नारीवाद क्या है? अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ तथा रूप

    नारीवाद ( femaleism) 

नारीवाद का अर्थ एवं परिभाषा 

नारीवाद का अर्थ : नारीवाद शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द female से हुई है। जिसका अर्थ स्त्री या स्त्री संबंधों से है। अतः स्त्रीवादी एक ऐसा आंदोलन है जिसका संबंध स्त्रियों की हित की रक्षा से है।

नारीवाद की परिभाषाएं

narivad ki paribhasha ; कुछ विद्वानों द्वारा इसी बात को निम्नलिखित परिभाषाएं दी गई है जैसे—

ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार- स्त्रीवाद स्त्रियों के अधिकारों की मान्यता उनकी उपलब्धियों और अधिकारों की वकालत है।

समाजशास्त्री मेरी एनोस ने लिखा है स्त्रीवाद स्त्रियों की वर्तमान तथा भूतकाल की स्थिति का आलोचनात्मक मूल्यांकन है यह स्त्रियों से संबंधित उन मूल्यों के लिए चुनौती है जो स्त्रियों को दूसरों द्वारा पेश की जाती है।

चारलोट बंच अनुसार स्त्रीवाद से विक्रय उन विभिन्न सिद्धांतों और आंदोलन से है जो पुरुष की तरफदारी का विरोध तथा पुरुष से पुरुष भी प्रति स्त्री की अधीनता की आलोचना करते हैं तथा जो लिंग पर आधारित अन्याय को समाप्त करने के लिए वचनबद्ध है।

जॉन चारवेट का कहना है स्त्रीवाद का मूल सिद्धांत यह है की मौलिक योग्यता की पक्ष से पुरुषों तथा स्त्रियों में कोई अंतर नहीं है इस पक्ष में कोई भी पुरुष प्राणी अथवा स्त्री प्राणी नहीं है बल्कि वे मानवीय प्राणी है मनुष्य का स्वभाव तथा महत्व लिंग के पक्ष में स्वतंत्र है।

नारीवाद की मुख्य विशेषताएं 

(1) स्त्री अलैंगिक प्राणी नहीं है मानव प्राणी है

नारीवाद का बुनियादी विचार  है कि स्त्रियां लैंगिक प्राणी नहीं है। इन विचारधारा के समर्थकों का कहना है किससे को केवल माता पत्नी से बहन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि उसे एक इंसान के रूप में देखा जाना चाहिए उनका कहना है कि स्त्रियां भी पुरुषों के समान योगिता तथा बुद्धि रखती है और वे सभी कार्यों को करने की योग्य है जो पुरुषों द्वारा किए जाते हैं उनका कहना है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्त्रियों की पुरुषों से अध्ययन स्थिति का कारण यह है कि उन्हें पुरुषों के समान अपने विकास के अवसर नहीं दिए गए।

(2) समान अधिकार तथा समान अवसर

नारीवाद के समर्थकों का कहना है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नारी स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार तथा अवसर प्रदान की जाए। उनके अनुसार स्त्रियों को पुरुष के समान सामाजिक आर्थिक राजनीतिक तथा सांस्कृतिक अधिकार मिलने चाहिए उन्हें भी पुरुषों के समान अपना जीवन स्वतंत्र पूर्वक व्यतीत करने अपनी रूचि के अनुसार किसी भी व्यवसाय को अपनाने संपत्ति रखने तथा विवाह और तलाक के अधिकार मिलने चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में भी उन्हें पुरुषों के समान सफलतापूर्वक अपने मताधिकार का प्रयोग करने चुनाव लड़ने तथा उच्च पद ग्रहण करने के लिए अधिकार होना चाहिए । नौकरी के मामले में लिंग के आधार पर उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

