भारत सरकार अधिनियम (1935) - विशेषताएं तथा धाराएं। Government of India Act 1935

    भारत सरकार अधिनियम 1935
Government of India Act 1935 in 

सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा अन्य परिस्थितियां:

भारत सरकार अधिनियम 1935;   यद्यपि सरकार 1932-33 के राष्ट्रीय आंदोलन को दमन का सहारा लेकर दबाने में सफल हो गई, तथापि उसे यह एहसास हो गया कि दमन की नीति द्वारा राष्ट्रवादी भावनाओं को ज्यादा दिनों तक दबाया नहीं जा सकता। इसीलिए वह आगामी समय में किसी आंदोलन के जन्म लेने की संभावना को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को स्थाई रूप से दुर्बल करने पर विचार करने लगी। उसने कांग्रेस को विभक्त करने की योजना बनाई।

   इसी परिप्रेक्ष्य में उसने भारत सरकार अधिनियम 1935 अधिनियम प्रस्तुत किया, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि संवैधानिक सुधारों के इस अधिनियम से कांग्रेस के एक खेमे को संतुष्ट एवं औपनिवेशिक प्रशासन में समाहित कर लिया जाएगा, तथा राष्ट्रवादी आंदोलन की बची हुई शक्ति को दमन से समाप्त कर दिया जाएगा।अपनी इन्हीं नीतियों को वास्तविकता का जामा पहनाने के लिए प्रति संसद ने अगस्त 1935 में 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935' पारित किया। ‌‌ ‌  ‌‌ 
भारत सरकार अधिनियम 1935 । Government of India Act 1935 in hindi

 भारत सरकार अधिनियम 1935 की विशेषता 

भारत सरकार अधिनियम 1935 की विशेषता ; भारत सरकार अधिनियम ,1935 में पारित किया। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नानुसार थे— 

(‌1) एक अखिल भारतीय संघ

इस भारत शासन अधिनियम 1935 के अनुसार, प्रस्तावित संघ में सभी ब्रिटिश भारतीय प्रांतों, मुख्य आयुक्त के प्रांतों तथा सभी भारतीय प्रांतों का सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंतु देसी रियासतों का सम्मिलित होना वैकल्पिक था। इसके लिए दो शर्ते थी—(१)प्रस्तावित राज्य परिषद में 52 सीटें आवंटित किए गए राज्यों को संघ में शामिल होने पर सहमत होना चाहिए, (२) रियासतों की कुल जनसंख्या में से हाथी जनसंख्या वाली रियासतें संघ में सम्मिलित ना हो। चूंकि,यह शर्तें पूरी नहीं हो सकी, इसीलिए यहां समझो तभी अस्तित्व में नहीं आया तथा 1946 तक केंद्र सरकार ,भारत सरकार अधिनियम, 1919 के प्रावधानों के अनुसार ही चलती रही। 

(‌2) संघीय व्यवस्था: कार्यपालिका 

गवर्नर जनरल केंद्र में समस्त संविधान का केंद्र बिंदु था।
★प्रशासन के विषयों को दो भागों में विभक्त किया गया- सुरक्षित एवं हस्तांतरित। सुरक्षित विषयों में—मामले, रक्षा, जनजातीय क्षेत्र तथा धार्मिक मामले थे, जिनका प्रशासन गवर्नर जनरल को कार्यकारी पार्षदों की सलाह पर करना था। कार्यकारी पार्षद, केंद्रीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। इन विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल को उन मंत्रियों की सलाह से करना था, जिनका निर्वाचन व्यवस्थापिका द्वारा किया गया था। यह मंत्री केंद्रीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी थे, तथा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर उनके लिए त्याग पत्र देना अनिवार्य था।  ‌
★देश की वित्तीय स्थिरता, भारतीय साख की रक्षा, भारत या उसके किसी भाग में शांति की रक्षा, अल्पसंख्यकों, सरकारी सेवकों तथा उनके आश्रितों की रक्षा, अंग्रेजी तथा बर्मी माल के विरुद्ध किसी भेदभाव से उसकी रक्षा, भारतीय राजाओं के हितों तथा सम्मान की रक्षा तथा अपनी निजी विवेकाधीन शक्तियों की रक्षा इत्यादि के संबंध में गवर्नर जनरल को व्यक्तिगत निर्णय लेने का अधिकार था। ‌ ‌ ‌ 

