वैदिक साहित्य-प्राचीन इतिहास (Vedic literature)

 वैदिक साहित्य 

ज्ञग्वैदिक आर्यों की सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करने का प्रमुख आधार वैदिक साहित्य को स्वीकार किया जाता है वैदिक साहित्य में केवल वेदों की गणना ही नहीं की जाती है अपितु आर्यों के समस्त धर्म ग्रंथों को सम्मिलित किया जाता है वैदिक साहित्य के प्रधान ग्रंथ वेद वेदों से संबंधित तीन प्रकार का साहित्य वेदांग,उपवेद ,सूत्र, स्मृति, दर्शन ,महाकाव्य और पुराण आदि का परिचय है- 

(1)वेद- 

वेद शब्द की रचना धातु से की गई है जिसका अर्थ ज्ञान है वेदों को ईश्वर प्रदत्त माना जाता है जिसका अभिप्राय यह है कि इनकी रचना किसी मनुष्य द्वारा किसी कार्य विशेष में नहीं की गई थी आर्यों का उस काल में विश्वास था कि वेद मंत्रों को विभिन्न अवसरों पर ऋषि मुनियों द्वारा ब्रह्मा के मुख से सुना गया था इसी के आधार पर वेदों को श्रुति भी कहा जाता है वेदों को संहिता भी कहा जाता है संहिता का शाब्दिक अर्थ संग्रह होता है वेदों में अनेक मंत्रों का संग्रह किया जाता गया है इसी कारण से इन्हें संहिता भी कहा जाता है प्रत्येक संहिता के साथ तीन प्रकार की साहित्यिक रचनाएं भी संयुक्त की जांच की गई है जो ब्रह्मांड नायक और उपनिषद कहलाती हैं। प्रोफेसर मैक्स मूलर ने संहिताओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए एक लिखा है- विश्व के इतिहास में वेद उसे रिक्त स्थान की पूर्ति करते हैं इसी संसार की किसी भी भाषा की रचनाएं पूर्ण करने में असमर्थ हैं यह हमें उस पुरातन काल में ले जाते हैं जिनसे विषय में अन्य कहीं पर भी कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है और उस पीढ़ी के व्यक्तियों के शब्दों को हमें प्रदान करते हैं जिनके संबंध में उनके बिना हम केवल धूमिल धारणा बना सकते थे। 

(2)वेदों की संख्या-  वेदों की संख्या 4 है- 

1- ऋग्वेद संहिता

 ऋग्वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ स्वीकार किया जाता है यह दो शब्द ऋक+वेद से मिलकर बना है।  ऋक का अर्थ है मंत्र अथवा रिचा। इसलिए ऋग्वेद देवताओं की स्तुति में गाए गए मंत्रों का संग्रह है। इसमें 1017 सुख तो की संहिता के साथ 11 बालखिल्य सूत्र भी सम्मिलित किए गए हैं। इस प्रकार 1028 सूत्रों को 10 मंडलों और 8 अष्टको में विभक्त किया गया है। शुक्तो की रचना विभिन्न युगों में भिन्न-भिन्न ऋषियों द्वारा की गई थी। इसके उपरांत उन शब्दों को एक के साथ संकलित कर दिया गया ऋग्वेद के मंत्र स्तुति मंत्र होने से ऋग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अधिक है द्वितीय मंडल से सप्तम मंडल तक की दृष्टि से सर्वाधिक प्राचीन स्वीकार की जाती हैं इन्हें गीत समद वामदेव अत्रि विश्वामित्र वशिष्ठ और भारद्वाज अतिथियों द्वारा रचा गया था इसके प्रथम और अंतिम मंडल सबसे बाद में जोड़े गए थे। 

2- यजुर्वेद संहिता

 यजु का अर्थ यज्ञ होता है अतः इसे यज्ञ विधियों का संग्रह कहा जाता है इसमें गद्य और पद्य दोनों का ही प्रयोग किया जाता है यजुर्वेद में स्वतंत्र अध्यात्मिक मंत्र बहुत कम है अधिकांश अध्यात्मिक मंत्री या तो ऋग्वेद से लिए गए हैं या अथर्ववेद से इसके दो भाग हैं प्रथम भाग कृष्ण यजुर्वेद संहिता शुक्ल यजुर्वेद संहिता। 

3- सामवेद संहिता

सॉन्ग विधि से तात्पर्य है वह ग्रंथ जिसकी मंत्र गाए जा सकते हैं इसमें 1549  ऋचाओं को संग्रहित किया गया है जिन्हें सोम यज्ञ के अवसर पर गाया जाता है इसकी 75 दिशाओं के अतिरिक्त अन्य सभी ऋचाएं ऋग्वेद से ली गई हैं इसमें रिचा उनको सु मधुर स्वर में गाये जाने योग्य बना दिया गया है।  

