राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज । महत्व, योग्यता-Brahmo Samaj

     राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज 

राजा राममोहन राय (1772-1833) को प्रायः भारतीय पुनर्जागरण का जनक और आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे उनके द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज जो आधुनिक पाश्चात्य विचारों पर आधारित था हिंदू धर्म का पहला सुधार आंदोलन था।

 ★  एक सुधारवादी के रूप में राजा राममोहन राय मानवीय प्रतिष्ठा के आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं सामाजिक समानता के सिद्धांत में विश्वास रखते थे वह एकेश्वरवाद में विश्वास रखते थे उन्होंने 1809 में एक ईश्वर वादियों को उपहार नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी अपने मत के समर्थन में उन्होंने वेदों एवं उपनिषदों के बांगरा अनुवाद किए तथा स्पष्ट किया कि प्राचीन हिंदू धर्मशास्त्र भी एकेश्वरवाद का समर्थन करते हैं।

राजा राममोहन राय और ब्रह्म समाज । महत्व, योग्यता-Brahmo Samaj

  1814 में उन्होंने कोलकाता में आत्मीय सभा मित्रों का समाज की स्थापना की तथा मूर्ति पूजा जाति प्रथा की कठोरता अर्थहीन रीति-रिवाजों और अन्य सामाजिक बुराइयों को भर्त्सना की। एकेश्वरवाद के कट्टर समर्थन करते राजा राममोहन राय ने स्पष्ट किया कि वे सभी धर्मों की मौलिक समानता में विश्वास रखते हैं उन्होंने दूसरे धर्मों की उन बातों को ग्रहण किया जिन्हें हुए हिंदू समाज के योग्य समझते थे।


आधुनिक भारत में हिंदू धर्म समाज या राजनीति में से चाहे कोई भी क्षेत्र हो उसमें सुधार लाने का सूत्रपात राजा राममोहन राय और उनके ब्रह्म समाज ने ही किया।

                                     ‌  — एच.सी.ई. जकारिया 

मुझे कहते हुए दुख होता है कि वर्तमान समय में हिंदुओं की जो धार्मिक व्यवस्था है वह ऐसी नहीं है कि हिंदुओं के राजनीतिक हितों का पक्ष पोषण कर सकें मैं समझता हूं कि इन परिस्थितियों में हिंदू धर्म में कुछ परिवर्तन अपेक्षित हैं जिससे हिंदुओं को कुछ राजनीतिक लाभ एवं समाजिक बल मिल सके।

                           ‌‌ ‌                — राजा राममोहन राय 


ब्रह्म समाज के द्वारा दिया गया समाज को योगदान- 

★बहुदेववाद तथा मूर्ति पूजा का विरोध।

★बहु पत्नी पर था तथा सती प्रथा का विरोध।

★विधवा विवाह का समर्थन एवं बाल विवाह का विरोध।

★नैतिकता पर बल, कर्मफल में विश्वास ,सर्वधर्म समभाव ,निर्गुण ब्रह्म की उपासना।

★धार्मिक पुस्तकों, पुरुषों एवं वस्तुओं की सर्वोच्चता में अविश्वास।

★छुआछूत, अंधविश्वास ,जातिगत भेदभाव का विरोध।

★बांग्ला एवं अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार का समर्थन।


समाज सुधार हेतु राजा राममोहन राय के प्रयास:

राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का कड़ा विरोध किया वर्षा 1818 में उन्होंने अपना सती विरोधी अभियान आरंभ किया सर्वप्रथम उन्होंने इस सामाजिक कुरीति के विरुद्ध जनमत तैयार करने का प्रयास प्रारंभ किया एक और उन्होंने पुरातन हिंदू शास्त्रों का प्रमाण देकर धार्मिक ठेकेदारों को दिखलाया कि वे सती प्रथा की अनुमति नहीं दे देते तो दूसरी ओर उन्होंने लोगों को तर्कशक्ति नैतिकता मान विजेता तथा दया भाव की दुहाई देकर इस कुप्रथा के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया उन्होंने संस्थानों की यात्रा की तथा विधवाओं के रिश्तेदारों को समझा कर उन्हें सती  होने से रोकने के अथक प्रयास किए उन्होंने समान विचारों वाले व्यक्तियों की सहायता से कई ऐसे समूहों का निर्माण किया जो उन लोगों पर कड़ी निगाह रखते थे जो पुरातन अंधविश्वास या गहनों के लालच में विधवाओं को सती होने के लिए उकसा थे। राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से इस दिशा में काफी प्रगति हुई। उन्होंने सरकार से अपील की कि इस बर्बर प्रथा को रोकने के लिए वह कड़े कानून बनाए इसी के पश्चात 1829 में लॉर्ड विलियम बैटिंग ने एक कानून बनाकर सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। 


मानव सभ्यता का आदर्श अलग-अलग रहने में नहीं बल्कि चिंतन अस्था क्रिया के सभी क्षेत्रों में व्यक्तियों और राष्ट्रों के आपसी भाईचारे में ही है।

