सामंतवाद (feudalism)
मध्यकालीन यूरोपीय इतिहास की एक प्रमुख विशेषता सामंतवादी व्यवस्था है। यूरोप का राजनीतिक सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक जीवन इसी से काफी प्रभावित हुआ है। सामंतवाद को परिभाषा बध करना अत्यंत कठिन है। स्टब्स(Bishop Stubbs) के शब्दों में भूमि के स्वामित्व के माध्यम से सामंतवाद समाज का एक पूर्ण संगठन है जिसमें राजा से लेकर भूमि पतियों तक सारे लोग सेवा और संरक्षण की शर्तों से एक- दूसरे से बधे हैं। मेयर के शब्दों में “सामंतवाद समाज और सरकार का एक विशेष रूप था जो भूधृति पर आधारित था।” थॉमसन और जॉनसन के शब्दों में “सामंतवाद मध्यकालीन सरकार की एक विचित्र पद्धति थी जिसकी मुख्य विशेषता अनेक जमीदारों द्वारा सार्वभौम अधिकारों का उपभोग था जिसका उपयोग पहले राजा करता था दूसरे शब्दों में सरकार के सत्ता के साथ भूमि का स्वामित्व था।”
सामंतवाद के उदय के कारण-
सामंतवाद के उदय के कारण : पश्चिमी यूरोप में रोमन साम्राज्य का पांचवीं शताब्दी में पतन हो गया इसके साथ ही सामंतवाद का उदय हुआ और अगले 500 वर्षों में इसका विकास हुआ इसके उदय और विकास के कारण बहुत से थे-
(1) राजनीतिक कारण (political reasons)
रोमन साम्राज्य में संपूर्ण पश्चिमी यूरोप सम्मिलित था रोमन सम्राट ने इस क्षेत्र के अधिकांश भूभाग को अपने अधिकार में कर के बाहरी बर्बर आक्रमणों से इसकी रक्षा की थी और बहुत आंसुओं में शांति व्यवस्था स्थापित की थी परंतु पांचवी शताब्दी में रोमन साम्राज्य के पतन के बाद यूरोप में सर्वत्र अराजकता अशांति अव्यवस्था फैल गई थी। आंतरिक उपद्रवी और बाहरी आक्रमण के कारण स्वतंत्र किसानों का संकट बढ़ने लगा था बर्बर जातियों के आक्रमण ने उपद्रव और अशांति को बढ़ा दिया था चारों ओर लूट लूट मची हुई थी । किसानों का कोई रक्षक नहीं था और वह बड़े कष्ट में कोई भी अकेला व्यक्ति सुरक्षित ना था रोमन साम्राज्य के कुलीन वर्गीय सरदार अपने-अपने गांवों में चले गए जहां उनके किले होते थे इन लोगों ने किसानों पर और भी तैयार करना शुरू करा कर दिया। वह अपने दुर्गो छापा मारने के लिए निकल पड़ते थे गांव में हुए किसानों को लूटते थे तथा जमीन पर अपना अधिकार करने के लिए अपनी बराबरी के अन्य बड़े -बड़े सामंतों से लड़ते थे।
सामंतवाद के विकास का एक दूसरा राजनीतिक कारण भी था। रोमन साम्राज्य के अंतर्गत स्थानीय शासन का भार स्थानीय सरदारों पर रहता था। जब तक केंद्रीय शासन सुदृढ़ रहा तब तक इन स्थानीय सरदारों को नियंत्रण में रखा जा सकता था लेकिन केंद्रीय सत्ता के कमजोर होने से स्थानीय सरदार धीरे-धीरे स्वतंत्र होने लगे। रोमन साम्राज्य के पतन के बाद हुए पूर्व स्वतंत्र हो गए। जर्मन जातियों के आगमन से भी सामंतवाद के विकास को और अधिक प्रोत्साहन मिला। पांचवी शताब्दी में पश्चिमी यूरोप में रोमन साम्राज्य का अंत होने पर जर्मन जातियों की शाखाएं जर्मनी से निकालकर प्रायः संपूर्ण यूरोप पर छा गई। यह लोग अपने अपने कबीलों में बैठे रहते थे इन कबीलों के नेता होते थे। जब जर्मनों परदेसी जीतने गए तो कबीलों के पास काफी जमीन हो गई। यह जमीन को भी अपने अनुयायियों ने इस शर्त पर बांटने लगे कि वह सैनिक और राजनीतिक सेवा प्रदान करेंगे तथा कमीनों का नेता इस प्रकार एक बड़ा सामंत हो गया।
(2) आर्थिक कारण (commercial purpose)