व्यवस्थापिका: 

संघीय विधानमंडल (व्यवस्थापिका) द्विसदनीय होना था, जिसमें राज्य परिषद (उच्च सदन) तथा संघीय सभा (निम्न सदन)थी। राज्य परिषद एक स्थाई सदन था, जिसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक तीन वर्ष के पश्चात चुने जाते थे। इसकी अधिकतम सदस्य संख्या 260 होनी थी, जिनमें से 156 प्रांतों के चुने हुए प्रतिनिधि और अधिकतम 104 रियासतों के प्रतिनिधि होने थे, जिन्हें संबद्ध राजाओं द्वारा मनोनीत किया जाना था। संघीय सभा का कार्यकाल पांच वर्ष होना था। इसके सदस्यों में से 250 प्रांतों के और अधिकाधिक 125 सदस्य रियासतों के होने थे। सियासत उम्र के सदस्य संबद्ध राजाओं द्वारा मनोनीत किए जाने थे, जबकि ब्रिटिश प्रांतों के सदस्य प्रांतीय विधान परिषद द्वारा चुने जाते थे।    ‌ 
  1. ★यह एक अत्यंत विचित्र व्यवस्था थी तथा साधारण प्रचलन के विपरीत थी, जैसा कि उच्च सदन के सदस्यों का चुनाव सीधे मतदाताओंद्वारा तथा निम्न सदन, जो ज्यादा महत्वपूर्ण था,कि सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाना था।
  2.  ‌★इसी प्रकार, राजाओं को उच्च सदन के 40% तथा निम्न सदन के तत्व परिषद सदस्य मनोनीत करने थे। 
  3. ★समस्त विषयों का बंटवारा तीन सूची में किया गया—केंद्रीय सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची। ‌
  4. ★संघीय सभा के सदस्य मंत्रियों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे।किंतु राज्य परिषद में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता था ‌। ‌
  5. ★धर्म-आधारित एवं जाति-आधारित निर्वाचन व्यवस्था को आगे भी जारी रखने की व्यवस्था की गई। ‌
  6. ★संघीय बजट का 80% भाग ऐसा था जिस पर विधानमंडल मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता था।   ‌
गवर्नर जनरल के पास अवशिष्ट शक्तियां थी। वह —(१) अनुदान मांगों में कटौती कर सकता था, (२)विधान परिषद द्वारा तो स्वीकार किए गए विधेयक का अनुमोदन कर सकता था, (३) अध्यादेश जारी कर सकता था, (४) किसी विधेयक के संबंध में अपने निषेधाधिकार (वीटो) का प्रयोग कर सकता था, और (५) दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुला सकता था। ‌

(‌3) प्रांतीय स्वायत्तता

प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की गई। ‌‌‌‌
★प्रांतों को स्वायत्तता एवं पृथक विधिक पहचान बनाने का अधिकार दिया गया। ‌
★प्रांतों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल के 'आलाकमान वाले आदेशों' से मुक्त कर दिया गया।इस प्रकार, अब वे प्रत्यक्ष और सीधे तौर पर महामहिम सम्राट के अधीन आ गए। ‌‌
★प्रांतों को स्वतंत्र आर्थिक शक्तियां एवं संसाधन दिए गए। प्रांतीय सरकारी स्वयं की साख पर ऋण ले सकती थी। ‌ ‌ कार्यपालिका ★गवर्नर, प्रांत में सम्राट का मनोनीत प्रतिनिधि होता था, जो महामहिम सम्राट की ओर से समस्त कार्यों का संचालन एवं नियंत्रण करता था। ‌
★गवर्नर को अल्पसंख्यकों, लोक सेवकों के अधिकारों, कानून एवं व्यवस्था, ब्रिटेन के व्यापारिक हितों तथा देसी रियासतों इत्यादि के संबंध में विशेष शक्तियां प्राप्त थी। ‌
★यदि गवर्नर यह अनुभव करें कि प्रांत का प्रशासन संवैधानिक उपबंध के आधार पर नहीं चलाया जा रहा है, सुशासन का संपूर्ण बाहर वह अपने हाथों में ले सकता था।‌। ‌ ‌