(3) पित्र प्रधानता का विरोध

नारीवाद चित्र प्रधानता को ही स्त्रियों के शोषण दमन तथा उसके साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार का मुख्य कारण मानता है। चित्र प्रधान समाज में पुरुष स्त्री पर अपने प्रधानता स्थापित करना चाहता है तथा उसे निर्देश देता है ऐसे समाज में पुरुषों की स्थिति उच्च तथा स्त्रियों की निम्न याद रहती है। नारीवादी ऐसी सामाजिक व्यवस्था का विरोध करते हैं।

(4) परिवार की संस्था की विरोध

नारीवाद की कुछ उग्र समर्थक परिवार की संस्था की स्त्रियों की अधीनता तथा शोषण का एक महत्वपूर्ण कारण मानते हैं। परिवार में स्त्री की भूमिका खूब घर की चारदीवारी के अंदर तक ही सीमित कर दिया गया है उसे अपनी क्षमताओं का पूरा विकास करने का अवसर नहीं मिल पा रहा। परिवार में बच्चों का समाजीकरण इस प्रकार किया जाता है कि पुरुष का स्त्री पर पर भूत बना रहे पुलिस टॉप परिवार में लड़कियों के मुकाबले लड़की को हर प्रकार के प्राथमिक दी जाती है जिसका असर लड़कियों पर पड़ता है अतः नारीवाद परिवार की संस्था का विरोध करते हैं।

(5) स्त्रियों की परंपरावादी भूमिका में परिवर्तन

 स्त्रीवादी स्त्रियों द्वारा परंपरावादी कार्य घर का कामकाज करना पति की सेवा करना बच्चे पैदा करना तथा उनका पालन पोषण करना आदि के जाने के विरुद्ध है उनका यह कहना है कि स्त्रियों की यह भूमिका देवी आदेश नहीं है बल्कि पुरुषों द्वारा बनाई गई हुई और स्त्रियों जब तक स्वतंत्र नहीं हो सकती जब तक उनकी इस भूमिका में परिवर्तन ना लाई जाए।

(6) एक पति एक पत्नी विवाह का विरोध

स्त्रीवादी एक पति एक पत्नी विवाह की प्रथा के विरुद्ध है। उनका कहना है कि इस प्रथा के अंतर्गत स्त्री अपने पति की दासी बनकर रहती है तथा उसकी सारी आई अपने पति की सेवा बच्चों का पालन पोषण तथा घर के अन्य कामों को करने में ही भी जाती है पुलिस टॉपर दोस्ती को इस दास्तां की स्थिति से मुक्त कराने के लिए विभाग की इस प्रथा का अंत होना चाहिए।

 (7) बच्चों की सार्वजनिक देखभाल

 स्त्रीवादी के अनुसार बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेवारी समाज की होनी चाहिए। बच्चों को जन्म देने तथा उनका पालन पोषण करने के लिए विशेष उपचार ग्रहों की व्यवस्था होनी चाहिए जिनमें बच्चों की देखभाल करने की जिम्मेवारी प्रशिक्षित नर्सों की होनी चाहिए जो सामूहिक उसे उन बच्चों की देखभाल करें।

(8) लैंगिक स्वतंत्रता

उग्र स्त्रीवादी स्त्रियों की पूर्ण लैंगिक स्वतंत्रता प्रदान किए जाने का समर्थन भी करते हैं। उनका कहना है कि स्त्रियों की अपनी इच्छा अनुसार यौन संबंध स्थापित करने तथा उन्हें तोड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। उनके अनुसार काम वासना की पूर्ति एक निजी मामला है इसमें समाज को तब तक किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक इस से दूसरों को हानि ना पहुंचती हो। स्त्री को अपनी इच्छा अनुसार किसी भी समय किसी भी पुरुष के साथ यौन संबंध जोड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

(9) निजी संपत्ति का विरोध

 स्त्रीवादी निजी संपत्ति को भी स्त्री की अधीनता का एक मुख्य कारण मानते हैं। एंजेल्स ने लिखा है कि पुरुष अपनी निजी संपत्ति को अपने शुद्ध वंशज तक पहुंचाने के लिए स्त्री को विवाह द्वारा अपना दास बना कर उसे बच्चा पैदा करने की मशीन बनाकर रखता है। अथवा उनका विचार है कि स्त्री की स्वतंत्रता के लिए निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करना आवश्यक है।