                                           - राजा राममोहन राय 


देवेंद्र नाथ टैगोर और ब्रह्म समाज-: 

राजा राममोहन राय की मृत्यु के पश्चात इसकी बागडोर रविंद्र नाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर( 1817- 1905) ने संभाली। वे 1842 में ब्राह्मण समाज में सम्मिलित हुए देवेंद्र नाथ टैगोर के व्यक्तित्व में तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों पाश्चात्य विचारों का सुंदर समन्वय उठाएं उन्होंने ब्रह्म समाज को नई चेतना एवं नया स्वरूप प्रदान किया देवेंद्र नाथ टैगोर पहले ज्ञानवर्धिनी तत्वबोधिनी सभा से संबंधित थे जिनका उद्देश्य भारत की प्राचीन सभ्यता एवं राजा राममोहन राय के विचारों का प्रसार करना था। तत्वबोधिनी सभा, जिसका गठन 1839 में किया गया था बांग्ला भाषा में एक पत्रिका तत्वबोधिनी पत्रिका का प्रकाशन करती थी इन्हें दोनों सभाओं के ब्रह्म समाज के जुड़ने से समाज में एक नई ऊर्जा व शक्ति का संचार हुआ धीरे-धीरे ब्रह्म समाज की सदस्य संख्या बढ़ने लगी तथा ईश्वर चंद्र विद्यासागर अश्विनी कुमार दत्त जैसे महान विचारक इस समाज से जुड़े हुए देवेंद्र नाथ टैगोर ने हिंदू धर्म को सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया तथा ब्रह्म समाज को ईसाई और विद्यांत्रिक्ष कर्मकांड उसे बचाने का प्रयास किया 1843 में अलग जेंडर और सीरियन चर्च से टैगोर का वाद विवाद आरंभ हो गया इसके पश्चात ईसाई पादरियों ने हिंदू धर्म को नीचा दिखाने तथा धर्म परिवर्तन के पश्चात प्रयास प्रारंभ किया देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्मा विभाग का समर्थन स्त्री शिक्षा को बढ़ावा बहु पत्नी प्रथा का उन्मूलन तथा आडंबर पूर्ण धार्मिक कर्मकांड को समाप्त करने जैसे सराहनीय कार्यों पर बल दिया।  

देवेंद्र नाथ टैगोर ही नहीं बल्कि इसमें किशोर चंद्र सेन ने भी ब्रह्म समाज को बढ़ावा देने के लिए बहुत बढ़िया भरसक प्रयास किए : 

केशव चंद्र सेन एवं ब्रह्म समाज-

 1858 मैं केशव चंद्र सेन द्वारा ब्रह्म समाज के सदस्य ग्रहण करने के पश्चात देवेंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें समाज का नया आचार्य नियुक्त किया केशव चंद्र सेन की शक्ति वाकपटुता और उदारवादी विचारों ने ब्रह्म समाज को अत्यंत लोकप्रिय बना दिया।

ईश्वर की सच्ची उपासना वही है जिससे न केवल उस व्यक्ति विशेष का अपितु समस्त मानव जाति का कल्याण हो सके। 

                                          - केशव चंद्र सेन

 सेन के परिज से शीघ्र ही इसकी शाखाएं बंगाल से बाहर संयुक्त प्रांत मुंबई मद्रास एवं पंजाब में भी खुल गई लेकिन शीघ्र ही केशव चंद्र सेन के उदारवादी विचारों के कारण उनमें तथा देवेंद्र नाथ टैगोर में मतभेद हो गए केशव चंद्र सेन समाज के अंतरराष्ट्रीय करण समाज में सभी धर्मों की शिक्षा तथा अंतरराष्ट्रीय विभाग को मतभेद और गहरा हो गए 1865 में चंद्रसेन को आचार्य की बर्खास्त कर दिया गया ‘भारतीय ब्रह्म समाज’( ‘विधान ब्रह्म सभाज’ ) का गठन किया इसके पश्चात देवेंद्रनाथ टैगोर के ब्रह्म समाज को‘ आदि ब्रह्म समाज’ के नाम से जाना जाने लगा। 

ब्रह्म समाज का महत्व- 

समाज सुधार के दृष्टिकोण से ब्रह्म समाज में अनेक सिद्धांतों एवं  अंधविश्वासों पर प्रहार किया। समाज ने हिंदुओं द्वारा विदेश यात्रा को धर्म विरुद्ध घोषित किए जाने की कड़ी आलोचना की इसने समाज में स्त्रियों के उत्थान हेतु कार्य किया सती प्रथा का विरोध किया पर्दा प्रथा को समाप्त करने की मांग की बाल विवाह में बहुमत ने विभाग को हतोत्साहित किया विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया तथा स्त्रियों को शिक्षा दिलाने जैसे कोई महत्वपूर्ण कार्य समाज में जाति प्रथा तथा छुआछूत जैसी बुराइयों का भी विरोध किया इस प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में ब्रह्म समाज द्वारा किए गए कार्य अविस्मरणीय रहेंगे।


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