन्न।
(4) व्यवसायिक सिद्धांत:
इस सिद्धांत के प्रतिपादकों मे से नेसफील्ड डालमैन तथा ब्लॉट आदि के नाम प्रमुख हैं। इन सभी ने व्यवसायिक आधार पर जाति व्यवस्था के उद्भव का उल्लेख किया है। व्यवसाय की ऊंच और नीच की प्रथा का समावेश किया।
(5) उद्विकास सिद्धांत अथवा आर्थिक सिद्धांत:
इस सिद्धांत के मूल प्रवर्तक श्री डेनजिल इबडसन है। इनकी मान्यता है कि जाति प्रथा की उत्पत्ति चार वर्णों के आधार पर ना होकर आर्थिक संघों से हुई अपने-अपने वर्ग के हितों की रक्षा के लिए अलग-अलग समूह का निर्माण किया गया और व्यवसाय वंश परंपरागत चलने लगे।
(6) प्रजातीय सिद्धांत—
सिद्धांत के अनुसार जाति व्यवस्था की उत्पत्ति का कारण प्रजाति आधार माना है।
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