(10) स्त्रियों की आर्थिक्-स्व- निर्भरता

स्त्री वादियों के अनुसार स्त्री एक पुरुष के प्रभुत्व का एक मुख्य कारण स्त्री की पुरुष पर आर्थिक निर्भरता है। इसलिए स्त्री को पुरुष से स्वतंत्रता दिलाने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाया जाए । पुरुष की भांति स्त्रियों को भी उद्योग धंधों में लगाना चाहिए तथा उन्हें पुरुषों के समान ही शिक्षित करना चाहिए ताकि वह भी नौकरी अथवा कोई अन्य व्यवसाई डॉक्टरी वकालत आदि कर सकें। 

(11) स्त्री यौन उत्पीड़न वर्ग है

स्त्री वादियों का कहना है कि स्त्रियां समाज की उत्पीड़ित वर्ग है और लगभग सभी समाजों में हुए शोषण का शिकार हैं। परंपरागत पित्र प्रधान परिवार में उनका कोई कानूनी दर्जा नहीं था वह संपत्ति की मालिक नहीं बन सकती थी और ना ही वह नौकरी आदि करके आत्मनिर्भर बन सकती थी आधुनिक समय में भी स्त्रियों को जो अधिकार प्राप्त है वह पुरुषों से कम है आज भी अधिकतर स्त्रियां अपने परंपरागत कार्यों का घर का कामकाज करने तथा बच्चे पैदा करना तथा उनका पालन पोषण करना है तथा घर में पुरुषों की शिवा में लगी हुई है। अधिकतर स्त्रियां आज भी अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुरुषों को निर्भर है।

नारीवाद के रूप 

नारीवाद के प्रकार स्त्रीवाद वास्तव में स्त्रियों की स्थिति में संबंधित अनेक प्रकार के विचारों के समूह का नाम है। स्त्रियों की दशा को सुधारने के संबंध में सभी विद्वानों के विचार एक जैसे नहीं है। कई विचारक ऐसे हैं जो वर्तमान पुरुषवादी समाज में सुधार करने के पक्ष में जिनके परिणाम स्वरूप स्त्री को पुरुष के साथ समानता प्राप्त हो और उसकी अधीन स्थिति समाप्त हो। दूसरी श्रेणी में ऐसी विचार है जो स्त्री को शोषित वर्ग के रूप में देते हैं और उन सभी संस्थाओं को समाप्त करने का समर्थन करते हैं जो इसके लिए उत्तरदाई हैं। तीसरी श्रेणी में कुछ स्त्रीवादी विचारक ऐसे भी हैं जो पुरुषवादी समाज के पुरुष पक्षीय ढांचे को पूर्ण रूप से समाप्त करके स्त्री को प्रत्येक क्षेत्र में यहां तक कि यौन छेत्र में भी पूर्ण स्वतंत्रता देने के पक्षधर है। इसी प्रकार से नारीवाद के तीन मुख्य रूप हैं— 

(1) उदारवादी स्त्रीवाद।
(2) समाजवादी स्त्रीवाद।
(3) उग्र स्त्रीवाद।

(1) उदारवादी स्त्रीवाद 

उदारवादी स्त्री वाद एक ऐसी विचारधारा है जो स्त्री तथा पुरुष की समानता का समर्थन करती है। इस विचारधारा के मुख्य समर्थक जॉन लॉक, जे०एस० मिल, बैरन डी०, होलबाच, मेरी वालस्टोन, क्राफ्ट मार्गरेट फूलर तथा मेरी फ्राइडेन आदि है। उदारवादी स्त्रीवाद की मुख्य मान्यताएं- 
(1) उदारवादी स्त्रियों के अनुसार इससे पुरुषों के समान योग्य वह विवेकपूर्ण होती हैं और वह प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर सकती हैं जिन्हें पुरुषों का क्षेत्र समझा जाता है उनका कहना है कि स्त्रियों को पुरूषों के समान विकास सदा उन्नति के अवसर न मिलने के कारण ही वे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पिछड़ जाते हैं। अथवा स्त्रियों को भी पुरुषों के समान विकास के अवसर दिया जाना चाहिए।