रोमन साम्राज्य के उत्कर्ष के दिनों में दास प्रथा बड़े पैमाने पर प्रचलित थी। दासू का शोषण बड़ी निर्मलता से होता था। इस कारण राज्य की पैदावार घटने लगी। अब समस्या थी की उपज बढ़ाने की। इसके 3 उपाय हो सकते थे। प्रथम- कोई नया अविष्कार करके अनाज की पैदावार में वृद्धि की जाए। द्वितीय - अनाज पैदा करने वालों की संख्या बढ़ाई जाए। इन दोनों उपायों को प्राप्त करना आसान नहीं था रोमन साम्राज्य के उत्कर्ष के दिनों में कोई वैज्ञानिक आविष्कार नहीं हुआ था और जब साम्राज्य पतनोन्मुख होने लगा तो दासों की संख्या भी नहीं बढ़ाई जा सकती थी। तथा जब एक तीसरा उपाय ही शेष रह गया था की लाशों को अधिक सुविधा देकर उन्हें प्रशांत दिया जाए ताकि वह मन लगाकर काम करें और पैदावार बढ़ा सके इसलिए दासता से मुक्ति दी जाने वाली और दास प्रथा का उन्मूलन शुरू हुआ। उन्हें थोड़ी जमीन मिली जहां में अपना घर में आकर परिवार के साथ रह सकते थे अब वह दास नहीं रहे गए उनकी स्थिति बदल गई और वह कृषिदास या कम्मी कहलाने लगे। कम्मी और दातों में कोई अंतर नहीं था। वह भी धातु की तरह परतंत्र थे लेकिन उन्हें थोड़ी सुविधा अवश्य मिली। इन कृषि दर्शन को अपने-अपने सामंतों की सेवा भिन्न-भिन्न तरह से करनी पड़ती थी इस कारण भी सामंतवाद के अनेक प्रवृत्तियों का विकास हुआ।
फ्रांस में ‘कैंटिक वैसस ’(Celtic vessus) और जर्मनी की कौमिटेटस( Comitatus) रोमन पेट्रोलियम की तरह ही थे। जर्मन कॉमिटेटस (Comitatu) अपने स्वामियों के प्रति योद्धाओं की निर्भरता थी निर्भर लोग संरक्षण के लिए सब लो या प्रक्रियाओं की छत्रछाया में आ जाते थे।
इस प्रकार सामंतवाद की रचना किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं हुई। बल्कि इसका उदय और विकास स्वाभाविक ढंग से हुआ इसका निर्माण जानबूझकर नहीं किया गया था। यह एक प्रकार का पारस्परिक समझौता था जो गुण की परिस्थितियों के अनुकूल था। इसका स्वरूप भी विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न था। इसकी उत्पत्ति तो इटली और जर्मनी से हुई थी लेकिन इसका पूर्ण विकास फ्रांस में हुआ।
यहां पर स्मरण रखना चाहिए कि सामंतवाद प्राचीन रोमन और जर्मन प्रथावो से प्रभावित था। यह मध्ययुगीन इसाई का एक अंग हो गया।
सामंतवाद के पतन के कारण
सामन्तवाद का पतन ; सामंतवाद का उदय अशांति और अराजकता परिस्थितियों में हुआ था बर्बर जातियों ने आक्रमण से बचने के लिए लोगों ने सामंतों का स्वागत किया कालांतर में जब सामंतों की स्वार्थ शोषण नीति बढ़ गई तो लोग उनसे घृणा करने लगे सामंतवाद के पतन अवश्य संभव हो गया—
(1) पारस्परिक संघर्ष-
सामंत जमीन हड़पने के मामले में एक दूसरे से लड़ पढ़ते थे। जूजू उनकी लिप्सा बढ़ती गई उनका संघर्ष बढ़ता गया इससे सामंतों की शक्ति विच्छिन होती गई।
(2) युद्धों की नई तकनीक-
मध्यकाल में गोला बारूद का आविष्कार हो गया यूरोप के राजाओं ने इस पर अपना अधिकार कर लिया उन्हें उन्होंने इसका प्रयोग सामंतों के दमन में किया।
(3) किसानों के विद्रोह-
सामंतों के शोषण और अत्याचार के विरुद्ध किसानों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया जिससे सामंतों की शक्ति कमजोर पड़ती गई।
(4) व्यापार की उन्नति-
इस समय आप यार वर्साय में उन्नति हो रही थी नए-नए नगर जैसे जेनेवा फ्लोरेंस मिलान बोलो ना दिवस गए नगरों में विचारों का आदान-प्रदान होने लगा तथा सामंतों की बराबरी में व्यापारियों ने अपनी शक्ति बढ़ा ली।
(5) राष्ट्रीयता का विकास-
इन्हीं दिनों यूरोप में राष्ट्रीय भावना का विकास होने लगा सामंतवाद का सर्वत्र विरोध किया जाने लगा लोगों ने व्यापार और नगरों के माध्यम से जीवन यापन करना शुरू किया तथा सामंतों पर निर्भर रहना छोड़ दिया।
(6) राजा की शक्ति में वृद्धि-
राष्ट्रीयता का विकास होने से राजा की शक्तियां बढ़ गई व्यापारियों ने सामंत से छुटकारा पाने के लिए राजाओं का साथ दिया व्यापारी शासन कार्य में हाथ बढ़ाने लगे इस प्रकार व्यापारियों और आ जाओ ने गठबंधन करके सामंतों की शक्ति भी छीन कर दी।
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