अशोक का धम्म(Ashoka Dhamma)
अशोक का 'धम्म, से तात्पर्य — धम्म शब्द संस्कृत के धर्म शब्द का ही रूप है किंतु अशोक के लिए शब्द का विशेष महत्व है अपनी प्रजा की नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारों की संहिता प्रस्तुत की उसे ही उसके अभिलेखों में धम्म कहा गया है।
अशोक का धम्म किसी एक धार्मिक विश्वास के अंतर्गत नहीं था उसके उद्देश्य व्यापक और नैतिक नियमों के रूप में थे जहां तक उसके व्यक्तिगत धर्म का संबंध है अशोक बौद्ध था । किंतु उसके कभी व्यक्तिगत धार्मिक विचारों को जनता पर लादने का प्रयास नहीं किया । उसके अभिलेखों में कहीं भी हमें बौद्ध धर्म के , चार आर्य सत्य, (अष्टांगिक मार्ग) या निरवाण का उल्लेख नहीं मिलता उसका उद्देश्य तो व्यक्ति का सम्यक नैतिक विकास करना है था इसके लिए उसने लोगों के सम्मुख कुछ ऐसे नैतिक नियमों को रखा जो व्यक्ति के आंतरिक गुणों का प्रकाशन करते हुए उसे सच्चे सुख और शांति की ओर अग्रसर करें यह नैतिक नियम इस प्रकार थे—
(1) दया (4)दान
(2) सत्य (5) शौच
(3) साधुता (6) मार्दव माधुर्य
अशोक अपनी प्रजा के लौकिक जीवन को यह नहीं अपितु पारलौकिक जीवन को भी सुधारना चाहता था अथॉरिटी देश क पूर्ति के लिए अपने धम्म की स्थापना की ।
धम्म के प्रमुख सिद्धांत
अशोक के धम्म के सिद्धांत निम्नलिखित हैं—
(1) प्रजा द्वारा पालन करने के लिए अशोक द्वारा बताए गए दस नियम —
इन सिद्धांतों को करने के लिए उसके प्रजा को निम्नलिखित नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित किया गया—
(1) अहिंसा
(2) माता पिता एवं गुरुजनों के प्रति आदर
(3) सत्य संयम कृतज्ञता आदि गुणों को व्यवहार में उतारना
(4) पशुवध का त्याग
(5) धार्मिक सहिष्णुता को अपनाना
(6) थोड़ा व्यय थोड़ा संग्रह करना
(7) अपनी भावनाओं को पवित्र रखने के लिए अपने मन को हमेशा शुद्ध रखना
(8) अपने से छोटे तथा श्रमिकों के प्रति दया का व्यवहार करना
(9) काम क्रोध लोड मोर ईर्ष्या आदि दुर्गुणों से दूर रहना
(10) ब्राह्मणों श्रवण मित्र भाई बंधुओं सेवक और श्रमिकों के साथ समुचित व्यवहार करना
(2) धर्म दान पर बल
अशोक धर्म जान को सभी दोनों से श्रेष्ठ मानता था अशोक ने आदेश दिया था कि मनुष्य को विद्वानों रिसीव एवं निर्धन व्यक्तियों को दान देना चाहिए।
(3) अहिंसा
अशोक ने हिंसा के बारे में पर अत्यधिक बल दिया उसने प्राणी मात्र के प्रति दया प्रेम और सहानुभूति का बर्ताव करने पर बल दिया उसने हिंसात्मक यज्ञ पर प्रतिबंध लगा दिया।
(4) धर्म का निषेधात्मक रूप
धमके निषेधात्मक रूप के अंतर्गत अशोक ने कुछ दुर्गुणों से बचने का उपदेश दिया है तृतीय स्तंभ लेख के अनुसार यह दुर्गुण मुख्य तो निम्न है—
(1) क्रोध, (2) चण्डता, (3) अभिमान, (4) निष्ठुरता, (5)ईष्या
अशोक के अनुसार यह दुर्गा पाप के कारण है और उसे अपने मन में सोचना चाहिए कि इन सब के कारण उसकी निंदा ना हो।
(5) धर्म सहिष्णुता—
अशोक ने धार्मिक सही सुरता के सिद्धांत पर बल दिया उसने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य को सभी धर्मों का आदर करना चाहिए तथा दूसरों के धर्मों की निंदा नहीं करना चाहिए।
(6) धर्म मंगल—
अशोक नहीं झूठे रीति-रिवाजों कर्मकांड का खंडन किया तथा धर्म मंगल का अनुसरण किया धर मंगल के अंतर्गत अशोक ने सत्य बोलना बड़ों का सम्मान करना दान देना किसी भी जीव को कष्ट न देना आदि पर बल दिया।