4- अथर्ववेद संहिता

अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इसका रचनाकाल चारों संहिता में सबसे बाद में है। इसमें 731 ऋचाएं है जिन्हें 20 मंडलों में विभक्त किया गया है प्रथम 17 मंडल बहुत पहले से रचे गए हैं परंतु अंतिम तीन मंडल बाद में जोड़े गए थे इनकी रिचा ए गद्य और पद्य दोनों में है। इसकी अनेक रचनाएं ऋग्वेद और सामूहिक से ली गई हैं जिनमें आयुर्वेद वह धनुर्वेद का ज्ञान है। इसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के रोगों से बचने की विधियां तथा बीमारियों के कीटाणुओं को नष्ट करने के उपाय भी दिए गए हैं। इसमें वशीकरण और जादू टोना तथा भूत-प्रेतों पर विजय प्राप्त करने के लिए मंत्र भी दिए गए हैं। अनेक विद्वान इसे जादू और दोनों का संग्रह मानकर से वैदिक साहित्य का अंग मानने के विरुद्ध हैं। परंतु उनकी यह धारणा सत्य से परे है वास्तविकता तो यह है कि इसमें उत्तर वैदिक काल के आर्यों के सामाजिक पारिवारिक तथा राजनीतिक जीवन पर यथेष्ट मात्रा में प्रकाश डाला गया है धर्म के विषय में चतुर्थ संहिता से ज्ञात होता है कि इस काल में आर्यों की प्राकृतिक शक्तियों की उपासना करने की रुचि स्नेह स्नेह कम होती जा रही थी तथा उनकी तंत्र मंत्र जादू टोना में आस्था अधिक होने लगी थी। 

(3)वेदांग

वेदों का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा वेदों का ठीक-ठीक अर्थ समझने के लिए रचे गए विषयों को वेदांग कहते हैं और विधायकों की संख्या 6 है- 

1- कल्प- 

वेदों के संग में यज्ञ के विधि विधान का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। 

2- शिक्षा- 

इसमें वेद मंत्रों के शुद्ध उच्चारण की विधि दी गई है। 


3- छंद-

 इसमें विविध प्रकार के पदों को विशेषताएं एवं उनके लक्षणों पर प्रकाश डाला गया है। 


4- ज्योतिष- 

इसमें ब्रह्मांड तथा सूर्य मंडल के महत्वपूर्ण तथ्यों को समझ में आने योग्य बनाया गया है। 


5- व्याकरण

6- निरुक्त- 

वेदों के इन 2 अंगों के अंतर्गत वैदिक शब्द एवं उनके हाथों का प्रतिपादन किया गया है। 

सभी छह वेदांग उसे चारों वेदों का भली-भांति ज्ञान प्राप्त करने तथा वेद मंत्रों के शुद्ध उच्चारण और अर्थों को समझने में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है इसी कारण से प्रभावित अनेक विद्वानों ने व्याकरण को वेदों का मुख्य ज्योतिष को नैतिक शिक्षा को नासिका निरुक्त को कान कल्प को हाथ तथा छंद को पैर कहा है।

FAQ 

वैदिक साहित्य क्या है या उसका अर्थ क्या है?

ज्ञग्वैदिक आर यू की सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करने का प्रमुख आधार वैदिक साहित्य को स्वीकार किया जाता है वैदिक साहित्य में केवल वेदों की गणना ही नहीं की जाती है अपितु आर्यों के समस्त धर्म ग्रंथों को सम्मिलित किया जाता है वैदिक साहित्य के प्रधान ग्रंथ वेद वेदों से संबंधित तीन प्रकार का साहित्य वेदांग,उपवेद ,सूत्र, स्मृति, दर्शन ,महाकाव्य और पुराण आदि का परिचय है-

सबसे बड़ा वेद कौन सा है?

वेद सारे समान होते हैं लेकिन ऋग्वेद को सबसे पुराना वेद माना गया है।

कितने वेद है?

वेद चार प्रकार के होते हैं ऋग्वेद ,यजुर्वेद, सामवेद ,अथर्ववेद।

वैदिक काल को कितने भागों में बांटा गया है?

वैदिक काल के दो भाग में बांटा गया है, ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल।

वेदांग क्या है?

वेदांग वेदों का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा वेदों का ठीक-ठीक अर्थ समझने के लिए रचे गए विषयों को वेदांग कहते हैं।

वेदांग कितने प्रकार के होते हैं?

विधान 6 प्रकार के होते हैं- कल्प, शिक्षा, छंद, ज्योतिष ,व्याकरण और निरुक्त।

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