व्यवस्थापिका

★सांप्रदायिक अन्य वर्गों को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया।अधिनियम के निर्वाचक मंडलों का निर्धारण संप्रदायिक अधिक निर्णय तथा पूना समझौते के अनुसार किया गया।  ‌‌
 ★विभिन्न प्रांतों में प्रांतीय विधान मंडलों के आकार तथा संरचना भिन्नता में थी। अधिकांश प्रांतों में यह एक सदस्य तथा कुछ प्रांतों में यह द्विसदनीय था। द्विसदनीय व्यवस्था में उच्च सदन विधान,परिषद तथा निम्न सदन,विधानसभा थी।
 ‌★सभी सदस्यों का निर्वाचन सीधे तौर पर होता था। मताधिकार में वृद्धि की गई। पुरुषों के समान महिला महिलाओं को भी मताधिकार प्रदान किया गया। ‌ 
★मंत्री, अपने विभागीय कार्यो के प्रति जवाबदेह थे तथा व्यवस्थापिका में उनके विरुद्ध मतदान कर उन्हें हटाया जा सकता था। ‌ 
★बजट के 40% हिस्से को लेकर मतदान नहीं किया जा सकता था। ‌ 
★गवर्नर—(१) विधेयक लौटा सकता था,(२) अध्यादेश प्रख्यापित कर सकता था, और (३) गवर्नर के कार्यों का क्रियान्वयन करा सकता था। ‌   ‌

 भारत सरकार अधिनियम 1935 की धाराएं

(1) संघीय न्यायालय की स्थापना।
(2) नया संविधान अनम्य था। इसमें संशोधन करने की शक्ति केवल अंग्रेजी संसद को ही थी। भारतीय विधानमंडल केवल उसमें संशोधन का प्रस्ताव कर सकता था।
(‌3)एक केन्द्रीय बैंक की स्थापना की गई।
(‌4) बर्मा तथा अदन को भारत के शासन से पृथक कर दिया गया। (‌5) उड़ीसा और सिंध प्रांत बनाए गए तथा उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत को गवर्नर के अधीन कर दिया गया।

भारत शासन अधिनियम 1935 MCQ — 
important short-questions and answers 

भारत सरकार अधिनियम 1935 में कितनी धाराएं हैं?

321 मुख्य धाराएं हैं।

भारत सरकार अधिनियम 1935 की मुख्य विशेषता क्या है?

भारत सरकार अधिनियम 1935 की मुख्य विशेषता यह है कि भारत की आजादी के बाद भारत की संविधान का सबसे बड़ा हिस्सा इसी से लिया गया है।

भारत सरकार अधिनियम कब शुरू हुआ?

1935 में।

भारत सरकार अधिनियम, 1935 के मुख्य प्रावधान क्या हैं?

भारत सरकार अधिनियम, 193 की मुख्य विशेषता यह थी कि इसने प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत को चिह्नित किया। प्रांतों को उनके परिभाषित क्षेत्रों में प्रशासन की स्वायत्त इकाइयों के रूप में कार्य करने की अनुमति थी।

भारत सरकार अधिनियम 1935 क्या है?

प्राथमिक उद्देश्य भारतीयों को वह जिम्मेदार सरकार प्रदान करना था जिसकी उन्हें आवश्यकता थी।

भारत सरकार अधिनियम 1935 की मुख्य धाराएं क्या-क्या थी?

(1) संघीय न्यायालय की स्थापना। (2) नया संविधान अनम्य था। इसमें संशोधन करने की शक्ति केवल अंग्रेजी संसद को ही थी। भारतीय विधानमंडल केवल उसमें संशोधन का प्रस्ताव कर सकता था। (‌3)एक केन्द्रीय बैंक की स्थापना की गई। (‌4) बर्मा तथा अदन को भारत के शासन से पृथक कर दिया गया। (‌5) उड़ीसा और सिंध प्रांत बनाए गए तथा उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत को गवर्नर के अधीन कर दिया गया।

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