(7) सभी धर्मों का आदर
अशोक ने धार्मिक सहिष्णुता पर बल दिया और सभी धर्मों का आदर करना का उपदेश दिया।
(8) आत्म निरीक्षण पर बल देना
अशोक ने अपने धर्म के अंतर्गत इस बात पर बल दिया कि प्रत्येक मनुष्य को समझने पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए तथा अच्छे बरे कर्मों का मूल्यांकन करना चाचाहि।
(9) धर्म एक सामाजिक उत्तरदायित्व
अशोक के धम्म में समाजिक उत्तरदायित्व की भावनाएं पाई जाती हैं डॉक्टर रोमिला थापर का कथन है कि धर्म का उद्देश्य एक ऐसी मानसिक वृत्त का विकास करना था
जिसमें सामाजिक उत्तरदायित्व को एक व्यक्ति के दूसरे के प्रति व्यवहार को अत्यधिक महत्वपूर्ण समझा जाए।
(10) धर्म विजय
अशोक ने धर्म विजय का पालन करने पर बल दिया धर्म विजय दया परोपकार त्याग आदि से प्राप्त होती है अशोक ने धर्म विजय के लिए अधिक से अधिक भलाई करने पर बल दिया।
अशोक के धर्म के प्रति सिद्धांतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अशोक का धर्म सभी धर्मों का सार है उपयुक्त सभी सिद्धांत पर आयो सभी धर्मों में पाए जाते है।
अशोक के धम्म की विशेषताएं
अशोक के धम्म की विशेषताएं निम्नलिखित हैं—
(1) अहिंसा
अशोक ने अहिंसा के सिद्धांत के पालन पर अत्यधिक बल दिया उसने पशु पक्षियों की मौत पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंसात्मक यज्ञ बंद करवा दिया।
(2) नैतिकता पर बल
अशोक का धर् पूर्णतया शुद्ध नैतिक धर्म था
इसमें व्यक्ति के आचरण पर विशेष जोर दिया जाता था इसका एकमात्र संबंध मनुष्य के आचरण से था।
(3) सभी धर्मों का सार
उसके धर्म में केवल सभी धर्मों के सर पर जोर दिया गया था उसे बाहरी आडंबर होते क्रियाकलापों तथा दार्शनिक सिद्धांतों के जाल से दूर रखने का प्रयास किया गया था।
(4) धार्मिक सहिष्णुता
यह धर्म पूर्णतया उधार था अन्य सभी धर्मों के अनुयाई अपने अपने धर्मों का पालन करते हुए भी इस धर्म को स्वीकार कर सकते थे।
(5) धार्मिक पाखंड और आडंबरो का अभाव
अशोक के धम में कर्मकांड ओं धार्मिक पाखंड तथा आडंबर ओं का अभाव था उसने जन्म मृत्यु हुई भावादी के अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठान किए जाने की निंदा की तथा धर्म मंगल अर्थात सच्चे रीति-रिवाजों पर बल दिया।
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धम्म का मतलब क्या होता है?
अशोक का 'धम्म, से तात्पर्य — धम्म शब्द संस्कृत के धर्म शब्द का ही रूप है किंतु अशोक के लिए शब्द का विशेष महत्व है अपनी प्रजा की नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारों की संहिता प्रस्तुत की उसे ही उसके अभिलेखों में धम्म कहा गया है।
अशोक धम्म का महत्व क्या है?
अशोक के धम्म का महत्व या उद्देश्य यह था की इसमें सारे धर्मों का एक मिला हो। और लोग अंधविश्वास से दूर रहें और साथ में ही एक नई धर्म की ओर बड़े।
अशोक की धम्म की विशेषता क्या थी?
अशोक के धर्म की विशेषताएं निम्न थी- अहिंसा नैतिकता पर बल सभी धर्मों का सार धार्मिक सहिष्णुता
अशोक ने धम्म का प्रचार कैसे किया?
अशोक ने अपने धर्म के प्रचार के लिए जनसभा , महासभा, शिलालेख तथा ग्रंथ लिखे।
धम्म का मतलब क्या होता है?
धम्म का मतलब सदाचरण है, अशोक के धम्म ही अशोक का धर्म था।
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