(2) उदारवादी स्त्रीवाद स्त्री को लैंगिक प्राणी ना मानकर एक मानव प्राणी मानते हैं। उनका कहना है कि समाज में स्त्री की कोई भी भूमिका उसके लिंग के आधार पर निश्चित नहीं की जानी चाहिए और उसकी भूमिका एक मानव प्राणी होने के रूप में की जानी चाहिए।

(2) समाजवादी स्त्रीवाद

थॉमसन कार्ल मार्क्स ऑगस्ट टेबल एंजिल्स विलियम थॉमस जूलियट मिचेल तथा डॉ ० बी० ए० वायर आदि विद्वानों द्वारा स्त्रीवाद के समाजवादी रूप का समर्थन किया गया है। यह विद्वान मुख्य रूप से उन संस्थाओं को नष्ट करने के पक्ष में है जो स्त्रियों की अधीनता के लिए उत्तरदाई हैं। 
(1) इस विचारधारा के समर्थक स्त्रियों को लैंगिक स्वतंत्रता का विरोध करते हैं। उनका कहना है कि इससे पत्नी जीवन भर के लिए पति अधीन हो जाती है और उस पर पुरुष की श्रेष्ठता कायम रहती है।

(2) समाजवादी स्त्री वादियों का कहना है कि बच्चों के पालन पषण की जिम्मेदारी केवल स्त्रियों की ही नहीं बल्कि सारे समाज की है। बताओ इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नर्सिंग होम स्थापित किए जाने चाहिए जहां पर बच्चों की देखभाल तथा उनका पालन पोषण हो सके।

(3) उग्र स्त्रीवाद

उग्र स्त्रीवाद, स्त्री बात का क्रांतिकारी रूप है जिसका समर्थन बेटी फ्राइडन, केट मिल्ट, एंम०‌डेली तथा शुलामीठ फायरस्टोन आदि विद्वानों द्वारा किया गया है।
(1) उग्र स्त्रीवाद विवाद तथा परिवार की संख्या का विरोध करता है। क्योंकि वह इन संस्थाओं को स्त्री की अधीनता के लिए उत्तरदाई मानता है परिवार में उनके अधीनता का ही परीक्षण किया जाता है।
(2) उग्र स्त्रीवाद स्त्रियों को लैंगिक स्वतंत्रता दिए जाने का समर्थन करते हैं और भी स्त्रियों को विवाह से पहले तथा विवाह के अतिरिक्त लिंग संबंधों के अतिरिक्त समलैंगिक कामुकता की भी स्वीकृति देते हैं।


महत्वपूर्ण अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 


नारीवाद का जनक कौन है? letest education.in

नारीवाद का जनकसावित्रीबाई फुले को कहा जाता है।

नारीवादी की शुरुआत कब हुई?

1831-1897

नारीवाद आंदोलन की विशेषता क्या है? letest education.in

नारीवादी आंदोलन की मुख्य विशेषता महिलाओं की सुरक्षा शिक्षा और समाज में मिलने वाले अधिकारियों से है?

नारीवाद का क्या अर्थ है?

नारीवाद शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द female से हुई है। जिसका अर्थ स्त्री या स्त्री संबंधों से है। अतः स्त्रीवादी एक ऐसा आंदोलन है जिसका संबंध स्त्रियों की हित की रक्षा से है।

नारीवाद क्या है नारीवाद के प्रकार?

नारीवाद के प्रकार निम्नलिखित हैं- उग्र नारीवाद, मार्क्सवादी, उदार नारीवाद,

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