बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म में 8 मुख्य अंतर

बौद्ध धर्म और जैन धर्म में अंतर

 जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव ईसा पूर्व छठी शताब्दी के अंतर्गत सामान्य परिस्थितियों में हुआ था। अतः दोनों धर्मों में अनेक प्रकार की विशेषताएं या अंतर पाया जाना स्वाभाविक था। 

बौद्ध तथा जैन धर्म में अंतर

(1) प्राचीनता में अंतर

जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म की प्राचीनता में महान अंतर पाया जाता है। जैन धर्म लगभग उतना ही प्राचीन है जितना प्राचीन वैदिक धर्म है ।इसके विपरीत बौद्ध धर्म की स्थापना महात्मा बुद्ध द्वारा ईसा पूर्व छठी शताब्दी में की गई थी जैन धर्म के प्रसार में प्रमुख भाग लेने वाले महावीर स्वामी ने यद्यपि ईशा पूर्व छठी शताब्दी में जैन धर्म को पुनः संगठित करके उसका अत्यधिक प्रचार प्रसार किया था, परंतु वे जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनसे पूर्व जैन धर्म के 22 तीर्थंकर हो चुके थे।

(2) ईश्वर संबंधी विचारों में अंतर

महावीर ने ईश्वर को सृष्टि निर्माण और सुष्टि सहार के लिए आवश्यक नहीं बताया था ।वह इसे अनादि और अनंत स्वीकार करते थे। तथा ईश्वर में अविश्वास प्रकट करते थे। दूसरी ओर महात्मा बुद्ध ने सृष्टि निर्माण सृष्टि सहार और ईश्वर संबंधी प्रश्नों को विवाद ग्रस्त बताते हुए उनके विषय में मौन रहने का उपदेश दिया था।  

(3) आत्मा के विषय में मतभेद

जैन धर्म आतंकवादी स्वीकार किया जाता है महावीर स्वामी ने आत्मा के अस्तित्व को अंगीकार किया था इसके विपरीत बौद्ध धर्म में आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार किया गया है। महात्मा बुद्ध ने प्रकट किया था कि मनुष्य के शरीर में आत्मा नाम का कोई तथ्य नहीं है ।मनुष्य का शरीर और व्यक्तित्व कई तत्वों और अवयवों का संघात अथवा योग है जिनके प्रति बुझाने पर आत्मा का कोई स्थाई रूप अथवा तत्व शेष नहीं रह जाता है।

(4) निर्वाण विषयक

मतभेद जैन धर्म में मोक्ष अथवा निर्माण से आत्मा की उस स्थिति को प्रकट किया गया है जो उसे दुखों कर्म बंधनों और पुनर्जन्म से मुक्ति होने पर प्राप्त होती है। इस प्रकार की स्थिति इस जीवन की समाप्ति पर ही प्राप्त हो सकती है। इसके विपरीत बौद्ध धर्म के अंतर्गत निर्माण का अभिप्राय अपने जीवन के कष्टों और मोर का अंत करके अनंत शक्ति प्राप्त करने से लिया गया है तथा ऐसा किया जाना इसी जीवन में संभव बताया गया है। महात्मा बुद्ध स्वयं इसके उदाहरण थे जिन्होंने निर्माण प्राप्ति के बाद 45 वर्ष तक निरंतर धर्म उपदेश दिए। 

(5) अहिंसा के विषय में मतभेद

जैन धर्म के अंतर्गत अहिंसा पर विशेष बल देते हुए उससे परम धर्म बताया गया है इस धर्म में पेड़ पौधे वायु भाषण आदि में भी जीव की कल्पना की गई तथा सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव को भी आघात पहुंचाना पाप स्वीकार किया गया । अहिंसा के प्रश्न पर जैन धर्म किसी प्रकार का कोई समझौता करने को तैयार नहीं है ।इसके विपरीत बौद्ध धर्म अहिंसा को महत्वपूर्ण तो माना गया है परंतु विशेष परिस्थितियों में मांस -भक्षण को भी उचित स्वीकार किया गया। 

(6) हिंदू धर्म से पृथकत्व में अंतर

यद्यपि जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों ही धर्मों के अंतर्गत हिंदू धर्म की चतुर्वर्ण व्यवस्था का अत्यधिक विरोध किया गया था ,परंतु जैन धर्म ने हिंदू धर्म से पूर्ण रूप से संबंध विच्छेद नहीं किया था जैन धर्म आज भी हिंदू धर्म की अनेक बातों को अपनाते हुए तथा हिंदू धर्म के एक अंग के रूप में विद्यमान हैं। इसके विपरीत बौद्ध धर्म ने ब्राह्मण धर्म से पूर्ण रूप से संबंध विच्छेद कर लिया था। 

(7) भाषा में अंतर

जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अपने सिद्धांतों का प्रचार प्राकृत भाषा में किया जैन धर्म के अधिकांश महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में की गई थी। इसके विपरीत बौद्ध धर्म के धार्मिक साहित्य तथा प्रमुख धार्मिक ग्रंथों की रचना पाली में की गई थी।  

(8) हिंदू धर्म के प्रसार और स्थायित्व अंतर

जैन धर्म का प्रचार मंथर गति से हुआ परंतु बौद्ध धर्म का प्रचार अत्यंत द्रुत गति से हुआ जैन धर्म केवल व्यापारिक वर्ग तक तक ही सीमित रहा किंतु बौद्ध धर्म को समझ तक चाहते हो कि व्यक्तियों द्वारा बनाया गया बौद्ध धर्म केवल भारत भूमि की सीमाओं तक सीमित न रहकर भारत के बाहर तिब्बत, चीन ,कोरिया ,जापान ,ब्रह्मा ,कंबोडिया, थाईलैंड, जावा ,सुमात्रा, वाली ,बोर्नियो ,श्रीलंका के विभिन्न देशों में अत्यधिक फला- फूला तथा विकसित हुआ, परंतु भारत में यह धर्म स्थिर नहीं रह सका तुर्कों के आक्रमणों के पश्चात बौद्ध धर्म भारत से लुप्त हो गया परंतु जैन धर्म स्थाई बन गया आज भी भारत में जैन धर्म के अनुयाई अत्यधिक संख्या में निवास करते हैं।


उपयोगी जानकारी 

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